Animal kingdom NCERT 11th Class Notes in Hindi
जंतु जगत (Animal kingdom)
जन्तु जगत के अन्तर्गत सभी प्रकार के यूकैरियोटिक
बहुकोशिकीय तथा विषमपोषी (जो पोषण के लिए प्रत्यक्ष रूप से दूसरे जीवों पर निर्भर
हो) जीव आते हैं। यह यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय, विषमपोषी
प्राणियों का वर्ग है जो कोशिका भित्ति रहित कोशिकाओं से बना है।
चुकीं इन प्राणियों की संरचना एवं आकार में विभिन्नता होते
हुए भी उनकी कोशिका व्यवस्था, शारीरिक सममिति, पाचन तंत्र, परिसंचरण तंत्र एवं जनन तंत्र की रचना में कुछ आधारभूत
समानताएँ पाई जाती हैं। इन्हीं विशेषताओं को वर्गीकरण का आधार बनाया गया है।
वर्गीकरण के आधार (Basis of Classification):
मूलभूत लक्षण जैसे संगठन के स्तर, सममिति, कोशिका संगठन, गुहा, खण्डीभवन, पृष्ठरज्जु आदि
प्राणि जगत के वर्गीकरण के आधार हैं। इन लक्षणों के अतिरिक्त कई ऐसे भी लक्षण हैं
जो संघ या वर्ग के विशिष्ट लक्षण होते हैं।
1. संगठन के स्तर (Levels of Organization)
2. सममिति (Symmetry)
3. द्विकोरिकी तथा त्रिकोरिकी
संगठन (Diploblastic and
Triploblastic Organization)
4. शरीर की गुहा या प्रगुहा
(Coelom)
5. खंडीकरण (Segmentation)
6. पृष्ठरज्जु (Notochord)
1. संगठन के स्तर
यद्यपि प्राणी जगत के सभी सदस्य बहुकोशिक हैं, परंतु सभी एक ही
प्रकार की कोशिका के संगठन को प्रदर्शित नहीं करते। कुछ में कोशिकीय स्तर का संगठन
दिखता है तो कुछ में ऊतक स्तर का संगठन दिखाई पड़ता है। प्लेटीहेल्मिंथीज तथा अन्य
उच्च संघों में अंग स्तर का संगठन दिखता है। एनिलिडा, आर्थोपोडा, मोलस्का, एकाइनोडर्म तथा
रज्जुकी में अंग मिलकर तंत्र के रूप में शारीरिक कार्य करते हैं जो अंगतंत्र के
स्तर का संगठन कहलाता है।
विभिन्न प्राणी समूहों में अंगतंत्र विभिन्न प्रकार की
जटिलताएँ प्रदर्शित करते हैं, जैसे- किसी में खुला परिसंचरण तंत्र पाया जाता है तो किसी
में बंद परिसंचरण तंत्र।
2 सममिति (Symmetry):
प्राणी को सममिति के आधार पर निम्न प्रकार से श्रेणीबद्ध किया गया है-
असममिति—किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा इन्हें दो
बराबर भागों में विभाजित नहीं करती है। ऐसे प्राणी असममित कहलाते हैं। उदाहरण
अमीबा एवं स्पंज।
अरीय सममिति—जब किसी भी केन्द्रीय अक्ष से गुजरने वाली रेखा प्राणी के
शरीर को दो समरूप भागों में विभाजित करती है तो इसे अरीय सममिति कहते हैं।
द्विपार्श्व सममिति—एक ही अक्ष से गुजरने वाली रेखा द्वारा शरीर दो समरूप दायें
व बाएं भाग में बाँटा जा सकता है। इसे द्विपार्श्व सममिति कहते हैं। उदाहरण मनुष्य
एवं बटरफ्लाई।
3 द्विकोरकी (Diploblastic) एवं त्रिकोरकी (Triploblastic) संगठन
जिन जन्तुओं में एक्टोडर्म व एण्डोडर्म नामक दो जनन स्तर
पाये जाते हैं उन्हें द्विकोरकी या द्विस्तरीय जन्तु कोशिका कहते हैं।
जिन जन्तुओं मे एक्टोडर्म, एण्डोडर्म व मीसोडर्म नामक तीन जनन स्तर पाये
जाते हैं उन्हें त्रिकोरकी या त्रिस्तरीय जन्तु कहते हैं। उदाहरण टीनिया सोलियम।
4 देहगुहा (Coeclom):
इसके आधार पर जन्तुओं को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया
गया है-
अगुहीय - ऐसे प्राणी जिनमें देहगुहा नहीं पायी जाती है
उन्हें एसीलोमेट्स कहते हैं। उदाहरण प्लेटीहेल्मिन्थीज।
कूटगुहीय - ऐसे जन्तु जिनमें यह गुहा मीसोडर्म से आच्छादित
नहीं होती बल्कि मध्य त्वचा (मीसोडर्म) बाह्य त्वचा एवं अन्तःत्वचा के बीच बिखरी
हुई थैली के रूप में पायी जाती है उन्हें कूटगुहीय कहते हैं। उदाहरण संघ
एस्केलमिन्थीज के प्राणी।
प्रगुहीय/सीलोमेट्स - जन्तु की देहगुहा मीसोडर्म द्वारा
आस्तरित होती है। इसे वास्तविक देहगुहा कहा तथा ऐसे प्राणियों को वास्तविक गुहिक
प्राणी कहते हैं। उदाहरण ऐनेलिडा, आर्थोपोडा एवं मोलस्का, कार्डेटा संघ के प्राणी।
5 खण्डीभवन (Segmentation):
कुछ प्राणियों में शरीर बाह्य तथा आन्तरिक दोनों ओर
श्रेणीबद्ध खण्डों में विभाजित रहता है, जिनमें कुछेक अंगों की क्रमिक पुनरावृत्ति होती है। उस
प्रक्रिया को खण्डीभवन कहते हैं। उदाहरण केंचुआ।
6- पृष्ठ रज्जु (Notochord):
शलाका रूपी पृष्ठ रज्जु (नोटोकॉर्ड) मध्यत्वचा (मीसोडर्म)
से उत्पन्न होती है जो भ्रूणीय परिवर्धन विकास के समय पृष्ठ सतह में बनती है।
पृष्ठ रज्जु युक्त प्राणी को रज्जुकी (कार्डेट) कहते हैं
तथा पृष्ठ रज्जु रहित प्राणी को अरज्जुकी (नॉन-कार्डेट) कहते हैं।
प्राणियों का वर्गीकरण
प्रमुख वर्ग
1. पोरीफेरा (Porifera)
2. सीलेन्ट्रेटा नाइडेरिया (Coelenterata)
3. टीनोफोरा (Ctenophora)
4. प्लेटिहेल्मिन्थीज (Platyhelminthes): फीताकृमि
5. एस्केल्मिन्थीज (Aschelminthes): गोलकृमि
6. एनीलिडा (Annelida)
7. आर्थोपोडा (Arthropoda) (संयुक्त पाद
प्राणी)
8. मोलस्का (Mollusca) (कोमल शरीर युक्त
प्राणी)
9. इकाइनोडर्मेटा (Echinodermata)
10. हेमी कॉर्डेटा (Hemichordata)
11. कॉर्डेटा (Chordata)
संघ पोरीफेरा (Porifera)
- इनके शरीर पर असंख्य सूक्ष्म छिद्र पाए जाते है, इसलिए इनको स्पंज के रूप में जाना जाता है, इन सूक्ष्म छिद्र होत को ओस्टिया (Ostia) कहा जाता है।
- इनका शरीर द्विस्तरीय अन्तःचर्म एवं बाह्यचर्म से बना होता है।
- इस संघ के सदस्य सामान्यतः स्पंज (Sponges) के नाम से जाने जाते हैं।
- ये बहुकोशिकीय जलीय (Multicellular aquatic) जन्तु होते हैं जो साधारणतः चट्टान या किसी ठोस पदार्थ पर रहते हैं।
- इनकी आकृति अनियमित, बेलनाकार, अंडाकार या शाखीय होती है।
- इस संघ के जन्तुओं की शरीर भित्ति (Body wan) में अनेक छिद्र पाये जाते हैं जिन्हें ऑस्टिया (Ostia) कहते हैं। शरीर के अग्र सिरे पर एक बड़ा छिद्र पाया जाता है जिसे ओस्कुलम (Osculum) कहते हैं।
- इनमें प्रजनन अलैंगिक (Asexual) तथा लैंगिक (sexual) दोनों ही प्रकार का होता है तथा निषेचन (Fertilization) आतंरिक (Internal) होता है।
- ये द्विलिंगी (Bisexual) होते हैं।
- इनमें भोजन का पाचन अन्तःकोशिकीय (Intracellular) होता है।
- उदाहरण: साइफा या साइकॉन (Cycon), स्वच्छ जलीय स्पंज या स्पॉन्जिला (Spongilla), बाथस्पंज या यूस्पॉन्जिया (Euspongia)।
सीलेंट्रेटा या नाइडेरिया (Coelenterata or Cnidaria)
- ये जलीय अधिकांश समुद्री, एकाकी (solitary) या संघचारी (Colonial) जन्तु हैं।
- इसका सर अरीय सममित (Radial symmetry) होता है।
- शरीर की कोशिकाएँ ऊतक स्तर पर व्यवस्थित होती हैं।
- ये जन्तु बहुकोशिकीय (Multicellular) होते हैं जिनके अंदर सिर्फ एक ही गुहा (Cavity) पायी जाती है जिसे अंतरगुहा (Coelenteron) कहते हैं।
- इनमें मुख के चारों ओर लम्बे-लम्बे संस्पर्शक (Tentacles) पाये जाते हैं।
- इनके संस्पर्शक तथा शरीर के अन्य भागों में दंश कोशिकाएँ (Nematoeyst) पाये जाते हैं।
- इनके जीवन चक्र में पीढ़ी एकान्तरण (Alteration of generation) या मेटाजेनेसिस (Metagenesis) पाया जाता है। ये दो प्रकार के होते हैं- पॉलिपॉएड (Polypoid) और मेड्यूसॉएड (Medusoid)।
- इनमें अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction) मुकुलन (Budding) द्वारा लिंगी प्रजनन (Sexual reproduction) युग्मकों द्वारा होता है।
- श्वसन एवं उत्सर्जन की क्रिया शरीर की सतह से होती है।
- इनमें मस्तिष्क का अभाव होता है।
- ये द्विस्तरीय (Diploblastic) प्राणी होते हैं। शरीर का बाहय स्तर एक्टोडर्म (Ectoderm) तथा भीतरी स्तर एण्डोडर्म (Endoderm) या गैस्ट्रोडर्मिस (Gastrodermis) होता है। दोनों स्तरों के बीच में अकोशिकीय मेसोग्लीया (Mesoglea) होता है। शरीर की कोशिकाएँ ऊतक स्तर पर व्यवस्थित होती हैं।
- हाइड्रा में अमरत्व (Immortality) का गुण पाया जाता है।
उदाहरण: हाइड्रा (Hydra), फाइसेलिया (Physalia), ओबीलिया (Obelia), ऑरलिया (Aurelia), सी-एनिमोन (sea anemone), फंजिया (Fungia) मीण्ड्रा (Meandra), पेनाटुला (Pennatula), गोर्गोनिया (Gorgonia) आदि।
टीनोफोरा (Ctenophora)
- सामान्यतः इन्हें समुद्री अखरोट (Sea Walnuts) या कॉम्ब जैली (Comb Jelly) कहते हैं।
- ये सभी समुद्रवासी अरीय सममिति वाले द्विकोरिक जीव होते हैं तथा इनमें ऊतक श्रेणी का शारीरिक संगठन पाया जाता है।
- शरीर में आठ बाह्य पक्ष्माभी (Ciliated) कॉम्ब प्लेट्स पाए जाते हैं जो चलने में सहायक होते हैं।
- जीवदीप्ति (Bioluminescence) के द्वारा प्रकाश उत्सर्जन करना टीनोफोर की मुख्य विशेषता है।
- नर एवं मादा अलग अलग नहीं होते हैं। जनन केवल लेंगिक होता है ।
- निषेचन बाह्य हो है तथा परिवर्धन अप्रत्यक्ष होता है .
उदाहरण: प्लूरोब्रेकिआ तथा टीनोप्लाना
प्लेटीहेल्मिंथीज (Platyhelminthes)
- इस संघ के प्राणी पृष्ठाधार रूप से चपटे होते हैं, अतः इन्हें चपटे कृमि (Flat Worm) भी कहा जाता है।
- ये जन्तु त्रिस्तरीय (Triploblastic) होते हैं अर्थात् इनका शरीर एक्टोडर्म (Ectoderm) मीसोडर्म (Mesoderm) एवं एण्डोडर्म (Endoderm) से बना रहता है।
- इस संघ के जन्तुओं में सर्वप्रथम अंग एवं विभिन्न तंत्रों का पूर्ण विकास पाया जाता है।
- इस संघ के जन्तुओं में रक्त परिसंचरण तंत्र, श्वसन तंत्र तथा कंकाल तंत्र नहीं पाये जाते हैं।
- इस संघ के जन्तु प्रायः उभयलिंगी (Bisexual) होते हैं तथा निषेचन क्रिया प्रायः आन्तरिक (Internal) हुआ करती है।
- इस संघ के जन्तुओं में उत्सर्जन क्रिया ज्वाला कोशिका (Flame cells) द्वारा होता है।
- इस संघ के जन्तुओं के शरीर में चारों ओर क्यूटिकिल (Cuticle) का एक आवरण पाया जाता है।
- टीनिया सोलियम (Taenia solium) एक फीता कृमि (Tape worm) है जो मनुष्य की आंत में अन्तः परजीवी (Endoparasite) होता है।
उदाहरण: टीनिया सोलियम (फीताकृमि) तथा फेसियोला (Liver Fluke)
निमेटोडा या ऐस्केल्मिंथीज (Nematoda or Aschelminthes)
- इन प्राणियों का शरीर अनुप्रस्थ काट में गोलाकार होता है, अतः इन्हें गोलकृमि (Round Worm) कहते हैं।
- ये मुक्तजीवी, जलीय तथा स्थलीय अथवा पौधों तथा प्राणियों में परजीवी रूप में भी पाए जाते हैं।
- इस संघ के जन्तुओं का शरीर अखण्डित, लम्बे-पतले धागे जैसा बेलनाकार होता है तथा दोनों सिरे नुकीले होते हैं।
- ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा वास्तविक देहगुहा वाले जीव हैं।
- इनका शरीर संगठन अंगतंत्र स्तर का है (ऊतक पाए जाते हैं परंतु असली अंग नहीं होते)।
- ये एकलिंगी (Unisexual) होते हैं, अर्थात् नर एवं मादा जनन अंग अलग-अलग शरीर में पाये जाते हैं।
- ये अधिकांशतः परजीवी (Parasites) होते हैं तथा अपने पोषकों (hosts) में रोग उत्पन्न करते हैं।
- आहार नाल पूर्ण होती है एवं उत्सर्जन नाल शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को उत्सर्जन रंध्र द्वारा बाहर निकालती है।
- अक्सर मादा, नर से लंबी होती है।
- ऐस्केरिस (Ascaris) मनुष्य की छोटी आँत में पाया जाता है तथा ऐस्केरिएसिस (Ascariasis) रोग उत्पन्न करता है।
- वूचेरीया (wuchereria) द्वारा मनुष्य में फाइलेरिया रोग उत्पन्न होता है।
- उदाहरणः गोलकृमि (एस्केरिस), पिनकृमि, फाइलेरिया कृमि (वुचेरिया), हुक वर्म या अंकुश कृमि (एनसाइलोस्टोमा)
एनिलिडा (Annelida)
- इस संघ के प्राणी जलीय (समुद्री एवं ताज़े जल) अथवा स्थलीय, स्वतंत्रजीवी एवं कभी-कभी परजीवी होते हैं।
- ये बहुकोशकीय (Multicellular) तथा त्रिस्तरीय (Triploblastic) होते हैं।
- ये द्विपाशिर्वक सममित (Bilaterally symmetrical) तथा सीलोममुक्त (Coelomate) होते हैं। इस संघ में आनेवाले जन्तुओं का शरीर खण्डित लम्बा एवं कृमि के आकार का होता है। प्रत्येक खण्ड वलय (Ring) जैसा होने के कारण इन्हें ऐनेलिडा (Annulus = Ring) कहा जाता है।
- शरीर की दीवार और आहारनाल के बीच की जगह को देहगुहा (Coelom) कहते हैं जो पेट या सेप्टा (septa) द्वारा कई खण्डों में बँटी रहती है। देहगुहा के चारों ओर भ्रूण के मीसोडर्म (Mesoderm) की एक परत होती है।
- इस संघ के जन्तुओं में अंग एवं अंगतंत्र का पूर्ण विकास पाया जाता है।
- इनमें उत्सर्जन वृक्कक (Nephridia) के द्वारा होता है।
- इस संघ के कुछ जन्तु एकलिंगी तथा कुछ उभयलिंगी होते हैं।
- कुछ जन्तुओं के परिवर्धन काल में एक लार्वा अवस्था होती है, जिसे ट्रोकोफोर (Trochophore) कहते हैं।
- नेरिस में नर तथा मादा अलग होते हैं, परंतु केंचुए तथा जोंक में नर तथा मादा पृथक् नहीं होते।
- इसमें श्वसन (Respiration) साधारणतः त्वचा (Skin) द्वारा तथा किसी-किसी में क्लोम (Gills) द्वारा होता है।
- इनके शरीर में छोटे-छोटे काँटेनुमा शूक (Setae) पाए जाते हैं।
- एफ्रोडाइट (Aphrodite) को समुद्री चूहा (Sea mouse) कहा जाता है।
- उदाहरण: नेरिस, फेरेटिमा (केंचुआ), हीरूडिनेरिया (रक्तचूषक जोंक)
आर्थोपोडा (Arthropoda)
आर्थोपोडा शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम वान सीबोल्ड (van seibold) ने 1845 ई. में किया
जिसका अर्थ होता है संयुक्त उपांग (Arthron =Joint; Podos = Foot) यह जन्तु जगत का
सबसे बड़ा संघ है। इस संघ में लगभग 10 लाख जन्तु हैं जो पर्वत की ऊँचाइयों से लेकर समुद्र में 8 km की गहराई तक पाये
जाते हैं। इस संघ के जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- इस संघ के जन्तु, जल, थल एवं वायु तीनों जगहों पर पाये जाते हैं।
- इनका शरीर द्विपार्श्विक सममित (Bilaterally symmetrical) होता है।
- इनका शरीर खण्डयुक्त (Segmented) तथा त्रिस्तरीय (Triploblastic) होता है।
- इनका शरीर सिर (Head), वक्ष (Thorax) और उदर (Abdomen) में विभाजित होता है। कभी-कभी सिर और वक्ष जुड़कर शिरोवक्ष (Cephalothorax) का निर्माण करते हैं।
- इनका बाह्यकंकाल एक मोटी काइटिन की बनी उच्चर्म (Cuticle) का बना होता है। खण्डों में प्रायः संघित उपांगों (Jointed appendages) के जोड़े लगे रहते हैं। इसलिए इसे आथ्रोपोडा (Arthropoda , arthros = Joint , Podos = Foot) कहा जाता है।
- इनमें देहगुहा एक रुधिर गुहा (Haemocoel) होती है जो रक्तवाहिनियों के मिलने से बनी है।
- इनमें आहारनाल पूर्ण होती है। मुख के चारों ओर मुखांग (Mouth parts) होते हैं जो जन्तु के आवश्यकतानुसार छेदने, चूसने या चबाने के लिए अनुकूलित होते हैं।
- इनमें पेशीतंत्र (Muscular system) विकसित होता है।
- इनमें खुला रुधिर तंत्र (Open blood Vascular System) होता है।
- इनका हृदय लम्बा तथा संकुचनशील रहता है।
- इनमें श्वसन क्रिया शरीर की सतह द्वारा जलीय जीवों में क्लोमों (Gills) द्वारा और स्थलचर प्राणियों में शवासनलियों (Tracheae) या पुस्तक फुप्फुसों (Book lungs) द्वारा होती है।
- इनमें उत्सर्जन क्रिया मैलपीगियन नलिकाओं (Malpighian tubules) द्वारा या हरित ग्रन्थियों (Green glands) द्वारा होती है।
- इनमें तंत्रिका तंत्र पूर्ण विकसित होता है।
- ये जन्तु सामान्यतः एकलिंगी (Unisexual) होते हैं। इनके जीवन चक्र में लार्वा अवस्था पायी जाती है जो रूपान्तरित होकर वयस्क हो जाता है।
- इनमें निषेचन बाह्य एवं आन्तरिक दोनों प्रकार के होते हैं।
उदाहरण – ट्राइआर्थस (Triarthrus), लिम्यूलस (Limulus), बिच्छू (Scorpion), मकड़ियाँ (Spiders), मक्खी (Musca), मच्छर (Culex and Anopheles), मधुमक्खी (Apis), रेशम का कीड़ा (Silk worm), कनखजूरा (Scolopendra) आदि।
मोलस्का (Mollusca)
मोलस्का शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम अरस्तू (Aristotle) ने कटल फिश के
लिए किया था। मोलस्का अकशेरुकी का दूसरा सबसे बड़ा संघ है। इसकी लगभग 80,000 जीवित जातियाँ
हैं और लगभग 35,000 विलुप्त जातियाँ
जीवाश्म (Fossil) के रूप में पायी
जाती है। इस संघ का नामकरण जोन्स्टन (Johnston) नामक वैज्ञानिक ने 1960 ई. में किया था।
इनका शरीर कोमल होने के कारण इन्हें मोलस्का कहा जाता है।
- जंतु जगत का यह दूसरा सबसे बड़ा संघ है।
- ये प्राणी स्थलीय अथवा जलीय (लवणीय एवं अलवणीय) होते हैं।
- इनका शरीर द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा प्रगुही होता है। इनकी देहगुहा बहुत कम होती है तथा शरीर में थोड़ा विखंडन होता है।
- शरीर कोमल होता है जो कठोर कैल्सियम के कवच द्वारा ढका रहता है।
- इनमें खुला संवहन तंत्र पाया जाता है एवं श्वसन तथा उत्सर्जन कार्य भी होते हैं।
- मुँह में भोजन हेतु रेतीजिह्वा (Radula) पाई जाती है जो रेती के समान घिसने का कार्य करती है। सिर पर संवेदी स्पर्शक (Sensory Tentacles) पाए जाते हैं।
- सामान्यत: नर एवं मादा पृथक होते हैं तथा मादा अंडे देने वाले होते हैं।
- इनमें श्वसन क्रिया जल क्लोम (Gills) या फुफ्फुस (Lungs) द्वारा होती है।
- इनका हृदय पृष्ठ भाग में हृदयावरण (Pericardium) के अंदर होता है।
- इनके तंत्रिका तंत्र में तीन जोड़ी गुच्छिकाएँ (Ganglia) होती है। ये गुच्छिकाएँ तंत्रिकाओं और योजनिकाओं (Connectives) द्वारा जुड़ी रहती है।
- ये प्रायः एकलिंगी होते हैं परन्तु कुछ जन्तु द्विलिंगी भी होते हैं।
- इनमें प्रजनन अलैंगिक विधि द्वारा नहीं होता है।
- इनमें उत्सर्जन वृक्कों (Kidney) द्वारा होता है।
- इनकी आहारनाल पूर्ण होती है और यह U के आकार की होती है। आहारनाल से सम्बद्ध एक पाचनग्रन्थि (Digestive gland) होती है।
उदाहरणः पाइला या सेब घोंघा (Pila), पिकटाडा या
ओयस्टर (Pearl Oyster), सीपिया (Cuttle Fish), लोलिगो (Squid), ऑक्टोपस (Devilfish), एप्लिसिया (Sea Hare), डेंटेलियम (Tusk Shell), काइटीन (Chiton)
एकाइनोडर्मेटा (Echinodermata)
इस संघ के जंतु सामान्यतः समुद्री होते हैं तथा इनकी त्वचा
पर कटिकाएँ पायी जाती हैं। त्वचा पर कटिकाएँ पाये जाने के कारण ही इस संघ का नाम
एकाइनोडर्मेटा (Echinos=
Spines ; Dermatos = Skin) पड़ा। एकाइनोडर्मेटा संघ का नामकरण जैकोब क्लिन
(Jacob klein) नामक वैज्ञानिक
ने 1738 ई. में किया। इस
संघ के जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- इस संघ के प्राणियों में कैल्सियमयुक्त हड्डी से बना अंतःकंकाल (Endoskeleton) पाया जाता है, इसलिये इनका नाम एकाइनोडर्मेटा (काँटायुक्त शरीर) पड़ा।
- ये सभी समुद्री जीव हैं एवं इनमें अंगतंत्र स्तर का संगठन पाया जाता है।
- ये त्रिकोरिकी तथा देहगुहायुक्त प्राणी होते हैं। इनमें पाचन तंत्र पूर्ण होता है एवं स्पष्ट उत्सर्जन तंत्र का अभाव होता है।
- एम्बुलैक्रल तंत्र या जल संवहन तंत्र (Water Vascular System) इस संघ की विशेषता है, जो गमन, भोजन ग्रहण तथा श्वसन में सहायक होता है।
- नर एवं मादा पृथक् होते हैं।
- इनमें आहारनाल प्रायः कुण्डलित (Coiled) होता है।
- इनमें उत्सर्जन अंग नहीं पाये जाते हैं।
- इनमें तंत्रिका तंत्र अल्प विकसित होता है।
- इनमें नर और मादा अलग-अलग होते हैं।
- इनमें लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction) होता है।
- इनमें अंतः निषेचन (Internal fertilization) होता है।
- इनमें परिवर्द्धन प्रत्यक्ष (Direct) या परोक्ष (Indirect) रूप में होता है।
- जीवन चक्र में जब लार्वा अवस्था आती है तब लार्वा रूपान्तरित होकर वयस्क में परिवर्तित हो जाता है।
- इस संघ के जन्तुओं में पुनरुद्भवन (Regeneration) की क्षमता होती है।
उदाहरण- तारा मछली (Star fish), ब्रिटल स्टार (Brittle star), समुद्री अर्चिन (sea urchin), समुद्री खीरा (Sea cucumber), कुकुमेरिया (Cucumaria), थायोन (Thyone), एंटीडॉन (Antidon) आदि।
हेमीकॉर्डेटा (Hemichordata):
हेमीकॉड्रेटा ग्रीक भाषा के दो शब्दों Hemi तथा Chordata से बना है Hemi का अर्थ अर्ध (Half) तथा Chordata के अर्थ रस्सी (cord, string) है।
हेमीकॉड्रेटा को अर्धरज्जुकी (Half Chordata) भी कहा जाता है।
इसे पहले कॉर्डेटा संघ के अंतर्गत उप-संघ में रखा गया था, परंतु अब इसे एक
अलग संघ के अंतर्गत नॉन-कॉर्डेटा में डाल दिया गया है।
- ये समुद्री जीव हैं जो कृमि के समान होते हैं।
- इनका संगठन अंगतंत्र स्तर का होता है। ये द्विपार्श्वसममित, त्रिकोरिक तथा देहगुहा युक्त प्राणी हैं।
- इनका शरीर बेलनाकार होता है तथा परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है। नर एवं मादा अलग-अलग होते हैं।
- उत्सर्जन तंत्र: सूंड में स्थित एकल ग्लोमेरुलस द्वारा उत्सर्जन किया जाता है।
- पाचन तंत्र: उनके पास एक पूर्ण पाचन तंत्र होता है, आमतौर पर एक सीधी या यू-आकार की ट्यूब के रूप में।
- प्रजनन: हेमीकोर्डेट्स मुख्य रूप से अलग-अलग लिंगों के साथ यौन प्रजनन करते हैं। उनके पास एक से कई जोड़े गोनाड हो सकते हैं। समुद्री जल में निषेचन बाह्य रूप से होता है। विकास या तो प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हो सकता है, बाद वाले मामले में एक मुक्त-तैराकी टॉरनेरिया लार्वा की उपस्थिति के साथ।
उदाहरणः बैलेनोग्लोसस (Balanoglossus), सैकोग्लोसस (Saccoglossus)
कॉर्डेटा (Chordata)
इस संघ के अन्तर्गत उन जन्तुओं को रखा जाता है जिनके जीवन
चक्र की किसी-न-किसी अवस्था में एक पृष्ठ रज्जु एवं एक खोखली पृष्ठ तंत्रिका रज्जु
(Dorsal tubular nerve
chord) पायी जाती है।
कॉर्डेटा को तीन उपसंघों में विभाजित किया गया है-
यूरोकॉर्डेटा (Urochordata)
सिर्फ लार्वा की
पूँछ में नोटोकार्ड उपस्थित रहता है। उदाहरणः एसिडिया, सैल्पा, डोलिओलम
सिफैलोकॉर्डेटा (Cephalochordata)
पूरे जीवन काल
में सिर से पूँछ तक नोटोकार्ड उपस्थित रहता है। उदाहरणः ब्रैकिओस्टोमा
(एम्फीऑक्सस)
कशेरुकी/वर्टीब्रेटा (Vertebrata)
सिर्फ भ्रूण
अवस्था (Embryonic
Period) के समय नोटोकार्ड उपस्थित रहता है। वयस्क होने पर यह
नोटोकार्ड एक अस्थिल या उपास्थिल मेरुदंड (Vertebral Column) में परिवर्तित हो जाता है, जिसे बैकबोन कहते
हैं।
कॉर्डेटा संघ के जन्तुओं के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- इनके जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में एक पृष्ठरज्जु (Notochord) अवश्य पायी जाती है। पृष्ठ-रज्जु का विकास मीसोडर्म (Mesoderm) से होता है।
- इनके जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में एक पृष्ठ नालाकार केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र अवश्य पाया जाता है। भ्रूणीय विकास में इसका निर्माण एक्टोडर्म (Ectoderm) से होता है। विकसित होने पर इसके चारों ओर कशेरुक दण्ड का निर्माण होता है।
- इस संघ के जन्तुओं में जीवन की किसी-न-किसी अवस्था में क्लोम दरारें अवश्य पायी जाती हैं।
- इनमें पूर्ण विकसित रक्त परिसंचरण तंत्र पाया जाता है जो बंद प्रकार (Closed type) का होता है।
- इनमें पूर्ण विकसित मस्तिष्क एवं तंत्रिका तंत्र पाया जाता है।
- संघ कार्डेटा एक काफी बड़ा एवं महत्वपूर्ण संघ है।
- अध्ययन की सुविधा हेतु इसे पुनः 13 वर्गों में विभाजित किया गया है
उदाहरण – शार्क (Scoliodon), टॉरपीडो (Torpedo), रोहू (Labeo), कतला (Catla), भेटकी (Bhetki), हिप्पोकैम्पस (Hippocampus), एनाबस (Anabas), मांगुर (Clarias), गरई (Ophiocephalus), सिंगी (Hetero pneustes), प्रोटोप्टेरस (Protopterus) आदि
कशेरुकी किसे कहते है?
वे प्राणी जिनमे मेरुदंड या कशेरुकदंड (Vertebral column) या रीढ़ की हड्डी
पायी जाती है उन्हें उन्हें कशेरुकी जंतु कहते है।
मेरुदण्ड क्या होता है?
कशेरुकियो में डंडे के समान हड्डियों का एक संरचना होता है
जिसे मेरुदंड कहा जाता है और इस मेरुदंड के अन्दर से तंत्रिकाओ का गुच्छा ऊपर से
नीचे की तरफ आता है जिसे मेरुरज्जु (Spinal cord) कहा जाता है।
सामान्य लक्षण –
- कशेरुकियों में पृष्ठरज्जु भ्रूणीय अवस्था में पायी जाती है और यह पृष्ठरज्जु वयस्क अवस्था में मेरुदंड में परिवर्तित हो जाती है।
- सभी कशेरुकी रज्जुकी है लेकिन सभी रज्जुकी कशेरुकी नही है।
- इनमे पेशीय ह्रदय अधर भाग में पाया जाता है जो दो, तीन और चार कोष्ठ्कीय होता है।
- इनमे वृक्क (kidney) पाया जाता है जो उत्सर्जन में सहायता करता है।
- इनमे पंख (Fins) या पाद के रूप में दो जोड़ी युग्मित उपांग पाए जाते है।
उपसंघ – वर्टिब्रेटा को दो भागो में बांटा गया है।
1- अनैथोस्टोमेटा (Agnathostomata)-
ऐसे रीढ़ की हड्डियों वाले प्राणी जिनके मुख में जबड़े नही
होते है उन्हें अनैथोस्टोमेटा कहा जाता है, और ऐसे प्राणियों जबड़े न होने के कारण इनका मुख गोल होता
है। इसका वर्ग साइक्लोस्टोमेटा है।
2- नैथोस्टोमेटा (Gnathostomata) –
ऐसे रीढ़ की हड्डियों वाले प्राणी जिनके मुख में जबड़े होते
है उन्हें नैथोस्टोमेटा कहा जाता है। ये दो प्रकार के होते है।
1. पिसीज
2. टेट्रापोडा
पिसीज – ऐसे नैथोस्टोमेटा प्राणी जिनमे पंख पाये जाते है उन्हें
पीसीज में रखा गया है। इसमें मछलियों को रखा गया है। इसके दो वर्ग है।
1. कान्ड्रीक्थीज – ये वे प्राणी है
जिनका अन्तः कंकाल उपस्थियों से बना होता है।
2. ओस्टिक्थीज – ये वे प्राणी है
जिनका अन्तः कंकाल हड्डियों से बना होता है।
टेट्रापोडा – ऐसे नैथोस्टोमेटा प्राणी जिनमे पाद या उपांग (अग्र्पाद और
पश्च पाद) पाए जाते है। इसके चार वर्गो में बांटा गया है।
1. एम्फिबिया (उभयचर)
2. रेप्टिलिया (सरीसृप)
3. एवीज
4. मैमेलिया (स्तनधारी वर्ग)
वर्ग साइक्लोस्टोमेटा (Class Cyclostomata)-
सामान्य लक्षण –
- इस वर्ग के सभी प्राणी कुछ मछलियों के बाह्य परजीवी होते है।
- इनमे श्वसन के लिए 6-15 जोड़ी क्लोम छिद्र पाए जाते है।
- इनमे बिना जबड़े का चूषक और वृत्ताकार मुख मिलता है।
- इनमे शल्क और यूग्मित पंख नहीं पाए जाते है।
- इनका कपाल और मेरुदंड उपास्थि से बना होता है।
- इनका परिसंचरण तंत्र बंद प्रकार का होता है।
- ये सनुद्र में मिलते है किन्तु जनन के लिए साफ़ जल में जाते है और जनन के बाद वे मर जाते है और लार्वा कायांतरण (मेटामारफ़ोसिस) के बाद समुद्र में लौट जाते है।
उदाहरण – पेट्रोमाइजॉन (लैम्प्रे) और मिक्सीन (हैग फिश)।
वर्ग कान्ड्रीक्थीज (Class Chondrichthyes) –
सामान्य लक्षण –
- ये समुद्री प्राणी है जो सभी के सभी मछलियाँ है जिनका अन्तः कंकाल उपस्थियों का बना होता है।
- इनका मुख अधर पर स्थित होता है।
- इनमे मेरुदंड पूरे जीवन भर पायी जाती है।
- इनमे क्लोम छिद्र प्रच्छद से ढके नहीं होते है। प्रच्छद का मतलब, क्लोम छिद्र के ऊपर मिलने वाली झिल्ली को प्रच्छद कहते है। जो इसमें नही मिलती है।
- इनके त्वचा दृढ़ होती है और पट्टाभ शल्कयुक्त होती है एवं इनके दन्त इन्ही पट्टाभ शल्क या त्रिसूल के समान शल्क के रूपांतरण से बनते है जो पीछे की ओर मुड़े होते है।
- इनके जबड़े बहुत मजबूत होते है।
- इनमे वायु कोष नही पाए जाते है इस कारण डूबने से बचने के लिए इन्हें लगातार तैरना पड़ता है।
- इनमे ह्रदय दो कोष्ठक से बना होता है जिसमे एक अलिंद और दूसरा निलय होता है।
- ये सभी असमतापी (Stenothermal) होते है जिनमे शरीर का ताप नियंत्रित करने की क्षमता नही होती है।
- ये एक लिंगी होते तथा नर में श्रोणि पंख में आलिंगक (क्लेस्पर) पाए जाते है जो जनन में सहायता करते है।
- इनमे निषेचन आंतरिक होता है तथा सभी जरायुज होते है। यानि की बच्चो को जन्म देते है।
उदाहरण – स्कारलियोडोन (कुत्ता मछली), प्रीस्टिस (आरा मछली) कारकेरोडोन (विशाल सफ़ेद
शार्क) ट्राइगोन (व्हेल शार्क)।
इस वर्ग के कुछ प्राणियों में विद्दुत अंग होते है। जैसे – टारपीडो और कुछ
में विष दंश पाए जाते है। जैसे – ट्रॉयगोन।
वर्ग ओस्टिक्थीज (Class Osteichthyes) –
सामान्य लक्षण –
- ये प्राणी लवणीय तथा अलवणीय दोनों प्रकार के जल में पाए जाते है। ये भी सभी मछलियाँ है, जिनका अन्तः कंकाल अस्थिल होता है।
- इनका मुख अग्र सिरे पर स्थित होता है।
- इनमे चार जोड़ी क्लोम छिद्र पाए जाते है। जो प्रच्छद से ढके होते है।
- इनकी त्वचा साइक्लोइड शल्क (गोलाकार शल्क) से ढकी होती है।
- इनमे वायु कोष पाए जाते है जो उत्प्लावन (तैरने) में सहायता करते है।
- इनका ह्रदय दो कोष्ठको से बना होता है जिसमे एक अलिंद तथा दूसरा निलय होता है।
- ये सभी असमतापी होते है मतलब जिनमे शरीर का तापमान नियंत्रित करने की क्षमता नही होती है।
- ये एक लिंगी होते है और निषेचन बाहर होता है तथा ज्यदातर अंडज होते है।
उदाहरण – समुद्री – एक्सोसिटस (उड़न मछली) हिपोकेम्पस (समुद्री घोडा)। अलवणीय – लेबियो (रोहू), क़तला, कलेरियस (मांगुर), एक्वोरियम बेटा
(फाइटिंग फिश), पेट्रोप्इसम
(एंगज मछली)।
वर्ग एम्फिबिया (Class Amphibia) –
सामान्य लक्षण –
- ये प्राणी स्थल और जल दोनों में पाए जाते है।
- इनका शरीर सिर और धड़ में विभाजित होता है और इनमे दो जोड़ी पैर पाए जाते है।
- इनमे से कुछ प्राणियों में पूँछ उपस्थित होती है।
- इनकी त्वचा नम होती है और नेत्र पलक वाले होते है।
- इनमे कर्ण की जगह कर्णपटल होता है।
- इनमे आहार नाल, मूत्राशय तथा जनन पथ का एक कोष्ठ पाया जाता है जिसे अवस्कर (क्लोका) कहते है।
- इनमे श्वसन क्लोम, फुफ्फुस तथा त्वचा के द्वारा होता है।
- इनमे ह्रदय तीन कोष्ठक का होता है।
- ये असमतापी, एक लिंगी होते है तथा निषेचन बाहर होता है।
- उदाहरण – बूफो (टोड), राना टिग्रिना (मेढक), हायला ( वृक्ष मेढक) सैलेमेन्ड्रा (सैलेमेडर), एक्थियोफिस (पादरहित उभयचर)।
वर्ग सरीसर्प (Class Reptile) –
सामान्य लक्षण –
- ये प्राणी सरकने और रेंगने के द्वारा गमन करते है।
- ये स्थलीय और जलीय दोनों होते है जिनके शरीर पर शुष्क शल्क पाए जाते है जो किरेटिन नामक प्रोटीन से बने होते है। इस वजह से बहुत कठोर होते है।
- इनमें भी कर्णपटल पाए जाते है।
- इनमे दो जोड़ी पाद पाए जा सकते है।
- इनका ह्रदय तीन कोष्ठक में होता है किन्तु मगरमच्छ में चार कोष्ठक होता है।
- ये असमतापी होते है, सर्प तथा छिपकली अपनी शल्क को त्वचीय केंचुल के द्वारा छोड़ते है।
- ये एकलिंगी होते है और निषेचन आंतरिक होता है। ये सब अंडे होते है।
- उदाहरण – किलोन (टर्टल), तेस्ट्युडो (टोरटोइज), केमलियान (वृक्ष छिपकली), केलोटस (बगीचे की छिपकली) ऐलीगेटर), क्रोकोडाइलस (घड़ियाल), हेमीडेक्टायलस (घरेलु छिपकली) जहरीले सर्प – नाजा (कोबरा), वगैरस (क्रेत), वाइपर।
वर्ग एवीज (Class Aves) –
सामान्य लक्षण –
- एवीज का मुख्य लक्षण शरीर के ऊपर पंखो की उपस्थिति तथा उड़ने की क्षमता है ( कुछ नही उड़ने वाले पक्षी जैसे – ऑस्ट्रिच/शुतुरमुर्ग को छोड़कर)।
- इनमे चोंच पायी जाती है।
- अग्र्पाद रूपांतरित होकर पंख बनाते है।
- पश्चपाद में सामान्यतः शल्क होते है जो रूपांतरित होकर चलने, तैरने तथा पेड़ो की शाखाओ को पकड़ने में सहायता करते है।
- इनकी त्वचा शुष्क होती है, पूँछ में तेल ग्रंथि को छोड़कर कोई और त्वचा ग्रंथि नही पाई जाती है।
- अन्तः कंकाल की लम्बी अस्थियाँ खोखली होती है तथा वायुकोष युक्त होती है।
- इनके पाचन पथ में सहायक संरचना क्रॉप और पेषणी होती है।
- इनका ह्रदय पूर्ण चार प्रकोष्ठ का बना होता है।
- यह समतापी (होमियोथर्मस) होते है अर्थात् इनके शरीर का ताप नियत बना रहता है।
- इनमे श्वसन फुफ्फुस के द्वारा होता है।
उदाहरण – कार्वस (कौआ), कोलुम्बा (कपोत) सिटिकुला (तोता), स्ट्रियिओ
(ऑस्ट्रिच), पैवो (मोर), एटीनोडायटीज
(पेग्विन), सूडोगायपस
(गिद्ध)।
वर्ग मैमेलिया (Class Mammalia) –
सामान्य लक्षण –
- इस वर्ग के प्राणी सभी प्रकार के वातावरण में पाए जाते है जैसे ध्रुवीय ठंडे भाग, रेगिस्तान, जंगल, घास के मैदान तथा अँधेरी गुफाओ में।
- स्तनधारियो का सबसे मुख्य लक्ष्ण दूध उत्पन्न करने वाली ग्रंथि (स्तन ग्रंथि) है जिनसे बच्चे पोषण प्राप्त करते है।
- इनमे दो जोड़ी पाद मिलते है जो चलने – दौड़ने, वृक्ष पर चढ़ने के लिए, अनुकूलित होते है।
- इनकी त्वचा पर रोम पाए जाते है।
- इनमे से कुछ में उड़ने तथा पानी में रहने का अनुकूलन होता है।
- इनमे बाह्य कर्णपल्लव पाए जाते है।
- जबड़े में विभिन्न प्रकार के दांत जो मसूड़ो की गर्तिका में लगे होते है।
- ह्रदय चार प्रकोष्ठ का होता है। दो अलिंद और दो निलय होता है।
- श्वसन की क्रिया पेशीय डायफ्राम के द्वारा खुली होती है।
- लिंग अलग होते है और निषेचन आन्तरिक होता है।
- कुछ को छोड़कर सभी स्तनधारी बच्चे को जन्म देते है (जरायुज) तथा विकास प्रत्यक्ष होता है। Platypus और Echidna अंडज होते है।
उदाहरण – जरायुज – मैक्रोपस (कंगारू), टैरोपस (प्लाइंग फौक्स), केमिलस (ऊँट), मकाका (बन्दर), रेट्स (चूहा), केनिस (कुत्ता), फेसिस (बिल्ली), एलिफस।