पुष्प सूत्र |पुष्प आरेख या पुष्प चित्र| FLORAL FORMULA in Hindi

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पुष्प सूत्र , पुष्प आरेख या पुष्प चित्र

पुष्प सूत्र |पुष्प आरेख या पुष्प चित्र| FLORAL FORMULA in Hindi




पुष्प सूत्र (FLORAL FORMULA in Hindi) 

पुष्प के विभिन्न पुष्पीय चक्रों में उपस्थित प्रत्येक संरचना की संख्या, उनके विन्यास तथा पुष्प के सामान्य लक्षणों को एक सूत्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है. जिसे पुष्प सूत्र (Floral formula) कहते हैं। 

पुष्प सूत्र को कुछ प्रमुख चिन्हों या प्रतीकों (Symbols) के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है, जो कि निम्नानुसार हैं-







 पुष्प आरेख या पुष्प चित्र

चित्र जिसमें एक पुष्प को बनाने वाले अंगों के क्रम उनकी संख्या एवं आपेक्षिक स्थिति को दर्शाया जाता है पुष्प आरेख या पुष्प चित्र कहलाता है । इसमें पुष्पवृन्त अथवा अक्ष (तना) की स्थिति एक बिन्दु या छोटे से गोले द्वारा प्रदर्शित की जाती है। सबसे बाह्य स्थिति में कैलिक्स को, इसके बाद के चक्र में कोरोला को, फिर पुंकेसर व केन्द्र में जायांग की स्थिति बीजाण्डन्यास के रूप में व्यक्त की जाती है। यदि पुंकेसर दलपुंजों से जुड़े हों तो एक रेख द्वारा उन्हें सम्बद्ध कर प्रदर्शित करते हैं । पुष्प आरेख के नीचे, पुष्प सूत्र लिखना अच्छा रहता है। जानकारी के लिए कुछ पुष्पों के आरेख यहाँ दिये जा रहे हैं-

 




 

एक प्रारूपिक पुष्पी पादप का वर्णन 

[DESCRIPTION OF A TYPICAL FLOWERING PLANT]

 

किसी पुष्पी पादप के विभिन्न भागों का वर्णन निम्नलिखित क्रम में करते हैं-

 

(1) आवास (Habitat ) - जंगली / उगाया हुआ । 

(2) स्वभाव (Habit ) - शाक / झाड़ी/वृक्ष:, जीवनकाल (एकवर्षी / द्विवर्षी / बहुवर्षी ); विशेष प्रकृति (परजीवी/ चपादप/मरूद्भिद /समोद्भिद / जलोद्भिद | 

(3) जड़ (Root) - मूसला / रेशेदार अपस्थानिक; विशेष प्रकृति (तर्कुरूप/कुम्भीरूप/शंकुरूप/कन्दिल/श्वसन रूप / ग्रन्थिल / व्यमय/मणिकामय/स्तम्भ रूप/ जटा रूप/आरोही आदि) । 

(4) स्तम्भ (Stem ) - प्रकृति ( शाकीय / काष्ठीय); ठोस / खोखला प्रकार [उर्ध्वशीर्षी (पुच्छी/बहिवर्धी/ अधोवर्धी/कल्म) ल (विसर्पी/भूशायी/ बल्लरी/आरोही)] रूपान्तरण [ भूमिगत (प्रकन्द / घनकन्द / कन्द/शल्क कन्द); अर्द्धवायवीय ( उपरिभूस्तारी अन्तः भूस्तारी / भूस्तारिका/भूस्तारी); वायवीय (स्तम्भ प्रतान/ स्तम्भ कंटक / पर्णाभ स्तम्भ/ पर्णाभ पर्व ) ] शाखन (अशाखीय / शाखीय (एकलाक्षी/सन्धिताक्षी)]; सतह (रोमिल / चिकना / शूलमय); बाह्य आकृति [ बेलनाकार / कोणीय (त्रिकोणीय/चतुष्कोणीय ) ]; रंग (हरा / दूसरे रंग का) ।

 

(5) पत्ती (Leaf) - धारण (मूलज / स्तम्भिक / स्तम्भिक एवं शाखीय); पर्णविन्यास [सर्पिलाकार/सम्मुख (क्रॉसित / अध्यारोपित) / भ्रमिमय]; संलगन (संवृन्त / अवृन्त); अनुपर्ण [ अननुपर्णी / अनुपर्णी (मुक्त पार्श्व/संलग्न / अन्तरावृन्तक/ अन्त:वृत्ती/नालचोली/ पर्णाकार / प्रतानीय/ शूलमय / कलिका शल्क); प्रकार [सरल/संयुक्त पिच्छाकार (एक पिच्छाकार/ द्विपिच्छाकार/ त्रिपिच्छाकार/ पुनर्विभाजित ) / हस्ताकार (एकपर्णी/द्विपर्णी/त्रिपर्णी / चतुष्पर्णी / बहुपर्णी); पर्णफलक आकृति (रेखाकार/भालाकार/दीर्घतम/ अण्डाकार / हृदयाकार/ अधोमुख अण्डाकार/वर्तुल); पर्णफलक कोर (आछिन्न/तरंगित/क्रकची/श्वदन्ती/कुंठदन्ती/पक्ष्माभी/शूलमय); पर्णफलक शीर्ष (कोरखाँची / गर्तकी / कुण्ठाग्र/ तीक्ष्णाग्री/निशिताग्र / लम्बाग्र / कण्टकी / तन्तुवत); सतह (रोमिल / चिकना / शूलमय) : शिराविन्यास [ जालिकारूपी (एकशिरीय/बहुशिरीय (अपसारी/अभिसारी) / समानान्तर (एकशिरीय / बहुशिरीय (अपसारी/अभिसारी ) ] 

(6) पुष्पक्रम (Inflorescence ) - असीमाक्षी ( प्रारूपिक असीमाक्ष / स्पाइक / स्पाइकिका/कैटकिन/ स्पैडिक्स/ समशिख / पुष्पछत्र/ मुण्डक)/ससीमाक्षी [एकशाखी (कुटिल/कुण्डलिनी)/ द्विशाखी / बहुशाखी ] / विशिष्ट प्रकार ( कटोरिया / कूटचक्रक/ हाइपैन्थोडियम)

 

(7) पुष्प (Flower) - 

एकल पुष्प ( अन्तस्थ / कक्षीय); सहपत्र [ सहपत्रहीन / सहपत्री (दलाभ/पर्णाभ/स्पेथ / तुष) ] ; सहपत्रिका (सहपत्रिकायुक्त / अनुबादल), संलगन (अपुष्पवृन्त/सपुष्पवृन्त); पूर्ण / अपूर्ण सममिति [असममितीय / सममितीय (त्रिज्यासममित / एकव्याससममित ) ]; लिंग प्रकृति (एकलिंगी (पुंकेसरी/स्त्रीकेसरी)/ द्विलिंगी / नपुंसक]; पुष्प भागों की संख्या (द्विभागी/त्रिभागी / चतुर्भागी/पंचभागी/विषमभागी); पुष्प अंगों की स्थिति (जायांगधर / परिजायांगी / जायांगोपरिक); पुष्प अंगों की व्यवस्था (अचक्रीय / स्पाइरोचक्रीय/चक्रीय) ।

 

(8) बाह्यदलपुंज (Calyx) - 

बाह्यदल की संख्या (3, 4, 5, या अधिक); संसंजन (पृथक् बाह्यदली/संयुक्त बाह्यदली); अवधि (आशुपाती/पर्णपाती/अपाती); रूपान्तरण (दलाभ/ पैपस / शूलमय / दलपुटीय); विन्यास ( कोरस्पर्शी / व्यावर्तित / कोरादी / पंचक) ।

 

(9) दलपुंज (Corolla) - 

दल की संख्या ( 3, 4, 5 या अधिक); संसंजन (पृथक्दली / संयुक्तदली); आकार (क्रॉसरूप/ कैरियोफिलैशियस/गुलाबवत्/घंटाकार/नलिकाकार/कीपाकार/चक्राकार/तितल्याकार); विन्यास (कोरस्पर्शी / व्यावर्तित कोरछादी/ पंचक / ध्वजक) ।

 

(10) परिदलपुंज - 

परिदल की संख्या (3, 4, 5 या अधिक); संसंजन (पृथक् परिदली / संयुक्त परिदली), प्रकार (बाह्यदलाभ / दलाभ); विन्यास (कोरस्पर्शी / व्यावर्तित/कोरछादी/पंचक/ध्वजक) ।

 

(11) पुमंग (Androecium) -

पुंकेसरों की संख्या (2, 4, 8, 10 या अधिक); संसंजन (एकसंघी / द्विसंघी/बहुसंधी / युक्तकोशी/ संपुमंगी); आसंजन (दललग्न/परिदललग्न/पुंजायांगी); स्थिति ( दलसंख्य पुंकेसरी (बाह्यदलाभिमुखी/दलाभिमुखी) / द्विवर्तपुंकेसरी/ दलाभिमुख - द्विवर्तपुंकेसरी / बहुपुंकेसरी); पुंतन्तुओं की लम्बाई (द्विदीर्घी/चतुर्दीर्घी); कोष्ठकों की संख्या (एककोष्ठी/ द्विकोष्ठी); परागकोष से संलगन (अध: बद्ध/संलग्न/पृष्ठलग्न/मुक्तदोली); परागकोष का स्फुटन (अन्तर्मुखी/बहिर्मुखी) ।

 

(12) जायांग (Gynoecium) - 

अण्डपों की संख्या (एकअण्डपी / द्विअण्डपी / त्रिअण्डपी / चतुष्अण्डपी / पंचअण्डपी / बहुअण्डपी); संसंजन (वियुक्ताण्डपी / युक्ताण्डपी); कोष्ठक की संख्या ((एककोष्ठकी/द्विकोष्ठकी/त्रिकोष्ठको/चतुष्कोष्ठकी/पंचकोष्ठकी/ बहुकोष्ठकी); बीजाण्डन्यास (सीमान्त/भित्तीय/अक्षीय/ मुक्त स्तम्भीय/आधारीय/परिभित्तीय); अण्डाशय की स्थिति (ऊर्ध्ववर्ती/अधोवर्ती / अर्ध-अधोवर्ती); वर्तिका (अन्तस्थ/पाश्र्वय/जायांगनाभिक); वर्तिकाग्र (समुंड/पिच्छकी/रैखिक / द्विशाखित/ घुंडीरूपी / चक्रिक ) । 

(13) फल (Fruit) - एकल फल (शुष्क फल/गूदेदार)/पुंजफल/संग्रथित । 

(14) बीज (Seed) - बीजपत्रों की संख्या (एकबीजपत्री / द्विबीजपत्री) भ्रूणपोष की उपस्थिति (भ्रूणपोषी / अभ्रूणपोषी ) ।

 

(15) पुष्प सूत्र (Floral Formula) - जिस प्रकार रसायनशास्त्र में किसी पदार्थ को संक्षिप्त रूप में सूत्र द्वारा दर्शाया जाता है, उसी प्रकार पुष्प के लम्बे-चौड़े वर्णन की मुख्य बातों को, पुष्पसूत्र द्वारा प्रकट किया जाता है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के प्रतीकों/ चिन्हों का प्रयोग किया जाता है जो इस प्रकार हैं- 

(A) सहपत्र एवं अनुबाह्यदल

 

(16) पुष्पचित्र अथवा पुष्प आरेख (Floral Diagram) - 

पुष्प में उपस्थित विभिन्न भागों की संख्या तथा उनका आपस में सम्बन्ध व पुष्प में उनकी स्थिति को पुष्पचित्र द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। पुष्पचित्र बनाने के लिए पुष्प के विभिन्न भागों को दर्शाने के लिए अग्रांकित चिन्हों का प्रयोग किया जाता है-

 

पुष्पचित्र वास्तव में पुष्प कलिका की अनुप्रस्थ काट है । पुष्पचित्र सदैव वृत्ताकार होता है । पुष्पचित्र बनाते समय मातृ (Mother axis) का विशेष ध्यान रखा जाता है । मातृ अक्ष वह अक्ष है जिस पर पुष्प लगा होता है। पुष्प का वह भाग जो मातृ की ओर होता है वह पश्च ( Posterior) तथा इससे दूर वाला भाग अग्र (Anterior) कहलाता है। पुष्पचित्र में सहपत्र सदैव अग्रभा की ओर स्थित होते हैं। पुष्पचित्र को पुष्प के विभिन्न भागों की स्थिति व विन्यास के अनुसार बनाया जाता है।

पुष्प सूत्र को समझने के लिए शब्दावली 

पुष्प की सममिती (Symmetry of Flower)

  • त्रिज्या सममित (Actinomorphic flower)
  • एकव्यास सममित (Zygomorphic flower)

अधोजायांगी / हाइपोगाइनी पुष्प (Hypogyny)

अण्डाशय शीर्ष पर होता है, तथा पुष्पासन से पृथक होता है। ऐसे पुष्पों को हाइपोगाइनस कहते हैं, तथा अण्डाशय ऊर्ध्ववर्ती (Superior Ovary) कहलाता है। उदा.-माल्वा, ब्रेसिका।

परिजायांगी / पेरिगाइनी पुष्प (Perigyny)

अण्डाशय केन्द्र में स्थित होता है, तथा पुष्प के अन्य भाग पुष्पासन के किनारों पर स्थित होते हैं। अण्डाशय अर्द्धउर्ध्ववर्ती (Half superior)  तथा अर्द्धअधोवर्ती (Half Inferior) होता है। उदा.-गुलाब।

अधिजायांगी / एपिगाइनी पुष्प (Epigyny)

बाह्यदलपुंज तथा दलपुंज अण्डाशय के ऊपर से उत्पन्न होते हैं। अण्डाशय पूर्णतया पुष्पासन द्वारा उत्पन्न होता है, तथा पुष्पासन से संलयित होता है। अण्डाशय अधोवर्ती (Inferior Overy) कहलाता है, तथा पुष्प एपिगाइनस कहलाता है। उदा.-एस्टर, लुफा।


सहपत्र (Bracts)

ये विशिष्ट पत्तियाँ (Leaf) है जिनके अक्ष (Axial) में पुष्प (flower) लगे होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते

मुख्य अक्ष की जिस पत्ती के कक्ष में पुष्प विकसित होता है, उसे सहपत्र (bract) कहते हैं। ये पर्णिल सहपत्र (foliaceous bracts), अनुबाह्यदल (epicalyx), दलाभ सहपत्र (petaloid bract), स्पेथ सहपत्र (spathe bract), सहपत्र-चक्र (involucre), क्यूपूल (Cupule), शल्कीय सहपत्र (scaly bract) व तुष सहपत्र (Glume) प्रकार के होते हैं।

बाह्यदल पुंज (Calyx)

पुष्प का सबसे बाहरी चक्र बाह्यदल पुंज कहलाता है। यह अनावश्यक होता है, तथा बाह्य दलों (Sepal) का बना होता है। बाह्य दल हरे रंग के होते है।

दलपुंज (Corolla)

यह पुष्प का द्वितीय चक्र है, तथा अनेक दलों (Petals) का बना होता है, जो कि चमकीले तथा रंगीन होते है। दल संयुक्त (संयुक्त दली / Gamopetalous) या मुक्त (मुक्तदली / Polypetalous) हो सकते हैं।

दलविन्यास (Aestivation)

पुष्प में बाह्यदल तथा दल का लगे होने का विन्यास (Arrangement) दलविन्यास कहलाता है।

(a) कोरस्पर्शी (Valvate)

जब बाह्यदल या दल एक-दूसरे के बिल्कुल समीप होते हैं, जिसमें अतिव्यापन नहीं होता। उदा.-सरसों।

(b) व्यावर्तित (Twisted or contorted)

जब बाह्यदल या दल का एक किनारा दूसरे बाह्यदल या दल के किनारे को अतिव्यापित करता है, तथा अन्य का किनारा तीसरे को अतिव्यापित करता है। उदा.- गुडहल /चाइना रोज।

(c) कोरछादी (Imbricate)

जब एकदल के दोनों किनारे अन्य के द्वारा आवरित होते हैं, तथा अन्य के दोनों किनारों में से एक बाहर तथा एक आंशिक रूप से अन्दर व आंशिक रूप से बाहर होता है, अतिव्यापन का कोई निश्चित पैटर्न नहीं होता उदा.-केशिया, सीजेलपिनिया।

(e) वेक्जिलरी (Vexillary)

एक पश्च दल बड़ा तथा दो पार्श्वीय दलों को अतिव्यापित होते हैं, उदा.-मटर (पेपिलियोनेसी)।

पुमंग (Androecium)

पुमंग पुष्प का तीसरा चक्र है, तथा एक या अनेक पुंकेसरों (Stamens) का बना होता है। पुकेंसर लघुबीजाणुपर्ण (Microsporophyll) के समान होते है ये नर जननांग़ (Male Reproductive Organ) है।

प्रत्येक पुंकेसर तन्तु (Filament), परागकोष (Anther) तथा संयोजक (Connective) का बना होता है।

पुंकेसरो का संसजन (Cohesion of Stamens)

पुंकेसरों का अपने आप में संलयन संसजन कहलाता है।

एकसंघी (Monoadelphous)

जब पुंकेसर मुक्त पराकोश के साथ एक बंडल में उनके तन्तु द्वारा जुड़े होते हैं। उदा.-चाइना रोज, भिंडी, कॉटन (माल्वेसी)।

द्विसंघी (Diadelphous)

जब पुंकेसर दो बंडलों में युग्मित होते हैं, तथा परागकोश स्वतंत्र होते हैं। उदा.-केस्टर (यूफॉर्बिएसी), नींबू (रूटेसी)।

बहुसंघी (Polyadelphous)

जब पुंकेसर दो से अधिक बंडलों में युग्मित होते हैं, तथा परागकोश स्वतंत्र होते हैं। उदा.-केस्टर (यूफॉर्बिएसी), नींबू (रूटेसी)।

सिनजेनेसियस (Syngenesious)

जब परागकोश युग्मित होते हैं, तथा तन्तु मुक्त होते हैं, उदा.-सूरजमुखी (कम्पोजिटी)।

सिनेन्ड्रस (Synandrous)

जब पुंकेसरों के तन्तु तथा परागकोश पूरी लम्बाई मंे युग्मित होते हैं, उदा.-कुकुरबिटेसी के सदस्य।

पुंकेसरों का आसंजन (Adhesion of Stamens)

अन्य पुष्पीय भागों के साथ पुंकेसरों का संलयन

एपिपीटेलस (Epipetalous)

जब पुंकेसर दलों से युग्मित होते हैं, उदा.-चाइना रोज, सोलेनम, सूरज पुष्प।

एपिसीपेलस (Episepalous)

जब पुंकेसर बाह्यदलों से युग्मित होते हैं। उदा.-वरबीना।

एपिफिल्लस (एपिटीपेलस / Epiphyllous/ Epitepalous)

जब पुंकेसर पेरिएन्थ (टेपल) से जुड़े होते हैं। उदा.-लिलिएसी के सदस्य।

गाइनेन्ड्रस (Gynandrous)

जब पुंकेसर जायांग (अण्डप) से या तो पूरी लम्बाई में या उनके पराग द्वारा जुड़े होते हैं। उदा.-केलोट्रोपिस (गायनोस्टीजियम का निर्माण)।

जायांग (Gynoecium)

यह पुष्प का मादा भाग है, जो बीजाण्डों युक्त अण्डपों (Carpel) का बना होता है।  एक अण्डप अण्डाशय (Ovary), वर्तिका (Style) तथा वर्तिकाग्र (Stigma) का बना होता है।

जायांग एकअण्डपी (एक अण्डप /  monocarpellary) या बहुअण्डपी (अनेक अण्डप / polycarpellary) हो सकता है।

अण्डपों का संसजन (Cohesion of Carpels)

एपोकार्पस (Apocarpous)

अण्डप मुक्त होते हैं। कोई (आसंजन नहीं) उदा.-रेननकुलेसी।

संयुक्ताण्डपी (Syncarpous)

दो से अधिक अण्डप तथा संलयित होते हैं, उदा.-अधिकांश पादप।

लोक्युल की संख्या (Numbers of locules)

अण्डाशय में लोक्युल्स होते है, जो एककोष्ठकी, द्विकोष्ठकी (बहुकोष्ठकी) हो सकते हैं।

 

परिदलपुंज

जब एक पुष्प में बाह्यदलपुंज व दलपुंज समान रंग व आकार के हों तो उसे परिदलपुंज कहते हैं।


पुष्पदल विन्यास (Aestivation) : क्लिक में बाह्रादलों (sepals) तथा दलों (petals) के विन्यास को पुष्पदल विन्यास कहते हैं ।


बीजाण्डन्यास (Placentation) : अण्डाशय के अन्दर की भित्ति पर तने बीजाण्डासन या प्लेसेन्टा पर बीजाण्डों ovules) के लगने की क्रम को बीजाण्डन्यास कहते हैं ।


पुष्पक्रम (Inflorescence)

पुष्प अक्ष (Floral Axis) पर पुष्पों के लगने की व्यवस्था को पुष्पक्रम (Inflorescence) कहते हैं। पुष्प का निर्माण पादप के शीर्षस्थ (terminal) अथवा कक्षस्थ  कलिका (axillary bud) से होता है।

जब पुष्प शाखा पर एक ही होता है, तो उसे एकल पुष्प कहते हैं। परंतु जब शाखा पर अनेक पुष्प होते हैं, तो ऐसे पुष्पों का समूह पुष्पक्रम कहलाता हैं।

जिस शाखा पर पुष्प लगते है, उस शाखा को पुष्पावली वृन्त (Peduncle) कहते हैं। तथा एक पुष्प जिस वृन्त के द्वारा शाखा से जुड़ा रहता है, उसे पुष्प वृन्त (Pedicel) कहते हैं।

जब पुष्पावली वृन्त (Peduncle)चपटा या गोल होता है, तो उसे पात्र (receptacle) कहते हैं।

कभी-कभी पुष्पावली वृन्त (Peduncle)मूलज पत्तियों (radical leaves) के बीच से निकलता है, तब इसे पुष्पदंड (Scape) कहते हैं।

पुष्पक्रम के प्रकार (Types of Inflorescence)

पुष्पक्रम को मुख्यतः चार भागों में बांटा गया है

1.        असीमाक्षी (Racemose Inflorescence)

2.        ससीमाक्षी (Cymose Inflorescence)

3.        मिश्रित (Mixed Type of Inflorescence)

4.        विशिष्ट (Special Type of Inflorescence)

5.        असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose Inflorescence)

 

इस प्रकार के पुष्प क्रम में पुष्पावली वृन्त (Peduncle)या मुख्य अक्ष असीमित वृद्धि करने वाला होता है। और पुष्पावली वृन्त (Peduncle) के पार्श्व (Lateral) में पुष्प अग्राभिसारी क्रम (Acropetal Succession)  में लगते हैं। अर्थात नवीन पुष्प पुष्पावली वृन्त (Peduncle) के ऊपरी सिरे पर तथा पुराने पुष्प आधार की ओर लगे होते हैं।

असीमाक्ष(Raceme)

इस प्रकार के पुष्प क्रम में पुष्पावली वृन्त (Peduncle)लंबा, पुष्प द्विलिंगी तथा अग्राभिसारी क्रम (Acropetal Succession) में लगे रहते हैं।

उदाहरण सरसों मूली अमलतास

ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose Inflorescence)

इस प्रकार के पुष्प क्रम में पुष्पावली वृन्त (Peduncle)सीमित वृद्धि करता है। और इसके शीर्ष पर पुष्प लगते है।

इसमें बड़ा पुष्प शीर्ष पर तथा छोटे पुष्प पार्श्व में लगे होते हैं।

इस प्रकार के पुष्प क्रम में पुष्प तलाभिसारी क्रम (Basipetal order) में लगे रहते हैं।


पेपिलियोनेटी (फेबेसी) (Subfamily – Papilionatae = Fabaceae) 

पुष्पक्रम (Inflorescence)– असीमाक्षी (Racemose) या एकल कक्षीय (solitary axillary)

पुष्प (Flower) - सहपत्री (bracteate), सवृन्त, द्विलिंगी, पूर्ण, एकव्याससममित (zygomorphic), अधोजाय (hypogynous)

बाह्यदलपुंज (Calyx) - 5 बाह्यदल, आधार भाग से संलग्न, कोरस्पर्शी (valvate) अथवा कोरछादी विन्यास (imbricate aestivation) |

दलपुंज (Corolla) –5 दल, पृथक्दली, आगस्तिक (papilionaceous) अवरोही, descending imbricate aestivation, posterior दल standard या वैक्सीलम (vexillum) बड़ा तथा दो पार्श्व (lateral) छोटे होते हैं जिन्हें पक्षक (wings) या ऐली (alae) कहते हैं। दो अग्र (anterior) दल जो एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण एक नौकाकार (boat shaped) रचना बनाते हैं और सबसे छोटे हैं कील या केरिना (keel or carina) कहलाते हैं। ये सब मिलकर पुष्प को एकव्याससममित (zygomorphic) बना देते हैं।

पुमंग (Androecium) – 10 पुंकेसर, द्विसंलाग (diadelphous), नौ पुंकेसरों के पुंतन्तु परस्पर युक्त अग्र छोर (anterior side) पर रहते हैं तथा एक पुंकेसर पश्च (posterior) भाग की ओर स्वतन्त्र रहता है, परागकोश द्विकोष्ठीय, पृष्ठलग्न (dorsifixed), अन्तर्मुखी (introrse)

जायांग (Gynoecium) - एकाण्डपी, एककोष्ठीय, उत्तरवर्ती, वर्तिका मुड़ी हुई, वर्तिकाग्र साधारण, marginal placentation 

फल (Fruit)–फली (legume)

पुष्पसूत्र (Floral formula)– Br % ⚥ K(5) C1+2+(2) A1+(9) G1

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