पुष्पी पादपों की आकारिकी पुष्प फल बीज | Flower Fruit Seeds

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पुष्पी पादपों की आकारिकी पुष्प फल बीज 

पुष्पी पादपों की आकारिकी पुष्प फल बीज | Flower Fruit Seeds


 

पुष्प Flowers

पुष्पीय पौधों में पुष्प एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अंग है। आकारकीय (Morphological) रूप से पुष्प एक रूपान्तरित प्ररोह (स्तम्भ) है जिस पर गाँठे तथा रूपान्तरित पुष्पी पत्तियाँ लगी रहती हैं। पुष्प प्रायः तने या शाखाओं के शीर्ष अथवा पत्ती के अक्ष (Axil) में उत्पन्न होकर प्रजनन (Reproduction) का कार्य करती है तथा फल एवं बीज उत्पन्न करता है।

 

सममिति के आधार पर पुष्प :

ये तीन प्रकार के होते है

1. त्रिज्या सममिति पुष्प : जब किसी पुष्प को किसी भी तल से दो बराबर भागो में विभक्त किया जा सके तो उसे त्रिज्या सममित पुष्प कहते है। उदाहरण सरसों , धतूरा।

2. एक व्यास सममित पुष्प : जब पुष्प को केवल उर्ध्वाधर तल से दो बराबर भागों में विभाजित किया जा सके तो उसे एक व्यास सममित पुष्प कहते है। उदाहरण मटर , अकेसिया , चना , गुलमोहर आदि।

3. असममित पुष्प : जब पुष्प को किसी भी तल से दो बराबर भागो में विभक्त नहीं किया जा सके तो उसे असममित पुष्प कहते है। उदाहरण केना।

पुष्पीय उपांगो की संख्या के आधार पर पुष्प :

1. त्रितयी पुष्प : जब पुष्पीय उपांग तीन के गुणक में हो तो उसे त्रितयी पुष्प कहते है।

2. चतुष्तयी पुष्प : जब पुष्पयी उपांग चार के गुणक में हो तो उसे चतुष्तयी पुष्प कहते है।

3. पंचतयी पुष्प : पुष्पयी उपांग पांच के गुणक में होती है तो उसे पंचतयी पुष्प कहते है।

सहपत्र की उपस्थिति के आधार पर पुष्प :

1. सह्पत्री पुष्प : जब पुष्प के साथ सहपत्र उपस्थित हो तो उसे सह्पत्री पुष्प कहते है।

2. सहपत्रहीन पुष्प : जब पुष्प के साथ सहपत्र अनुपस्थित हो तो उसे सहपत्रहीन पुष्प कहते है।

बाह्यदल , दल पुमंग व अंडाशय की सापेक्ष स्थिति के आधार पर

जायांग की स्थिति के आधार पर पुष्प के प्रकार

1. अधो जायांगता (हाइपोगाइनस) : इस प्रकार के पुष्प जायांग पुष्पासन के सर्वोच्च स्थान (शीर्ष) पर होता है , बाकी अन्य अंग नीचे होते है , ऐसे पुष्पों में अंडाशय उधर्ववृत्ति होता है।

उदाहरण सरसों , गुडहल , धतूरा।

2. परिजायांगता (पेरीगाइनस) : इस प्रकार के पुष्प में जायांग पुष्पासन के मध्य में होता है , शेष अन्य भाग पुष्पसन के किनारे पर पाये जाते है।

ऐसे पुष्पों में अंडाशय अर्धअधोवृति होता है।

उदाहरण मटर , गुलाब।

3. अधिजायांगता (एपीगाइनस) : ऐसे पुष्पों में अण्डाशय पुष्पासन में धंसा रहता है तथा अंग पुष्पासन के शीर्ष भाग से निकलते है।  इनमे अण्डाशय अधोवर्ती होता है।  उदाहरण सूरजमुखी , अमरुद , लोकी , गेंदा आदि।

 

पुष्प की रचना:

पुष्प एक डंठल द्वारा तने से सम्बद्ध होता है। इस डंठल को वृन्त या पेडिसेल (Pedicel) कहते हैं। वृन्त के सिरे पर स्थित चपटे भाग को पुष्पासन या थेलामस (Thalamus) कहते हैं। इसी पुष्पासन पर पुष्प के विविध पुष्पीय भाग (Floral Parts) एक विशेष प्रकार के चक्र (Cycle) में व्यवस्थित होते हैं।


 

पुष्प के चार मुख्य भाग होते हैं-

बाह्य दलपुंज (Calyx),

दलपुंज (Corolla),

पुमंग (Androecium)

जायांग (Gynoecium)

 

बाह्य दलपुंज एवं दलपुंज को पुष्प का सहायक अंग या अनावश्यक भाग तथा पुमंग एवं जायांग को पुष्प का आवश्यक भाग कहा जाता है। पुमंग एवं जायांग पुष्प के वास्तविक जनन भाग हैं। पुमंग पुष्प का नर जनन भाग तथा जायांग मादा जनन भाग है।

 

बाह्य दलपुंज (Calyx): यह पुष्प के सबसे बाहर का चक्र है। यह हरे छोटी पत्तीनुमा संरचनाओं का बना होता है जिन्हें बाह्य दल (sepals) कहते हैं। जब ये स्वतंत्र होते हैं तो इन्हें पृथक बाह्यदलीय (Polysepalous) कहते हैं और जब जुड़े होते हैं तो इन्हें संयुक्त बाह्यदलीय (Gamosepalous) कहते हैं। ये कली (Buds) को तथा उसके अन्य आन्तरिक भागों की सुरक्षा प्रदान करते हैं। कुछ पुष्पों में यह रंगीन होकर परागण के लिए कीटों को आकर्षित करने का काम करता है।

दलपुंज (Corolla): यह पुष्प का दूसरा चक्र होता है जो बाह्य दलपुंज के अन्दर स्थित होता है। यह प्रायः 2-6 दलों (Petals) का बना होता है। ये प्रायः रंगीन होते हैं। इसका मुख्य कार्य परागण हेतु कीटों को आकर्षित करना है। जब दल (Petals) स्वतंत्र होते हैं, तो उन्हें पृथक दलीय (Polypetalous) तथा जब वे जुड़े होते हैं तो उन्हें संयुक्त दलीय (Gamopetalous) कहते हैं।

पुमंग (Androecium): यह पुष्प का तीसरा चक्र है जो नर अंगों का बना होता है। प्रत्येक नर अंग पुंकेसर (stamen) कहलाता है। पुंकेसर ही पुष्प का वास्तविक नर भाग है। प्रत्येक पुंकेसर के तीन भाग होते हैं- तन्तु या फिलामेंट (Filament), परागकोष या ऐन्थर (Anther) तथा योजी या कनेक्टिव (Connective)

जायांग (Gynoecium):

जायांग पुष्प का वास्तविक मादा भाग है। यह पुष्प का चौथा और सबसे भीतरी चक्र है। यह अण्डपों (Carpels) से निर्मित होता है। आकारकीय दृष्टि से अण्डप एक वर्टीकली मुड़ी हुई पर्ण है जिसके जुड़े हुए किनारों पर बीजाण्ड (Ovules) उत्पन्न होते हैं। इन्हीं बीजाण्डों में मादा युग्मक अण्डाणु होते हैं। विभिन्न पादपों में बीजाण्डों की संख्या निशिचत होती है। वर्तिका अंडाशय के ऊपर का लम्बा एवं पतला भाग होता है जबकि वर्तिकाग्र (stigma) वर्तिका (style) का सबसे ऊपर का भाग होता है जो चिपचिपा होता है।

 

पुष्प दल विन्यास : किताब से देखकर चित्र बनाएँ

दल या बाह्यदल के कलिका अवस्था में लगे रहने के क्रम को पुष्प दल विन्यास कहते है।  यह चार प्रकार का होता है।

1. कोरस्पर्श : पुष्प दलों के सिरे एक दूसरे को स्पर्श करते है , उदाहरण सरसों , आक।

2. व्यावर्तित : जब प्रत्येक दल अपने पास वाले दल से एक ओर से ढका हो तथा दूसरी ओर पास वाले दल के एक किनारे को ढकता हो।  उदाहरण भिन्डी , कपास , गुडहल।

3. कोरछादी : दल के इस विन्यास में एक दल के दोनों किनारे ढके हुए होते है , शेष दलों के एक एक सिरे ढके हुए होते है , उदाहरण : गुलमोहर , केसिया , अमलताश।

4. वेक्जलरी : पांच दलों में पक्ध दल सबसे बढ़ा होता है जिसे ध्वजक कहते है।  दो पाशर्व पंख कहलाते है व दो सबसे अन्दर संयुक्त होते है तल कहलाते है।

उदाहरण मटर , चना , सेम , चावल , मूंग आदि।

बीजांडन्यास (Placentation) 

अंडाशय के अन्दर बीजांडसन और बीजाण्डो के व्यव्स्थाक्रम को बीजाण्डन्यास कहते है | यह निम्नलिखित प्रकार का होता है

सीमान्त (Marginal) : जब जायांग , एकअंडपी (अथवा बहुअंडपी , पृथकांडपी) और एककोष्ठीय हो और बीजांड एक पंक्ति में प्रतिपृष्ठ सीवनी पर लगे हुए हो , जैसे मटर |

 

सीवन अथवा सीवनी (Suture) : अंडप के तटों को सीवनी कहते है | मध्यशिरा वाले जोड़ को पृष्ठ सीवनी और तटों वाले जोड़ को प्रतिपृष्ठ सीवनी कहते है |

 

भित्तीय (parietal) : जब जायांग दो अथवा बहुअंडपी परन्तु हमेशा युक्तांडपी और एककोष्ठीय हो और बीजाण्ड , अंडाशय की परिधि (भित्ति) पर अंडपो के संधि स्थल पर लगे हो , जैसे द्विबीजपत्री पौधों में गण पेराइटेल्स के सदस्य |

अक्षीय अथवा स्तम्भीय (Axile) : जायांग द्विअंडपी से बहुअंडपी परन्तु सदैव युक्तांडपी और कोष्ठों की संख्या अंडपों के समान हो और बीजांड अंडाशय के केन्द्रीय भाग में स्थित अक्ष पर लगे हो , जिसका निर्माण अंडपों के तटों के संयोजन से होता है , जैसे मालवेसी और सोलेनेसी कुलों के सदस्य |

आधारीय (Basal) : जब जायांग एक अथवा बहुअंडपी और एककोष्ठीय हो और एक अथवा अधिक बीजांड कोष्ठ के आधारीय भाग अथवा फर्श पर लगे हो , जैसे एस्टेरेसी कुल के सदस्य |

मुक्तस्तम्भीय (Free central) : जब जायांग द्वि अथवा बहुअंडपी युक्तांडपी परन्तु सदैव एककोष्ठीय हो , इसके आधारीय भाग अथवा फर्श से एक अक्ष इस प्रकार से उभरी हुई हो कि इसका जुड़ाव अंडाशय की छत अथवा शीर्ष से नहीं हो इस बीजांड और अक्ष पर लगे हो , जैसे केरियोफिल्लेसी कुल के सदस्य |

पुष्पक्रम Inflorescence

प्रत्येक जाति के पुष्पीय पौधे पर पुष्प कुछ निश्चित क्रम में व्यवस्थित होते है। पौधे की शाखा के शीर्ष पर पुष्प के उत्पन्न होने और व्यवस्थित होने की विधि (ढंग) को पुष्पक्रमकहते है। पुष्पक्रम का अक्ष पुष्पाक्ष कहलाता है | दुसरे शब्दों में पुष्प अक्ष (Floral Axis) या पुष्पाक्ष पर पुष्पों के लगने की व्यवस्था को पुष्पक्रम (Inflorescence) कहते हैं। पुष्पक्रम मुख्यत: तीन प्रकार के होते है :

(1) असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose Inflorescence)

(2) ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose Inflorescence)

(3) मिश्रित पुष्पक्रम (Mixed Inflorescence)

 

असीमाक्षी पुष्पक्रम Racemose Inflorescence

असीमाक्षी या अनिश्चित वृद्धि का पुष्पक्रम पाशर्व या कक्षस्थ पुष्प रखता है जो अग्राभिसारी क्रम (आधार की ओर पुराने और शीर्ष पर नए) में उत्पन्न होते है। इस प्रकार के पुष्पक्रम में पुष्प अक्ष (Floral Axis) की वृद्धि रुकती नही है और अनिश्चित वृद्धि करता है। इसमें नीचे के फूल बड़े जबकि ऊपर की तरफ छोटे होते जाते है। इसमे नये फूल ऊपर या बीच में जबकि पुराने फूल सबसे नीचे होते है। उदाहरण मूली , सरसों , घास , केला , सहतूत, सरसों, सोयाबीन इत्यादि।

ससीमाक्षी पुष्पक्रम  (Cymose Inflorescence)

इस प्रकार के पुष्पक्रम में पुष्प अक्ष की वृद्धि सीमित होती है। इस प्रकार के पुष्प क्रम में मुख्य अक्ष सिमित वृद्धि वाला होता है और शीर्ष पर एक पुष्प बन जाने के कारण शीर्ष की वृद्धि रुक जाती है।  शीर्षस्त पुष्प के नीचे शाखाएँ निकलती है व उनके शीर्ष पर भी पुष्प बन जाता है।  ससीमाक्षी में पुष्पक्रम तलाभिसारी होता है। उदाहरण गुडहल , मकोय , पॉपी , चमेली ,आक आदि।

फल

पादप का मुख्य अंग है। फल का निर्माण निषेचन(FERTILIZATION) के पश्चात जायांग के  ण्डाशय(OVARY) से होता हैं।

सभी पादपों में फल का निर्माण अंडाशय से होता है। ऐसे फलो को सत्य फल या यूकार्प ((TRUE FRUITS) कहा जाता है। जैसे-आम, मक्का, अंगूर आदि।

कुछ पादपों में अंडाशय के अलावा पुष्प के अन्य हिस्सों जैसे बाह्यदलपुंज (CALYX), दलपुंज (COROLLA) पुष्पासन (THALAMUS) से भी फल विकसित होता है। ऐसे फल को आभासी फल(FALSE FRUITS)या स्युडो-कार्प कहते है। उदाहरण-काजू, सेब, नाशपाती, लौकी और ककड़ी आदि ।

 

फल की संरचना(STRUCTURE OF FRUITS)

एक फल में फलभित्ती  और बीज होते हैं।

अंडाशय की दीवार से फलभित्ती (PERICARP) विकसित होती है।

फलभित्ती को बाह्य फलभित्ती (Epicarp), मध्य फलभित्ती  (Mesocarp) और अन्तः फलभित्ती  (Endocarp) में विभेदित किया जाता है।

बाह्य फलभित्ती  (Epicarp) – यह सबसे बाहरी स्त्तर होता है। जो पतला नरम या कठोर होता है। यह फल का छिलका बनती है। 

मध्य फलभित्ती  (Mesocarp)–  यह मोटी गूदेदार तथा खाने योग्य होती है, जैसी की आम का मध्य का पीला खाने योग्य भाग लेकिन नारियल में रेशेदार जटा होती है। 

अन्तः फलभित्ती (Endocarp)- यह सबसे भीतरी स्तर है आम नारियल बेर में यह कठोर लेकिन खजूर, संतरा में पतली झिल्ली के रूप में होती है।  बीजावरण अन्तः फलभित्ती के पास होता है।

बीज

बीज एक परिपक्व बीजांड है जिसमें एक भ्रूण या एक लघु अविकसित पौधा और खाद्य भंडार शामिल होते हैं, जो सभी एक सुरक्षात्मक बीज आवरण के भीतर संलग्न होते हैं

बीज की संरचना (Structure of seed)-

संरचना एवं बीजपत्रो की संख्या के आधार पर समस्त उच्चवर्गीय पादपो के बीजो को दो वर्गों में विभक्त किया गया है एकबीजपत्र धारी बीज को एकबीजपत्री बीज कहा जाता है वही ऐसे बीज जिनमे दो बीजपत्र पाए जाते है। द्विबीजपत्री बीज कहलाते है |

द्विबीजपत्री बीज की संरचना (structure of dicot seed)

द्विबीजपत्री बीज की संरचना (structure of dicot seed)


इसके अध्ययन हेतु चना, बीज का उपयोग किया जाता है एक प्रारुपी द्विबीजपत्री बीज के निम्न भाग होते है |


1. बीजचोल (Seed Coat)- इसका विकास बीजांड के अध्यावरण से होता है यह दो स्तरो का बना होता है जिसमे बाहरी मोटे स्तर को बाह्यबीजचोल ( Testa) तथा भीतरी पतले स्तर को अन्तः बीजचोल (Tegmen) कहते है |

2. हायलम (Hilum) - बीज का वह भाग जंहा से बीज वृन्त द्वारा जुड़ा रहता है हायलम कहलाता है

3. बीजाण्डद्वार ( Micropyle) - बीज के एक सिरे पर स्थित एक सूक्ष्मछिद्र होता है जिसे Anusar कहते है अंकुरण के समय यंहा से ऑक्सीजन एवं जल की आपूर्ति होती है ।

4. भ्रूणपोष (Endosperm ) - यह बीज का भोजन संग्रह करने वाला विशेष उतक होता है सामान्यतः यह बहुगुणित होता है यह बीज में उपस्थित या अनुपस्थित हो सकता है।

5. भ्रूण (Embryo) - यह बीज का मुख्य भाग होता है जो बीजपत्र एवं भ्रूणीय अक्ष ( Embryonal axis) का बना होता है भ्रूणीय अक्ष पतला, कोमल भाग होता है इससे एक या दो चपटी मोटी संरचना पार्श्व से जुडी रहती है यही रचना बीजपत्र कहलाती है । बीजपत्र  के ऊपर स्थित भ्रूणीय अक्ष के भाग को बीजपत्रोपरिक (Epicotyl) कहते है बीजपत्रोपरिक का शीर्ष भाग प्रांकुर (Plumule) कहलाता है।

प्रांकुर से प्ररोह का निर्माण होता है भ्रूणीय अक्ष का नीचला भाग बीजपत्राधार ( Hypocotyl) कहलाता है बीजपत्राधार का शीर्षभाग मूलांकुर कहलाता है जिससे जड़ का निर्माण होता है।

 

एकबीजपत्री बीज की संरचना (Structure of Monocot Seed) –

 एकबीजपत्री बीज के अध्ययन हेतु सामन्यतः मक्का के बीज का उपयोग किया जाता है । यह आकार में तिकोना व चपटा होता है बीज में चपटे भाग की और एक छोटी सफेद, लम्बी अंडाकार रचना होती है जिसमे भ्रूण स्थित रहता है बीज की लम्बवत काट की संरचना निम्नानुसार है |

Structure of Monocot Seed


1.बीज कवच (Seed Coat) - यह बीज के चारो और पीले रंग की पतली झिल्ली के रूप में होता है बीजावरण एवं फलभित्ति पूर्ण रूप से आपस में जुडी रहती है जिसे हल (Hull) कहा जाता है |

2.भ्रूणपोष (Endosperm )- मक्का का बीज अपनी लम्बवत काट में एक पतली परत द्वारा - असमान भागो में विभक्त रहता है इसके उपरी बड़े व चपटे भाग को भ्रूणपोष कहते है इसमें भोज्य पदार्थ मांड (Starch) के रूप में संचित रहता है।

3 एल्युरोन पर्त ( Aleurone layer) - भ्रूणपोष (endosperm ) की सबसे बाहरी परत जो बीजावरण से लगी रहती है यह भ्रूणपोष को भ्रूण से अलग करती है यह प्रोटीन की बनी होती है तथा इस परत को एल्युरोन पर्त कहते हैं |

4.भ्रूण (Embryo)- भ्रूणपोष के ठीक नीचे भ्रूण स्थित रहता है भ्रूण के नीचले भाग में ढाल के प्रकार का एक बीजपत्र होता है जिसे बरुथिका (Scutellum / Cotyledon) कहते है इस बरुथिका में उपर की ओर प्रांकुर व नीचे की ओर मूलांकुर पाया जाता है प्रांकुर (Plumule) व मूलांकुर (Radicle) दोनो एक एक आवरण द्वारा ढके रहते है, जिन्हे क्रमशः भ्रूणग्रचोल (Coleoptile), व भ्रूणमूलचोल (Coleorhiza) कहते है। 

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