जनन जीवों में जनन कक्षा 12वी |Reproduction in Living Organisms

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जनन जीवों में जनन कक्षा 12वी

जनन जीवों में जनन कक्षा 12वी |Reproduction in Living Organisms



जनन जीवों में जनन 


प्रश्न जीवों के लिए जनन क्यों अनिवार्य है? 

उत्तर : 

कोई भी जीव अमर ( immortal) नहीं होता उसकी एक निश्चित जीवन-अवधि होती है। जीव मरते हैं लेकिन प्रजाति की निरन्तरता बनी रहती है। प्रजनन प्रजाति की निरन्तरता सुनिश्चित करता है। यह मृत्यु के रूप में हुई जीव-हानि को गौण (secondary) बना देता है।

 

दूसरे, प्रजनन से उत्पन्न हुई विभिन्नताएँ जीव को बदले पर्यावरण में सफल जीवनयापन हेतु सक्षम बनने के अवसर देती हैं। (अर्थात् ये जीवों के विकास में सहायक हैं)।

 

प्रश्न 2. जनन की अच्छी विधि कौन-सी है और क्यों

उत्तर : जीवों में सामान्यतया जनन दो प्रकार से होता है 

अलैंगिक जनन (asexual reproduction) 

(ii) लैंगिक जनन (sexual reproduction )

 

जीवों में जनन के लिए लैंगिक जनन विधि को अच्छा माना जाता है, इस विधि में विपरीत लिंग (sex) वाले दो जनक (parents) भाग लेते हैं। इनमें नर तथा मादा युग्मकों का संयुग्मन (fusion) होता है। संयुग्मन के फलस्वरूप बने युग्माणु या युग्मनज (zygote) से नए जीव का विकास होता है। युग्मक तथा युग्मनज निर्माण के समय गुणसूत्रों की जीन संरचना में भिन्नता आ जाने के कारण संतति पूर्ण रूप से अपने जनक के समान नहीं होती। संतति में उत्पन्न होने वाली भिन्नताएँ (variations) जैव विकास का आधार होती हैं। ये भिन्नताएँ जीव को बदले पर्यावरण में भी सफल जीवनयापन के अवसर प्रदान करती हैं तथा संकर ओज प्रदान करती हैं।

 

प्रश्न 3. अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न हुई संतति को क्लोन क्यों कहा गया है

उत्तर : इस विधि में केवल समसूत्री विभाजन (mitosis) शामिल होता है अतः इसके द्वारा उत्पन्न संतति एक-दूसरे के समरूप एवं पूर्णरूप से अपने जनक के समान होती है। आकारिकीय (morphological) तथा आनुवंशिक (genetically) रूप से समान जीवों को क्लोन (clone) कहते हैं। अतः अलैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति को क्लोन कहा जाता है।

 

प्रश्न 4. लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं, क्यों ? क्या यह कथन हर समय सही होता है

उत्तर : लैंगिक जनन (sexual reproduction) में विपरीत लिंग वाले तथा भिन्न आनुवंशिक संगठन वाले जीवों की आवश्यकता होती है। लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति अपने जनकों के अथवा आपस में भी समरूप (identical) नहीं होती, इनमें विभिन्नताएँ (variations) पायी जाती हैं। यह विभिन्नता युग्मक निर्माण के समय होने वाले अर्द्धसूत्री विभाजन में जीन विनिमय (crossing over), गुणसूत्रों का पृथक्करण तथा युग्मकों के यादृच्छिक संलयन (random fusion) के कारण उत्पन्न होती है।

 

ये विभिन्नताएँ जीव को बदले पर्यावरण में सफल उत्तरजीविता की सम्भावनाएँ प्रदान करती हैं। लैंगिक जनन प्रायः अच्छे अवसर ही प्राप्त कराता है। हानिकारक लक्षण धीरे-धीरे समष्टि से विलुप्त हो जाते हैं, लेकिन पर्यावरण की भी इसमें महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। लक्षणों का चुना जाना (अच्छा होना या न होना) पर्यावरण पर भी निर्भर करता है। कुल मिलाकर लैंगिक जनन के 'परिणामस्वरूप बनी संतति को जीवित रहने के अच्छे अवसर होते हैं।

 

प्रश्न 5. अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति लैंगिक जनन द्वारा बनी संतति से किस प्रकार भिन्न है

उत्तर : (i) 

अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति एक-दूसरे के और अपने जनक के समरूप (identical) होती है। इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति एक-दूसरे से और अपने जनकों के समरूप नहीं होती।

 

(ii) अलैंगिक जनन द्वारा बनी संतति आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे के समरूप या क्लोन होती है। इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न संतति आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे के समरूप नहीं होती, इनमें विभिन्नताएँ पायी जाती हैं।

 

प्रश्न 6. अलैंगिक तथा लैंगिक जनन के मध्य विभेद स्थापित कीजिए । कायिक जनन को प्रारूपिक अलैंगिक जनन क्यों माना गया है ?

 

उत्तर : 

अलैंगिक तथा लैंगिक जनन में अन्तर 

(Differences between Asexual and Sexual Reproduction)

 

अलैंगिक जनन (Asexual Reproduction) 

  1. इसमें एकल जीव संतति उत्पन्न करने की क्षमता रखता है। जनन इकाई कलिका (bud), शरीर खण्ड (body segment), बीजाणु (spores), कोनीडिया (conidia), जेम्यूल (gemmules) आदि होती हैं। 
  2. युग्मकजनन की प्रक्रिया नहीं होती। 
  3. जनन असूत्री या समसूत्री विभाजन द्वारा होता है। 
  4. संतति आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे के समरूप होती हैं। 
  5. जनन इकाइयों का संयुग्मन या संलयन नहीं होता । 
  6. आनुवंशिक विभिन्नताओं के अभाव में अलैंगिक जनन जैव विकास में सहायक नहीं होता।

 

लैंगिक जनन (Sexual Reproduction) 

  • इसमें प्राय: दो विपरीत लिंग वाले जनक भाग लेते हैं। जनन इकाई युग्मक (gemetes) होते हैं। 
  • युग्मकजनन द्वारा युग्मक (शुक्राणु, अण्डाणु) बनते हैं। जनन इकाइयों का संलयन होता है। 
  • जनन अर्द्धसूत्री तथा समसूत्री विभाजन द्वारा होता है। 
  • संतति आकारिकीय तथा आनुवंशिक रूप से एक-दूसरे से तथा जनकों से भिन्न होती हैं। 
  • आनुवंशिक विभिन्नताओं के कारण लैंगिक जनन जैव विकास में सहायक होता है।

 

कायिक जनन 

कायिक जनन में पौधे का कोई कायिक भाग (vegetative part) पौधे से पृथक् होकर संतति पादप का निर्माण करता है। इन संरचनाओं को कायिक प्रवर्ध (प्रोपेग्यूल) कहते हैं। इन संरचनाओं के निर्माण में दो जनक भाग नहीं लेते; साथ ही कायिक जनन से बनी संतति आकारिकी व आनुवंशिक गुणों में अपने जनकों के समान या क्लोन होती है तथा इसमें युग्मक निर्माण व युग्मक संलयन नहीं होता। अतः कायिक जनन अलैंगिक जनन ही माना जाता है।

 

प्रश्न 7. कायिक प्रवर्धन से क्या समझते हैं? कोई दो उपयुक्त उदाहरण दीजिए। 

उत्तर : कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation) – 

यह अलैंगिक जनन का एक प्रकार होता है, जिसमें सन्तति निर्माण पौधों के कायिक भागों या वर्षी भागों (vegetative parts) से होता है अतः यह कायिक जनन कहलाता है। प्राकृतिक कायिक जनन (प्रवर्धन) पौधों की जड़, स्तम्भ अथवा पत्तियों से हो सकता है। आलू के स्वस्थ कन्द (tuber) में उपस्थित छोटे-छोटे गड्ढों में कलिकाएँ पायी जाती हैं। आलू को बोने पर अपस्थानिक कलिकाएँ विकसित होकर नए पौधे बनाती हैं। अदरक का भूमिगत तना प्रकन्द (rhizome) कहलाता है। प्रकन्द की पर्वसन्धियों पर स्थित अपस्थानिक कलिकाएँ विकसित होकर नया पौधा बना देती हैं।

 

प्रश्न 8. व्याख्या कीजिए--

 

(क) किशोर चरण, (ख) प्रजनक चरण(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था

 

उत्तर : 

(क) किशोर चरण (Juvenile phase ) -

सभी जीवधारी लैंगिक रूप से परिपक्व होने से पूर्व एक निश्चित वर्षी अवस्था से होकर गुजरते हैं, इसके पश्चात् ही वे लैंगिक जनन कर सकते हैं। इस अवस्था को प्राणियों में किशोर चरण या अवस्था तथा पौधों में कायिक अवस्था (vegetative phase) कहते हैं। इसकी अवधि विभिन्न जीवों में भिन्न-भिन्न होती है।

 

(ख) प्रजनक चरण (Reproductive phase ) - 

किशोरावस्था अथवा कायिक प्रावस्था के समाप्त होने पर प्रजनक खरण अथवा जनन प्रावस्था प्रारम्भ होती है। पौधों में इस अवस्था में पुष्पन (flowering) प्रारम्भ हो जाता है। मनुष्य में यौवनारम्भ (puberty) से इसका प्रारम्भ होने लगता है जिसमें अनेक शारीरिक एवं आकारिकीय परिवर्तन आ जाते हैं। इस चरण में जीव, संतति उत्पन्न करने योग्य हो जाता है। यह अवस्था विभिन्न जीवों में अलग-अलग होती है अर्थात् किशोर चरण व जीर्णावस्था के बीच की अवस्था ही प्रजनन अवस्था होती है। स्तनियों में मदचक्र या ऋतुचक्र के प्रारम्भ से मेनोपॉज तक प्रजनक चरण कहलाता है।

 

(ग) जीर्णता चरण या जीर्णावस्था (Senescent phase ) — 

यह जीवन चक्र की अन्तिम अवस्था अथवा तीसरी अवस्था होती है। प्रजनन आयु की समाप्ति को जीर्णता चरण या जीर्णावस्था की प्रारम्भिक अवस्था माना जा सकता है। इस चरण में प्रजनन क्षमता के साथ-साथ उपापचय क्रियाएँ मन्द होने लगती हैं, ऊतकों का क्षय होने लगता है। शरीर के अंग धीरे-धीरे कार्य करना बन्द कर देते हैं और अन्ततः जीव की मृत्यु हो जाती है। इसे वृद्धावस्था भी कहते हैं। 


प्रश्न 9. अपनी जटिलता के बावजूद बड़े जीवों ने लैंगिक प्रजनन को अपनाया है, क्यों? 

उत्तर : 

लैंगिक जनन (Sexual reproduction) अलैंगिक जनन की तुलना में जटिल, विस्तृत तथा धीमी प्रक्रिया होती है। यह अधिक ऊर्जा व संसाधनों की भी माँग करता है लेकिन फिर भी जटिल पादपों व जन्तुओं ने इसी को अपनाया है। संतति परस्पर तथा अपने जनकों के समरूप ( identical) नहीं होती, इनमें विभिन्नताएँ (variations) पायी जाती हैं। विभिन्नताओं के कारण जीवधारी स्वयं को अपने वातावरण से अनुकूलित किए रहते हैं। विभिन्नताओं के कारण जीवों की जीवन शक्ति (vigour and vitality) की वृद्धि होती है। विभिन्नताओं के कारण ही जैव विकास होता है। लैंगिक जनन जीवधारियों को प्रतिकूल परिस्थितियों में जीवित रहने में सहायक होता है। यही कारण है बड़े जीवधारियों ने शारीरिक जटिलता के साथ-साथ लैंगिक जनन को अपनाया है।

 

प्रश्न 10. व्याख्या करके बताएँ कि अर्द्धसूत्री विभाजन तथा युग्मकजनन सदैव अन्तर सम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होते हैं। 

उत्तर : लैंगिक जनन करने वाले जीवधारियों में प्रजनन के समय अर्द्धसूत्री विभाजन ( meiosis) तथा युग्मकजनन (gametogenesis) प्रक्रियाएँ होती हैं। सामान्यतया लैंगिक जनन करने वाले जीव द्विगुणित (diploid) होते हैं। इनमें युग्मक निर्माण अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा होता है। युग्मकों में गुणसूत्रों की संख्या आधी रह जाती है, अर्थात् युग्मक अगुणित (haploid) होते हैं। अतः युग्मकजनन तथा अर्द्धसूत्री विभाजन क्रियाएँ अन्तरसम्बन्धित (अन्तर्बद्ध) होती हैं। निषेचन के फलस्वरूप नर तथा मादा अगुणित युग्मक संयुग्मन द्वारा द्विगुणित युग्मनज (diploid zygote) बनाता है। द्विगुणित युग्माणु से भ्रूणीय परिवर्धन द्वारा नए जीव का विकास होता है। अर्द्धसूत्री विभाजन, किसी प्रजाति में गुणसूत्र संख्या लैंगिक जनन के दौरान स्थिर बनाए रखने में मदद करता है। अगुणित जीवों में युग्मक निर्माण सूत्री विभाजन द्वारा तथा जाइगोटिक अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। 


प्रश्न 11. प्रत्येक पुष्पीय पादप के भाग को पहचानिए तथा लिखिए कि वह अगुणित (n) है या द्विगुणित (2n )  

  • अण्डाशय 
  • परागकण 
  • परागकोश 
  • नर युग्मक 

उत्तर : 

पुष्पीय भाग- 

(क) अण्डाशय (Ovary ) — द्विगुणित (2n) 

(ख) परागकोश (Anther ) — द्विगुणित (2n) 

(ग) अण्डा या डिम्ब (Ova) - अगुणित (n) 

(घ) परागकण (Pollen grain ) -- अगुणित (n) 

(ङ) नर युग्मक (Male gamete ) — अगुणित (n) 

(च) युग्मनज (Zygote ) — द्विगुणित (2n)

 

(युग्मनज (zygote) शुक्राणु तथा अण्ड के मिलने से बनी द्विगुणित संरचना (2n) होती है।] 


प्रश्न 12. बाह्य निषेचन की व्याख्या कीजिए। इसके नुकसान बताइए।

 

उत्तर : 

बाह्य निषेचन (External Fertilization ) - 

जीव शरीर से बाहर जलीय माध्यम में होने वाला निषेचन बाह्य निषेचन कहलाता है। अधिकांश शैवालों, मछलियों में और उभयचर प्राणियों में शुक्राणु (नर युग्मक) तथा अण्ड (मादा युग्मक) का संलयन शरीर से बाहर जल में होता है, इसे बाह्य निषेचन (external fertilization) कहते हैं।

 

आन्तरिक निषेचन (Internal Fertilization ) - 

अधिकांश प्राणियों और पादपों में युग्मक संलयन या निषेचन मादा जीव शरीर के अन्दर सम्पन्न होता है; जैसे-स्तनी, पक्षी, सरीसृपों तथा पुष्पी पौधों आदि में।

 

बाह्य निषेचन से हानियाँ (Disadvantages of External Fertilization ) -

(i) जीवधारियों को अत्यधिक संख्या में युग्मकों का निर्माण करना होता है जिससे निषेचन के अवसर बढ़ जाएँ अर्थात् इनमें युग्मक संलयन के अवसर कम होते हैं। ऊर्जा व संसाधनों का अपव्यय होता है। 

(ii) संतति शिकारियों द्वारा शिकार होने की स्थिति से गुजरती है, इसके फलस्वरूप इनकी उत्तरजीविता जोखिमपूर्ण होती है अर्थात् सन्तानें कम संख्या में जीवित रह पाती हैं, अर्थात् निषेचन सुनिश्चित नहीं होता । 

(iii) बाह्य पर्यावरण में युग्मक व निषेचन से बना युग्मनज माध्यम की प्रतिकूल परिस्थितियों जैसे उच्च ताप, प्रतिकूल pH, रसायन दाब आदि से प्रभावित होते हैं. 

(iv) युग्मकों की सुरक्षा का कोई प्रबन्ध नहीं होता। अधिकांश युग्मक जलधारा में व्यर्थ बह जाते हैं। 


प्रश्न 13. जूस्पोर (अलैंगिक चलबीजाणु ) तथा युग्मनज के बीच विभेद कीजिए। जूस्पोर (चलबीजाणु) तथा युग्मनज में विभेद (Difference between Zoospore and Zygote)

 

उत्तर : 

चलबीजाणु · (Zoospore) 

  1. इनका निर्माण अलैंगिक जनन के अन्तर्गत होता है। इनमें एक जनक के ही लक्षण होते हैं। 
  2. चलबीजाणु सामान्यतया शैवालों में बनते हैं। इनका निर्माण जनन कोशिका में सूत्री विभाजन द्वारा होता है। 
  3. सीलिया ( cilia) या फ्लैजेला (flagella) के कारण चलबीजाणु चल ( motile) होते हैं। 
  4. चलबीजाणु प्रायः अगुणित होते हैं।

 

युग्मनज (Zygote)

 

  • इनका निर्माण लैंगिक जनन के अन्तर्गत होता है। इनमें दोनों जनकों के लक्षण पाए जाते हैं। 
  • युग्मनज का निर्माण सभी जीवों में लैंगिक जनन के समय नर तथा मादा युग्मकों के संलयन के फलस्वरूप होता है। 
  • युग्मनज अचल (non-motile) होते हैं। 
  • युग्मनज हमेशा द्विगुणित होते हैं।

 

14. युग्मकजनन एवं भ्रूणोद्भव के बीच अन्तर स्पष्ट  

उत्तर : 

युग्मकजनन (Gametogenesis) 

  • नर तथा मादा जनदों (gonads) में अगुणित युग्मकों (gametes) के बनने की प्रक्रिया को युग्मकजनन कहते हैं। युग्मक हमेशा अगुणित होते हैं अतः द्विगुणित जीवों में युग्मकजनन अर्द्धसूत्री विभाजन (meiosis) द्वारा होता है ! 
  • युग्मक एककोशिकीय होते हैं। 

युग्मकजनन दो प्रकार का होते है- 

(i) शुक्रजनन (spermatogenesis ) 

(ii) अण्डजनन (oogenesis) |

 

भ्रूणोद्भव (Embryogenesis ) 

  • युग्मनज (zygote) से भ्रूण के विकसित होने की क्रिया को भ्रूणोद्भव कहते हैं। 
  • भ्रूण हमेशा द्विगुणित होता है। इसकी वृद्धि सूत्री विभाजन (mitosis) द्वारा होती है। 
  • भ्रूण बहुकोशिकीय होता है। 
  • इसमें कोशिका विभाजन व विभेदन ( differentiation) शामिल होता है।

 

प्रश्न 15. एक पुष्प में निषेचन पश्च परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए। 

उत्तर : पुष्प में निषेचन पश्च परिवर्तन (Post fertilization changes in a flower ) — निषेचन के फलस्वरूप बीजाण्ड से बीज तथा अण्डाशय से फलावरण (pericarp) का निर्माण होता है। 

बाह्य दलपत्र (sepals), दलपत्र (petals) तथा पुंकेसर सूखकर गिर जाते हैं। युग्मनज (zygote) विभाजन व विभेदन द्वारा भ्रूण ( embryo) में बदल जाता है। 

अण्डाशय की भित्तिफलभित्ति बनाती है।

 

प्रश्न 16. एक द्विलिंगी पुष्प क्या है? अपने आस-पास से पाँच द्विलिंगी पुष्पों को एकत्र कीजिए और अपने शिक्षक की सहायता से इनके सामान्य (स्थानीय) एवं वैज्ञानिक नाम पता कीजिए।

 

उत्तर : द्विलिंगी पुष्प (Bisexual flower) - जब पुष्प में नर जननांग पुमंग (androecium) तथा मादा जननांग जायांग (gynoecium) दोनों उपस्थित होते हैं तो पुष्प द्विलिंगी (bisexual) कहलाता है। सामान्यतया समीपवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाले द्विलिंगी पुष्प निम्नवत् हैं; जैसे-

 

(i) सरसोंब्रैसिका कैम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris) 

(ii) मूलीरैफेनस सैटाइक्स (Raphanus sativus) 

(iii) मटर पाइसम सैटाइवम (Pisum sativum) 

(iv) सेम- डॉलीकोस लबलब (Dolichos lablab) 

(v) अमलतास - केसिया फिस्टुला (Cassia fistula) 

(vi) गुड़हल - हिबिस्कस रोजा साइनेन्सिस (Hibiscus rosa sinensis)

 

प्रश्न 17. किसी भी कुकुरबिट पादप के कुछ पुष्पों की जाँच कीजिए और पुंकेसरी व स्त्रीकेसरी पुष्पों को पहचानने की कोशिश कीजिए। क्या आप अन्य एकलिंगी पौधों के नाम जानते हैं?

 

उत्तर: 

कुकरबिटेसी कुल के पादप अर्थात् कुकरबिट लौकी, कद्दू, खीरा, करेला, ककड़ी आदि हैं। कुकुरबिट पुष्प एकलिंगी होते हैं। नर पुष्प में अण्डप (carpel) अनुपस्थित होता है। मादा पुष्प में पुंकेसर (stamens) अनुपस्थित होता है। नर पुष्प पुंकेसरी (staminate) तथा मादा पुष्प स्त्रीकेसरी (pistillate) कहलाते हैं। पौधे प्रायः उभयलिंगाश्रयी (monoecious) होते हैं। नर व मादा पुष्प एक ही पौधे पर पाए जाते हैं। सिनएंड्रस (Synandrous) अवस्था प्रदर्शित करते हैं अर्थात् सभी पुंकेसरों के पुतन्तु व परागकोश आपस में जुड़े होते हैं। जायांग त्रिअण्डपी होता है, इसमें भित्तीय बीजाण्डन्यास पाया जाता है। अण्डाशय ऊर्ध्ववर्ती होता है। 


प्रश्न 18. अण्डप्रजक प्राणियों की सन्तानों का उत्तरजीवन (सरवाइवल) सजीवप्रजक प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमयुक्त क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।

 

अण्डप्रजक प्राणियों का जीवन सजीवप्रजक प्राणियों अर्थात् शिशु को जन्म देने वाले प्राणियों की तुलना में अधिक जोखिमपूर्ण होता है क्योंकि मछली व उभयचर प्राणि अनिषेचित अण्डे देते हैं। युग्मक संलयन जल में होता है। युग्मकों को न सिर्फ परभक्षियों के शिकार होने का खतरा होता है अपितु यह प्रतिकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों जैसे उच्च ताप, प्रतिकूल pH दाब, रसायन आदि से भी प्रभावित होते हैं। अनेक युग्मक तीव्र जलधारा में बह जाते हैं।

 

सरीसृप व पक्षी वर्ग के जन्तु निषेचित अण्डे देते हैं जो कैल्सियम कार्बोनेट के खोल से ढके होते हैं। लेकिन इन अण्डों में भी विकसित हो रहा भ्रूण विपरीत पर्यावरणीय परिस्थितियों व परभक्षियों का आसानी से शिकार हो सकता है। सजीवप्रजक प्राणियों में निषेचन व भ्रूण का विकास मादा जन्तु के शरीर के अन्दर होता है। अतः भ्रूण की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। साथ ही भ्रूण को मादा से पर्याप्त पोषण भी मिलता रहता है।

 

अण्डे की सुरक्षा हर समय सुनिश्चित नहीं की जा सकती क्योंकि अण्डप्रजक प्राणियों को भोजन की तलाश में अण्डों से काफी दूर जाना पड़ सकता है। इसके विपरीत सजीवप्रजक प्राणियों का भ्रूण मादा के गर्भ में पलने के कारण हर समय सुरक्षित रहता है।

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