Plant Kingdom 11th Class Chapter 03 :Notes Part 02
ब्रायोफाइटा
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ब्रायोफाइट्स प्रथम स्थलीय पादप है। इसके अंतर्गत माँस तथा
लिवरपर्ट आते हैं ।
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ब्रायोफाइटा को पादप जगत के
उभयचर भी कहा जाता है क्योंकि ये भूमि पर जीवित रहते है , परन्तु लैंगिक जनन
के लिए जल पर निर्भर होते है।
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ये नम , छायादार पहाड़ियों पर पुरानी व नम दीवारों पर पाये जाते है।
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इनका शरीर थैलस के रूप में होता है , इनमें जड़ के समान
मुलाभास , तनासम तने के समान
, पत्ती के समान
पत्तीसम संरचनाएँ पायी जाती है।
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इनमें वास्तविक संवहन उत्तको का अभाव होता है।
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कायिक जनन विखंडन द्वारा होता है।
ब्रायोफाइटा में लैंगिक जनन :
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अगुणित युग्मकोद्भिद पादप में नर लैंगिक अंग को पुंधानी कहते है। जिसमे समसूत्री
विभाजन द्वारा पुमंग बनते है , जो अगुणित होते है।
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मादा लैंगिक अंग स्त्रीधानी कहलाते है।
जिनमे
अगुणित अण्ड बनता है।
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पुमंग व अण्ड के संलयन से युग्मनज बनता है।
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युग्मनज से एक बहुकोशिकीय बिजानुभिद विकसित होता है जो
द्विगुणित होता है तथा पाद , सिटा व कैप्सूल
में विभक्त होता है। बीजाणुभिद में अर्द्धसूत्री विभाजन से अगुणित बीजाणु
बनते है जो अंकुरित होकर अगुणित नया पादप बनाते है।
ब्रायोफाइटा का आर्थिक महत्व
1. कुछ मांस को स्तनधारी भोजन के रूप में ग्रहण करते है।
2. स्फेगनम व अन्य जाति के ब्रायोफाइटा को ईंधन के रूप में
प्रयुक्त किया जाता है।
3. ये मृदा अपरक्षण
को रोकते है।
लिवरवर्ट
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ये प्राय नम , छायादार ,
दलदल , गिली मिट्टी व
पेड़ो की छाल में पाये जाते है।
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पादप शरीर थैलस के रूप में होता है।
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इनमें पत्ती समान संरचनाएँ पायी जाती है , जो तने समान
संरचना पर कतारों में लगी रहती है।
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कायिक जनन विखंडन द्वारा होता है।
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अलैंगिक जनन बहुकोशिकीय विशिष्ट संरचना जेमा कप द्वारा होता है।
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लैंगिक जनन युग्मको के संलयन द्वारा होता है। लैंगिक अंग एक या अलग अलग पादपों पर विकसित
होते है। नर
लैंगिक अंग पुधानी में पुमंग तथा मादा लैंगिक अंग स्त्रीधानी में अण्डकोशिका बनती
है।
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पुमंग व अंड कोशिका के संलयन से बीजाणुभिद विकसित होता है
जो पाद , सिटा व केप्सूल
में विभेदित होता है। बीजाणुभिद में
अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा बीजाणु बनते है , जो अंकुरित होकर नया पादप बनाते है।
उदाहरण –
मार्केन्शिया।
माँस या मसाई
- इस वर्ग का पुराना नाम मसाई (Musci) है। इस वर्ग के पौधों को माँस (Moss) कहते हैं।
- युग्मकोदभिद में दो अवस्थाएँ होती हैं- (1) प्रथमतन्तु (प्रोटोनिमा) अवस्था (Protonema stage) एवं (ii) पर्णिल अवस्था Foliose or Leafy stage) हैं।
- मूलाभास बहुकोशिकीय, शाखित होते हैं ।
- शल्कों (Scales) का पूर्ण अभाव होता है।
- कैप्स्यूल की संरचना जटिल
होती है। इसके केन्द्र में स्तम्भिका तथा सिरे पर प्रच्छंद अथवा ऑपरकुलम (Operculum)
- इलेटर का अभाव होता है।
- उदाहरण-स्फैगनम (Sphagnum), फ्यूनेरिया (Funaria)
ट्रैकियोफाइटा
ट्रैकियोफाइटा प्रभाग में उन पादपों को सम्मिलित किया गया
है जिनमें संवहनी
ऊतक पाये जाते हैं। इस प्रभाग में अब तक 2.75 लाख जातियों की
खोज की जा चुकी है। इस प्रभाग को पुनः तीन उप-प्रभाग में विभाजित किया गया है:
1.
टेरिडोफाइटा
2.
अनावृत्तत बीजी
3.
आवृत्तबीजी
टेरिडोफाइटाः
ये स्थलीय, बीजरहित पादप हैं और इनके संवहन
ऊतक अविकसित होते हैं । कुछ विकसित टेरिडोफाइटा समूह के पादपों
में जड़, तना एवं पत्ती में
स्पष्ट अंतर होता है। जैसे- साइलोटम, फर्न, सिल्वर फर्न आदि
·
ये प्रथम संवहनी अपुष्पी , स्थलीय
पादपों का समूह है।
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इन्हें हॉर्टटेल या फर्न भी कहते है।
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ये ठण्डे , गीले , नम व छायादार स्थानों पर पाये
जाते है।
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मुख्य पादप बीजाणुदभिद होता है , पादप शरीर जड़ , तना , पर्ण , पत्ती में विभक्त होता है।
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इनमे संवहन उत्तक (जाइलम , फ्लोएम
) पाये जाते है परन्तु जाइलम में वाहिकाएं व फ्लोएम में सहकोशिकाएं अनुपस्थित होती
है।
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इन पादपों में पुष्प व बीज
नहीं बनते है अत: इन्हें बीजरहित पादप कहते है।
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युग्मकोद्भिद पर नर जननांग पुधानी व
स्त्री जननांग स्त्रीधानी उत्पन्न होते है।
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पुधानी में पुमंग व स्त्रीधानी में अंड
कोशिकीय का विकास होता है।
टेरिडोफाइटा में जनन :
1. कायिक जनन – प्रकन्द
शाखाओं के अलग अलग होने से नया पादप बनता है।
2. अलैंगिक जनन – बीजाणु
द्वारा।
3. लैंगिक जनन – पुधानी
में बने पुन्मणु व स्त्रीधानी में बने अण्डकोशिका के संलयन से युग्मनज बनता है।
युग्मनज से
एक नया शैशव भ्रूण विकसित होता है , यह घटना टेरिडोफाइटा को बीजी प्रकृति की ओर ले जाती है।
टेरिडोफाइटा को चार वर्गों में बांटा गया है –
1. साइलोपसीडा
: इनमें
पत्तियाँ अनुपस्थित होती है ये जीवाश्म के रूप में पाये जाते है।
2. लाइकोपसीडा
: इनमें
पत्तियाँ उपस्थित व छोटी होती है।
उदाहरण
– लाइकोपोडियम
, सिलेजिनेला
3. स्फिनापसिडा : इनमें
पत्तियाँ छोटी व तना खोखला होता है।
उदाहरण – इक्वीसीटम
4. टीरोपसिडा : इनकी
पत्तियाँ बड़ी तथा ये फर्न कहलाते है।
उदाहरण
– टेरिडियम
, डायोप्टेरिस
, टेरिस।
आर्थिक महत्व : सजावटी पौधे के रूप में उगाया जाता है।
अनावृत्तबीजी Gymnosperms
अनावृत्तबीजी (Gymnosperms) बीजीय पौधों (Spermatophytes) का वह सब-फाइलम
है, जिसके अन्तर्गत
वे पौधे आते हैं, जिनमें नग्न बीज
आते हैं, अर्थात् बीजाण्ड
(ovules) तथा उनसे विकसित
बीज किसी खोल या फल में बन्द नहीं होते हैं। इनमें अंडाशय (Ovary) का पूर्ण अभाव
होता है। यह पुराने पौधों का वर्ग है। इस उप-प्रभाग में लगभग 900 जातियों को रखा
गया है।
इसके
प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
- इस उप-प्रभाग के पौधे बहुवर्षीय (Perennial) होते हैं।
- ये मरुदभिद् (Xerophytic) स्वभाव के होते हैं।
- इनमें स्पष्ट वार्षिक वलय (Annual rings) बनते है।
- इनके बीजों में बीजावरण नहीं पाया जाता है।
- इनमें संवहन ऊतक (vascular tissue) पाये जाते हैं।
- ये नग्नबीजी तथा आशाखित होते हैं।
- इनमें वायु परागण (wind pollination–Anemophilly) होता है।
- इनमें साधारण तथा बहुभ्रूणता (Polyembryony) पायी जाती है।
- भ्रूण (Embryo) से मूलांकर (Radicle) तथा प्रांकुर (Plumule) के साथ ही एक या एक से अधिक बीजपत्र बनते हैं।
- सबसे बड़ा अण्डाणु तथा शुक्राणु साइकस का होता है, जो कि एक जिम्नोस्पर्म है।
जिम्नोस्पर्म
का आर्थिक महत्व
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साइकस (Cycas) के तनों से मण्ड (starch) निकालकर खाने
वाला साबूदाना (sago) का निर्माण किया
जाता है।
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साइकस के बीज अण्डमान द्वीप के जनजातियों
द्वारा खाए जाते हैं।
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पाइनस से प्राप्त होने वाला चिलगोजा भी खाने के
काम आता है।
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टेनिन का उपयोग चमड़ा एवं स्याही बनाने में
होता है।
नोट : साइकस
(Cycas) को जीवित जीवाश्म (Living fossils) कहा
जाता है।
आवृतबीजी Angiosperms
इस उप-प्रभाग के अन्तर्गत
उन पौधों को सम्मिलित किया गया है जिनमें बीज सदैव फल के अंदर होते हैं। ये शाक (herbs), झाड़ियाँ
(shrubs) तथा
वृक्ष (Tree) तीनों
प्रकार के होते हैं।
आवृतबीजी
पौधों के प्रमुख लक्षण निम्नलिखित हैं-
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इनमें प्रजनन अंग पुष्प होता है।
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इनमें दोहरा निषेचन (Double fertilization) दृष्टिगत
होता है।
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ये मृदोपजीवी (Saprophyte), परजीवी
(Parasite), सहजीवी
(Symbiotic), कीटभक्षी
(Insectivorous) तथा
स्वपोषी (Autotrophs) के
रूप में पाए जाते हैं।
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ये सामान्यतया स्थलीय पौधे होते हैं, लेकिन
कुछ पौधे जल में भी पाये जाते हैं।
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इनमें संवहन तंत्र अति विकसित होता है।
वर्गीकरण:
आवृतबीजी पौधों को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया गया है—
एकबीजपत्री (Monocotyledonae) तथा
द्विबीजपत्री (Dicotyledonae)
एकबीजपत्री
के प्रमुख लक्षण-
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इनके बीजों में केवल एक बीजपत्र (Cotyledon) उपस्थित
होता है।
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इनकी जड़े प्रायः अधिक विकसित नहीं होती
हैं।
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इनके पुष्पों के भाग (Floral parts) तीन
या उसके गुणांक होते हैं।
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इनके संवहन पूल में कैम्बियम (Cambium) नहीं
पाया जाता है।
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लहसुन (Allium sativum), प्याज
(Allium cepa) सतावर
(Asparagus racemosus) आदि।
द्विबीजपत्री
के प्रमुख लक्षण:
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इनके बीजों में दो बीजपत्र पाये जाते
हैं।
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इनके संवहन पुल में कैम्बियम पाये जाते
हैं।
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इनके पुष्पों के भाग (Floral parts) चार
या पांच के गुणांक में होते हैं।
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इनमें द्वितीयक वृद्धि (Secondary growth) पायी
जाती है।
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इनकी पत्तियों में जालिकावत शिराविन्यास
होता है।
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इनमें पाया जाने वाला संवहन बंडल
वलयाकार रूप में व्यवस्थित रहता है।
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इनका जड़ तंत्र अधिमूल (root cap) एवं
उसकी शाखाओं के साथ फैला रहता है।
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मूली (Raphanus sativus), शलगम
(Brassica rapa), सरसों
(Brassica compestris), फूलगोभी
(Brassica oleracea) आदि।
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कपास (Gossypiumherbaceum), भिण्डी
(Hibiscus esculantus),
(Malvaceae), गुड़हल (Hibiscus rosa sinensis) आदि।
नोट:
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आवृत्तबीजी का अर्थ ‘ढका
हुआ बीज’ होता
है।
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आवृत्तबीजी (Argiosperm) पादप
जगत का सबसे बड़ा समूह है।
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मनुष्य को अfधकांश आवश्यकतrआों
की पूतिं आवृत्तबीजी पौधों (Angiospermic Plants) से ही होती है।
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आवृत्तबीजी पौधों में भोजन का संचय या
तो भ्रूणपोष (Endosperm) या
बीज पत्रों (Cotyledons) में
होता है।
महत्वपूर्ण परिभाषाएँ
1.प्रथम तन्तु (Protonema)
:
· यह हरी, अगुणित (haploid),
प्रकाश-संश्लेषी, स्वतन्त्र प्रारम्भिक
युग्मकोभिद् (gametophytic) संरचना है जो मॉस (ब्रायोफाइट) में पाई जाती है। यह
बीजाणुओं (spores) के अंकुरण से बनती है तथा नये युग्मकोभिद् पौधे का
निर्माण करती है।
2. पुंधानी (Antheridium)
:
· यह बहुकोशिकीय, कवच युक्त (jacketed)
नर जनन अंग (male
sex organ) है जो ब्रायोफाइट व टेरिडोफाइट में पाया जाता है। पुंधानी में नर युग्मक (male
gamete or antherozoids) बनते हैं।
3 स्त्रीधानी (Archaegonium) :
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यह बहुकोशिकीय, फ्लास्क के समान मादा
जनन अंग (female sex organ) है जो ब्रायोफाइट, टेरिडोफाइट तथा कुछ
जिम्नोस्पर्म में पाई जाती है। यह ग्रीवा (neck) तथा अण्डधा (venter)
में विभाजित होती है।
इसमें एक अण्ड (egg) बनता है।
4 बीजाणुपर्ण (Sporophyll)
:
·
फर्न (टेरिडोफाइट) में बीजाणु (spores)
बीजाणुधानियों (sporangia)
में पाए जाते हैं। इन
बीजाणुधानियों के समूह को सोरस (sorus) कहते हैं। ये पिच्छक या
पत्ती (pinna
or leaf) की नीचे की सतह (lower surface) पर मध्य शिरा (mid
rib) के
दोनों ओर दो पंक्तियों में शिराओं के सिरे पर लगी रहती हैं। इन सोराई धारण करने
वाल पत्तियों को बीजाणुपर्ण (sporophyll) कहते हैं।
प्रश्न – ब्रायोफाइटा
का अर्थ क्या है?
उत्तर – ब्रायोफाइटा के
अन्तर्गत वे सभी पौधें आते हैं जिनमें वास्तविक संवहन ऊतक (vascular
tissue) नहीं होते, जैसे मोसेस (mosses),
हॉर्नवर्ट (hornworts) और लिवरवर्ट (liverworts) आदि।
ब्रायोफाइटा (Bryophyta) वनस्पति जगत का एक बड़ा वर्ग है और यह
एम्ब्रियोफाइटा का सबसे साधारण व आद्य समूह है। एंजियोस्पर्म के बाद
ब्रायोफाइट्स भूमि पौधों का
दूसरा सबसे बड़ा समूह है। पौधों के वर्गीकरण में ब्रायोफाइटा का स्थान शैवाल (Algae)
और टेरिडोफाइटा (Pteridophyta) के बीच में आता
है। यह पृथ्वी पर लगभग हर जगह पाया जाता है परन्तु इसका मानव जीवन में खास उपयोग
नही है l ब्रायोफाइटा प्रथम स्थलीय पौधे
हैं, जो शैवाल से विकसित हुए हैं।
प्रश्न – ब्रायोफाइटा का आर्थिक महत्व क्या है?
उत्तर – ब्रायोफाइटा वर्ग के पोधों में जल अवशोषण (water absorption) की क्षमता अधिक होने की वजह से ये बाढ़ (flood) रोकने में मदद करते हैं l इस वर्ग के पौधे मृदा अपरदन (soil erosion) को रोकने में भी सहायता होते हैं। स्फेगमन (Sphagnum) व अन्य जाति के ब्रायोफाइटा को ईंधन के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। पूर्तिरोधी अर्थात् ऐण्टिसेप्टिक होने के कारण स्फैगनम का उपयोग सर्जिकल ड्रेसिंग (surgical dressing) के लिए किया जाता है। स्फैगनम के पौधों से स्फैगनाल नामक प्रतिजैविक प्राप्त किया जाता है। कुछ ब्रायोफाइट्स में विभिन्न कैंसर सेल लाइनों के खिलाफ एंटीट्यूमर गतिविधियां (antitumor activities) का गुण होता है जो कि बहुत ही महत्वपुर्ण है और कैंसर जैसे रोग के इलाज के लिय किया जाता है l