Plant Kingdom 11th Notes in Hindi : Part 01

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Plant Kingdom 11th Notes in Hindi : Part 01

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वनस्पति जगत

 

Plant Kingdom 11th Notes in Hindi : Part 01

पादप जगत में सभी शैवालब्रायोफाइटटेरिडोफाइटजिम्नोस्पर्म तथा एंजियोस्पर्म आते हैं।  

आधुनिक वर्गीकरण में प्लान्टी जगत को तीन स्वपोषित समूहों शैवालब्रायोफाइटा एवं ट्रेकियोफाइटा से निर्मित माना गया है। 

शैवालों (Algae)

प्लान्टी जगत का प्रथम समूह शैवालों (Algae) का है जो सबसे सरल स्वपोषी जीव हैं जो विभिन्न प्रकार के आवासोंमुख्यतः स्वच्छ जल एवं समुद्री जल में पाये जाते हैं। इनमें संवहन ऊतक एवं भ्रूण अवस्था का अभाव होता है। 

ब्रायोफाइट्स

विकास की दृष्टि से प्लान्टी जगत में दूसरा स्थान ब्रायोफाइट्स (Bryophytes) का है। ये भूमि पर पाये जाने वाले सबसे सरल पौधे हैं जिनमें संवहन ऊतक का अभाव होता है लेकिन इनमें भ्रूण अवस्था पायी जाती है। इनके अन्तर्गत लिवरवर्ट (Liverwort) एवं मॉस (Moss) को सम्मिलित किया गया है।

ट्रेकियोफाइटा

ब्रायोफाइटा के बाद अगला स्थान ट्रेकियोफाइटा (Tracheophyta) का है जो विविध प्रकार के संवहनी पौधों (Vascular उत्पन्न plants) का एक बहुत बड़ा समूह है। वर्तमान समय में इस समूह के पौधे प्रभावी स्थलीय पौधों को भूमिका में हैं। पादपशब्द का प्रयोग प्रायः संवहनी पौधों के लिए किया जाता है। इन पादपों का शरीर जड़तना एवं पत्तियों में भिन्नित होता है तथा इनमें संवहन ऊतक (जाइलम एवं फ्लोएम) उपस्थित रहता है। 

ट्रेकियोफाइटा को बीज की उपस्थिति एवं अनुपस्थिति के आधार पर दो समूहों- 

(1) टेरिडोफाइटा (बीजरहित पौधे) एवं 

(2) स्पर्मेटोफाइटा (बीजयुक्त पौधे) में विभाजित किया गया है। 

टेरिडोफाइटा (बीजरहित पौधे) 

टेरिडोफाइटा (Pheridophyta) को प्रथम संवहनी पौधे कहा जाता है। इकलर (Eichler, 1883) के वर्गीकरण के अनुसार ये प्रथम संवहनी क्रिप्टोगैम्स (Vascular cryptogams) है अर्थात् पौधों में संवहन तन्त्र (Vascular system) पाया जाता है लेकिन इनमें बीज का निर्माण नहीं होता है। इनका शरीर जड़तना एवं पत्तियों में भिन्नित होता है। 

स्पर्मेटोफाइटा (Spermatophyta) को पुनः दो समूहों में वर्गीकृत किया गया है- 

(1) अनावृतबीजी अथवा नग्नबीजी (Gymnosperms)- इन पौधों के बीज फल के अन्दर बन्द नहीं होते हैं। इनमें फल का अभाव होता है। 

(2) आवृतबीजी (Angiosperms)इन पौधों के बीज फलों के अन्दर बन्द रहते हैं। इन पौधों में पुष्प भी लगते हैं अतः इन पौधों को पुष्पी पादप (Flowering plants) भी कहा जाता है।

 

शैवाल (Algae)

शैवाल पर्णहरित युक्त, सरल , संवहन उत्तक रहित थैलोफाइट्स है।  जिनमे वास्तविक जड़ , तना , पत्तियों का अभाव होता है।

ये लवणीय व अलवणीय जल में , नमीयुक्त दीवारों , गीली मिटटी , लकड़ी व कीचड़ युक्त तालाबों में पाये जाते है।  कुछ शैवाल कवको (लाइकेन) तथा प्राणियों (स्लॉथ रीछ) में सहजीवन के रूप में भी पाये जाते है।

  इनका शरीर थैलस (सुकाय ) के रूप में होता है।

ये एक कोशिकीय (क्लेमाइडोमोनास ) , या बहुकोशिकीय (वाल्वोक्स ) , तन्तुमय (यूलोथ्रिक्स , स्पाइरोगाइरा  ) प्रकार का होता है।

अधिकांश शैवाल यूकेरियोटिक होते है परन्तु नील हरित शैवाल प्रोकेरियोटिक होता है।

शैवालो में सामान्यतया क्लोरोफिल , केरोटिन , जेंथोफिल , फाइकोसायनिन , फाइकोइरिब्तिन आदि वर्णक होते है।

शैवाल स्वपोषी होते है ,भोजन का संचय स्टार्च के रूप में करते है।

शैवाल में जनन  कायिक जनन विखण्डन द्वारा , अलैंगिक जनन चल बीजाणुओ (जुस्पोर ) द्वारा तथा लैंगिक युग्मको के संलयन से होता है।

शैवालो का आर्थिक महत्व :

1. कार्बन डाई ऑक्साइड का आधा भाग प्रकाश संश्लेषण द्वारा शैवाल स्थिर करते है तथा ऑक्सीजन की मात्रा बढ़ाते है।

2. एनाबिना , नॉस्टॉक आदि शैवाल नाइट्रोजन का स्थिरीकरण कर नाइट्रेट व नाइट्राइड बनाकर भूमि की उर्वरक क्षमता बढ़ाते है।

3. पोरफायरा , ग्रेसीलेरिया , लैमीनेरिया , सरगासम आदि शैवालों का उपयोग भोजन के रूप में किया जाता है

4. क्लोरेला में प्रचुर मात्रा में प्रोटीन व विटामिन होते है , जिसका उपयोग अन्तरिक्ष यात्री भोजन के रूप में करते है।

शैवालों के वर्गीकरण का आधार

सभी शैवालों में वर्णक (Pigments) पाये जाते हैं। शैवालों का रंग उनमें उपस्थित वर्णकों के प्रकार एवं उनकी आपेक्षिक मात्रा पर निर्भर करता है। शैवालों में मुख्य रूप से तीन प्रकार के वर्णक पाये जाते हैं-

 

(i) क्लोरोफिल (Chlorophyll ) -

यह पाँच प्रकार के होते हैं जिन्हें क्लोरोफिल a, b c d एवं e द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। क्लोरोफिल की सहायता से शैवाल प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा अपना भोजन स्वयं बना लेते हैं अर्थात् ये स्वपोषित हैं। 

(ii) कैरोटिनॉयड (Carotenoid) - यह दो प्रकार के होते ई- (a) कैरोटीन (Carotene) तथा (b) जैन्थोफिल (Xantho- phyll)| 

(iii) फाइकोविलिन अथवा बिलिप्रोटीन (Phycobilin or Biliprotein) - यह तीन प्रकार के होते हैं- (a) फाइकोसायनिन Phycocyanin), (b) फाइकोएरिथ्रिन (Phycoerythrin) तथा (c) ऐलोफाइकोसायनिन (Allophycocyanin) 

 

शैवालों को तीन भागो में बांटा गया है-

1. क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)

 

सामान्य लक्षण :

  • ये हरे शैवाल होते है , इन्हें समुद्री घास घास भी कहते है।
  • आवास : ये लवणीय व अलवणीय जल में , गीली मिट्टी में पाये जाते है।
  • संरचना : ये एककोशिकीय अथवा तन्तुमय बहुकोशिकीय हो सकते है।
  • इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है।
  • इनमें क्लोरोफिल a b दोनों पाये जाते है।
  • क्लोरोप्लास्ट , प्लेट , सर्पिल , अण्डाकार डिस्क या रिबन के आकार के हो सकते है।
  • क्लोरोप्लास्ट में एक या अधिक पाइरीनॉइड होते है जो स्टार्च के कण है।
  • कायिक जनन विखंडन द्वारा होता है।
  • अलैंगिक जनन चल बीजाणुओं (जुस्पोर) द्वारा होता है।

उदाहरण क्लेमाइडोमोनास , यूलोथीक्रस , स्पाइरोगायरा , वोल्वोक्स


2. फियोफाइसी (phaeophyceae)

 

सामान्य लक्षण :

  • इन्हें भूरे शैवाल भी कहते है।
  • ये मुख्यतः समुद्री आवास में पाये जाते है।
  • इनका शरीर सरल , शाखित , तन्तुमय व सघन शाखित केल्प के रूप में होता है।
  • इनमें क्लोरोफिल A C के रेटिनॉइड , प्यूफोजेन्थीज व जेंथोफिल होते है।
  • इनकी कोशिका भित्ति सेलुलोस की बनी होती है जिसका जिलेटिन स्तर एल्जिन का बना होता है।
  • जनन , कायिक जनन विखंडन द्वारा

·         अलैंगिक जनन चल बीजाणुओं द्वारा

·         लैंगिक जनन युग्मको के संलयन द्वारा

उदाहरण एक्टोकोप्सि , डिक्टयोटा , लेमिनेरिया , सर्गासम , प्युकस आदि।


3. रोडोफाइसी (Rhodophyceae)

सामान्य लक्षण :

  • इन्हें लाल शैवाल भी कहते है क्योंकि लाल रंग आर- फाइकोइरिथ्रिन वर्णक के कारण होता है।
  • ये पानी की सतह पर जहां पर अधिक प्रकाश होता है और वहाँ जहां कम प्रकाश होता है उन स्थानों पर पाये भी जाते है।
  • शरीर थैलस व बहुकोशिकीय होता है।
  • कोशिका भित्ति पोलीसेकेराइड की बनी होती है।
  • ये स्वपोषी होते है तथा भोजन का संचय प्लोरिडीयन स्टार्च के रूप में करते है।

·         जनन :  कायिक जनन विखंडन द्वारा

·         अलैंगिक जनन चल या अचल बीजाणुओं द्वारा

·         लैंगिक जनन युग्मको के संलयन द्वारा

·         उदाहरण पोलीसाइफोनिया , पोरफायरा , जिलेडियम आदि

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