पुष्पी पादपों की आकारिकी- पत्ती| Plant Morphology Part 03

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अध्याय 5

पुष्पी पादपों की आकारिकी

पुष्पी पादपों की आकारिकी- पत्ती| Plant Morphology Part 03


 

पुष्पी पादपों की आकारिकी- पत्ती

तने तथा शाखाओं की पर्व सन्धियों (Internodes) से निकलने वाले पार्श्व असमान भाग को पत्ती कहते हैं। हरितलवक की उपस्थिति के कारण पत्ती का रंग हरा होता है।

 

पत्ती के भाग: आकारिकीय दृष्टि से पत्ती के तीन भाग होते हैं- 

1. पर्णाधार (leaf base) :

संवहनी पौधों में जब पत्ती का परिवर्धन होता है तो इसमें सबसे पहले विकसित होने वाला भाग पर्णाधार होता है। अनेक पौधों जैसे कुल लेग्यूमिनोसी के सदस्यों में फूला हुआ पर्णाधार पाया जाता है जिसे पर्णवृन्त तल्प (pulvinus) कहा जाता है। प्राय: अधिकांश एक बीजपत्री पौधों जैसे पोएसी कुल के सदस्यों में पर्णाधार फैलकर तने के पर्वसंधि पर आधारीय हिस्से को आवरित कर लेता है। इस संरचना को पर्ण आच्छद (leaf sheath) कहते है। जब यह पर्णाच्छद तने को पूरी तरह से ढक लेता है तो इस प्रकार की पर्ण को स्तम्भलिंगी (amplexicaul) कहते है।

2. पर्णवृन्त (petiole) :

पर्ण का वह भाग जो पर्ण फलक और पर्णाधार को जोड़ने का कार्य करता है उसे पर्णवृंत कहते है। जिन पौधों की पत्तियों में पर्णवृन्त उपस्थित होते है , ऐसी पत्तियों को सवृन्त कहते है। जैसे पीपल। इसके विपरीत कुछ अन्य पौधों जैसे आक की पत्तियों में पर्णवृन्त अनुपस्थित होते है और इस प्रकार की पत्तियों को अवृन्त कहते है।

3. अनुपर्ण (stipules)

कुछ पादप प्रजातियों में पत्तियों के आधार के आस पास हरे अथवा शल्की कायिक उपांग पाए जाते है जिन्हें अनुपर्ण अथवा अनुपत्र कहते है।

जिन पत्तियों के अनुपर्ण उपस्थित हो उन्हें अनुपर्णी पर्ण कहते है जैसे गुडहल (या चाइना रोज) , गुलाब आदि। जिन पत्तियों में अनुपर्ण अनुपस्थित हो उन्हें अननुपर्णी पर्ण कहते है। जैसे आइपोमिया।

शिराविन्यास (venation of leaf)

पत्तियों की शिराओं या संवहन बंडलों का व्यवस्थाक्रम शिराविन्यास कहलाता है.

समानान्तर (Parallel) :

शिराविन्यास का ऐसा प्रारूप जिसमें पत्ती की प्रमुख शिराएँ परस्पर समान्तर अथवा लगभग समानान्तर होती है , जैसे केला |

जालिकावत (Reticulate) :

जिसमें पर्णशिराएँ एक जाली के रूप में अनियमित रूप से फैली होती है , जैसे पीपल |

पत्ती के प्रकार (Types of Leaf):

पत्रफलक के कटाव के आधार पर पत्तियाँ दो प्रकार की होती हैं- सरल पत्ती एवं संयुक्त पत्ती।


सरल पत्ती (simple leaf):

वह पत्ती, जिसका फलक अधिक हो और यदि कटा भी हो तो कटाव कभी-भी मध्य शिरा या पत्रवृन्त तक न पहुँचे, सरल पत्ती कहलाती है। जैसे- आम की पत्ती।

संयुक्त पत्ती (Compound leaf):

वह पत्ती जिसका पत्रफलक का कटाव कई स्थानों पर फलक की मध्य शिरा (Midrib) या फलक के आधार तक पहुँच जाता है तथा जिसके फलस्वरूप फलक अनेक छोटे-छोटे खण्डों में बँट जाता है, संयुक्त पत्ती कहलाती है। संयुक्त पत्ती के उदाहरण:- नींबू, नारंगी, नीम, गुलाब आदि।

संयुक्त पत्ती दो प्रकार की होती है

(a) पिच्छाकार संयुक्त पत्ती:

इस प्रकार की पत्ती में अनेक पर्णक एक मध्यशिरा पर स्थित होते है।  उदाहरण नीम आदि।

(b) हस्ताकार संयुक्त पत्ती:

इस प्रकार की पत्ती में अनेक पर्णक एक ही बिंदु अर्थात पर्णवृन्त के शीर्ष से जुड़े रहते है। उदाहरण शिल्ककोटन वृक्ष।

पर्णविन्यास (phyllotaxy)

पत्तियों के तने पर लगने की व्यवस्था को पर्णविन्यास (Phyllotaxy) कहते हैं। पादपो में यह तीन प्रकार का होता है।

(i) एकांतर पर्ण विन्यास:

इस प्रकार के पर्णविन्यास में तने या शाखा पर एक अकेली पत्ती पर्णसन्धि पर एकान्तर क्रम में लगी रहती है। उदाहरण: गेहूं, गुडहल, सरसों, सूरजमुखी आदि।

(ii) सम्मुख पर्णविन्यास:

इस प्रकार के पर्ण विन्यास में प्रत्येक पर्णसन्धि पर एक जोड़ी पत्तियाँ आमने सामने लगी रहती है। उदाहरण: अमरुद, केलोट्रोफिस (आक) आदि।

(iii) चक्करदार पर्णविन्यास:

यदि एक ही पर्ण सन्धि पर दो से अधिक पत्तियाँ चक्र में व्यवस्थित हो तो उसे चक्करदार पर्ण विन्यास कहते है। उदाहरण कनेर, एल्सटोनियम आदि।

पतियों के कार्य (Function of leaves):

पत्तियाँ पौधे का महत्त्वपूर्ण अंग है। यह निम्नलिखित प्रमुख कार्य सम्पादित करती है-

 

·        पत्तियाँ प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधों के लिए भोजन का निर्माण करती हैं।

·        पत्तियाँ प्रकाश-संश्लेषण एवं श्वसन के लिए विभिन्न गैसों का आदान-प्रदान करती हैं।

·        पत्तियाँ उत्स्वेदन (Transpiration) की क्रिया को नियंत्रित करती है।

·        पत्तियाँ कलिकाओं को सुरक्षा प्रदान करती हैं। यह कन्टकों (thorns) में रूपान्तरित होने पर पशु-पक्षियों से पौधों की रक्षा करती है।

·        प्रतन्तुओं में रूपान्तरित होने पर यह कमजोर पौधों को मजबूत आधार प्रदान करती है, तथा आरोहण में मदद करती है।

·        कीटभक्षी पौधों में पिचर (Pitcher), ब्लेडर (Bladder) आदि में यह रूपान्तरित होकर प्रोटीनयुक्त पोषण में सहायता करती है।

·        यह जल तथा घुलनशील भोज्य पदार्थों का पतियों से स्तम्भ तक संचरण में सहायता करती है।

·        कुछ पतियाँ वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) एवं परागण (Pollination) में सहायता करती हैं।

·        कुछ पत्तियाँ भोजन संग्रह (Food storage) का कार्य भी करती हैं।

 

पतियों का रूपान्तरण (Modification of Leaves)-

पत्तियाँ कुछ विशेष कार्य सम्पादित करने हेतु रूपान्तरित हो जाती हैं।

जैसे-

 

पर्ण कंटक (Leaf spines):

इसमें पतियाँ काँटों या शूलों (spines) में रूपान्तरित हो। जाती हैं। जैसे- आर्जिमीन, नागफनी आदि।

पर्ण प्रतान (Leaf tendril)-

इसमें पत्तियाँ रूपान्तरित होकर लम्बी, पतली, तारनुमा कुण्डलित रचना में बदल जाती हैं जिसे प्रतान (Tendril) कहते हैं। ये प्रतान अति संवेदनशील होते हैं और ज्योंहि वे किसी आधार के सम्पर्क में आते हैं, उसके चारों ओर लिपट जाते हैं। इस प्रकार वे पौधों को आरोहण में सहायता प्रदान करते हैं। जैसे- मटर।

पर्णाभवृन्त (Phyllode)-

 इसमें पर्णवृन्त अथवा रेकिस का कुछ भाग चपटा एवं हरा होकर पर्णफलक जैसा रूप ग्रहण कर लेता है। इसे ही पर्णाभवृन्त कहते हैं। यह प्रकाश संश्लेषण का कार्य करता है क्योंकि पौधे की सामान्य पतियाँ नवोद्भद (seedling) अवस्था में ही गिर जाते हैं। जैसे- आस्ट्रेलियन बबूल।

घटपर्णी (Pitcher)-

इसमें पत्ती का पर्णाधार (Leaf base) चौड़ा, चपटा एवं हरे रंग का होता है। पर्णवृन्त (Petiole) प्रतान का, फलक (Leafblade) घटक (Pitcher) का तथा फलक शीर्ष ढक्कन का रूप ले लेता है। इस प्रकार सम्पूर्ण पत्ती घटनुमा रचना में परिवर्तित हो जाती है। घट (Pitcher) की भीतरी सतह पर पाचक ग्रन्थियाँ (digestive glands) होती हैं, जिनसे पाचक रस निकलता है। जब कोई कीट आकर्षित होकर फिसलकर घट में गिर जाता है तो घट का ढक्कन स्वतः बन्द हो जाता है। कीट पाचक रस द्वारा पचा लिया जाता है। इस क्रिया द्वारा पौधे अपने नाइट्रोजन की आवश्यकता की पूर्ति करते हैं। जैसे- घाटपर्णी (Pitcher plant)

ब्लेडर वर्ट (Bladderwort)-

यूट्रीकुलेरिया (Utricularia) जैसे जलीय कीटभक्षी पौधों में पतियाँ अनेक छोटे-छोटे खण्डों में बँटी होती हैं। कुछ खण्ड रूपान्तरित होकर थैलीनुमा संरचना बनाते हैं। प्रत्येक थैली (bladder) में एक खोखला कक्ष (Empty chamber) होता है, जिसमें एक मुख होता है। इस मुख पर एक प्रवेश द्वार होता है जिससे होकर केवल सूक्ष्म जलीय जन्तु ही प्रवेश कर सकते हैं। थैली या ब्लैडर के अंदर पाचक एन्जाइम उन सूक्ष्म जन्तुओं को पचा डालते हैं। 

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