संवहन ऊतक तन्त्र भरण अथवा आधारभूत ऊतक तन्त्र | Plant tissue System in Hindi

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 संवहन ऊतक तन्त्र  भरण अथवा आधारभूत ऊतक तन्त्र

संवहन ऊतक तन्त्र  भरण अथवा आधारभूत ऊतक तन्त्र


संवहन ऊतक तन्त्र (Vascular Tissue System) 

संवहन ऊतक तन्त्र का निर्माण प्राक्एधा (Procambium) की कोशिकाओं द्वारा होता है। यह तन्त्र विभिन्न प्रकार के संवहन पूलों (Vascular bundles ) का बना होता है जो मिलकर रम्भ अथवा स्टील (Stele) का निर्माण करते हैं। रम्भ अक्ष का केन्द्रीय (Central) भाग है जो चारों ओर से अन्तस्त्वचा (Endodermis) द्वारा घिरा रहता है अर्थात् इसके अन्तर्गत परिरम्भ (Pericycle), संवहन पूल (Vascular bundles), मज्जा अथवा पिथ (Pith) तथा मज्जा किरणें (Medullary rays) आते हैं। संवहन पूल एधायुक्त खुले हुए या वर्धी (Open) अथवा एधा रहित अर्थात् बन्द या अवर्धी (Closed) होते हैं। प्रत्येक पूल जाइलम तथा फ्लोएम का बना होता है।

 

Notes:-

कभी-कभी संवहन पूल मज्जा में पाये जाते हैं इन्हें मज्जीय संवहन पूल (Medullary vascular bundles ) कहते हैं; जैसे मिराबिलिस (Mirabilis), अमरेन्थस (Amranthus) आदि में। कभी-कभी संवहन पूल वल्कुट (Cortex) में पाये जाते हैं। इन्हें वल्कुटीय संवहन पूल (Cortical vascular bundle) कहते हैं; जैसे निक्टेन्थिस (Nyctanthes), कैजुराइना (Casuarina) आदि में ।

 

संवहन पूल की संरचना (Structure of Vascular Bundles) - 

संवहन पूल में निम्नलिखित तीन भाग होते हैं-

 

(a) दारू अथवा जाइलम (Xylem) - आकार एवं विकास के आधार पर जाइलम दो प्रकार का होता है- 

(i) आदिदारू (Protoxylem) - यह सबसे पहले बनने वाला दारू हैं इनकी वाहिकाओं की गुहा छोटी होती है।

(ii) अनुदारू ( Metaxylem) - इसका निर्माण आदिदारू के बाद होता है तथा इसकी वाहिकाओं की गुहा चौड़ी होती है।

 

आदिदारू उपस्थिति के आधार पर दारू तीन प्रकार के होते हैं- 

(i) अन्तः आदिदारूक अथवा एण्डार्क (Endarch) - 

तनों में दारू का विकास केन्द्र से परिधि की ओर अर्थात् अपकेन्द्रों Centrifugal) होता है, अर्थात् आदिदारू केन्द्र की ओर तथा अनुदारू परिधि की ओर होता है। इस प्रकार के दारू को अन्तः आदिदारूक व्यवा एण्डार्क (Endarch) कहते हैं।

 

(ii) बाह्यआदिदारूक अथवा एक्सार्क (Exarch ) - 

जड़ों में दारू का विकास परिधि से केन्द्र की ओर अर्थात् अभिकेन्द्रों Centripetal) होता है, जिससे इनमें आदिदारू परिधि की ओर तथा अनुदारू केन्द्र की ओर होता है। इस प्रकार के दारू को ह्यआदिदारूक अथवा एक्सार्क (Exarch) कहते हैं।

 

(iii) मध्यादिदारूक अथवा मिसार्क (Mesarch) - 

इसमें दारू का विकास मध्य से दोनों तरफ अर्थात् अभिकेन्द्री व अपकेन्द्री ता है, जिससे आदिदारू मध्य में तथा इसके दोनों किनारों पर अनुदारू आ जाते हैं। इस प्रकार के दारू को मध्यादिदारूक अथवा सार्क (Mesarch) कहते हैं। यह कुछ टेरिडोफाइट्स के फर्नो (Ferns) में पाया जाता है।

 

(b) फ्लोएम (Phloem) - 

संवहन पूल में फ्लोएम परिधि की ओर स्थित होता है। विकास के आधार पर यह दो प्रकार का ता है-

 

(i) आदिफ्लोएम (Protophloem) - यह फ्लोएम का बाहरी भाग है जो पहले बनता है। यह संकरी चालनी नलिकाओं का ना होता है। 

(ii) अनुफ्लोएम (Metaphloem) - यह फ्लोएम का अन्दर की ओर का भाग है जो बाद में बनता है। यह चौड़ी चालनीलिकाओं का बना होता है।

 

(c) एधा अथवा कैम्बियम (Cambium) -

द्विबीजपत्री तनों के संवहन पूलों में जाइलम व फ्लोएम के मध्य विभज्योतक तक की एक पतली पट्टी पायी जाती है, जिसे एधा अथवा कैम्बियम (Cambium) कहते हैं। यह एकपर्तीय अथवा बहुपर्तीय होती । इसकी कोशिकाएँ आयताकार तथा पतली भित्तियुक्त होती हैं। इसकी कोशिकाओं के विभाजन से दारू तथा फ्लोएम के नये ऊतकों निर्माण होता है। एकबीजपत्री पौधों की जड़ों तथा तनों में एधा का अभाव होता है। द्विबीजपत्री जहाँ की प्रारम्भिक अवस्था में एधा का अभाव होता है लेकिन द्वितीयक वृद्धि की क्रिया शुरू होने पर इसका निर्माण हो जाता है। एधा का मुख्य कार्य द्वितीयक वृद्धि (Saondary growth) में सहायता करना है।

 


संवहन फूलों के प्रकार (Types of Vascular Bundles) - 

ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं- 

(a) अरीय (Radial) – 

इसमें दारू व फ्लोएम भिन्न-भिन्न त्रिज्याओं (Radii) पर एक-दूसरे के एकान्तर में पाये जाते हैं। ये - जड़ों में पाये जाते हैं।

 

(b) संयुक्त (Conjoint ) -

इसमें दारू व फ्लोएम एक ही पूल में एक ही त्रिज्या पर उपस्थित होते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- 

(i) बहि: फ्लोएमी (संपार्शिवक) अथवा कोलेटरल (Collateral) - 

इसमें फ्लोएम, दारू के एक ओर स्थित होता है। इसमें दारू केन्द्र की ओर तथा फ्लोएम परिधि की ओर स्थित होता है। द्विबीजपत्री एवं अनावृतबीजी तनों के संवहन पूल में इन दोनों के बीच एधा पायी जाती है जबकि एकबीजपत्री तनों में इसका अभाव होता है। इन संवहन पूलों को क्रमशः खुले या वर्धी (Open) तथा बन्द या अवर्धी (Closed) कहते हैं।

 

(ii) उभयफ्लोएमी अथवा बाइकोलेटरल (Bico- llateral) - 

इसमें दारू के दोनों तरफ, बाहर और भीतर दो एधा। तथा दो फ्लोएम होते हैं जिन्हें क्रमश: बाहरी एधा, बाहरी फ्लोएम एवं भीतरी एधा, भीतरी फ्लोएम कहते हैं। इसमें केवल बाहरी एधा द्वारा ही द्वितीयक वृद्धि प्रदर्शित होती है। इस प्रकार के पूल सदैव वर्धी अथवा खुले (Open) होते हैं। ये कुकुरबिटेसी (Cucurbitaceae) कुल के सदस्यों में पाये जाते हैं।

 

(c) संकेन्द्री (Concentric ) - 

इसमें एक प्रकार का संवहन ऊतक दूसरे प्रकार के संवहन ऊतक को पूर्णतः घेरे रहता है। ये दो प्रकार के होते हैं-

 

(i) दारूकेन्द्री अथवा एम्फीक्राइबल (Amphicribal or Hadrocentric) -

इसमें दारू के चारों ओर फ्लोएम एक घेरे के रूप में पाया जाता है। ये टेरिडोफाइटा के कुछ सदस्यों जैसे- लाइकोपोडियम (Lycopodium), सिलेजिनेला(Selaginella) आदि में पाये जाते हैं।

 

(ii) फ्लोएमकेन्द्री अथवा एम्फीवेसल (Amphivasal or Leptocentric ) - 

इसमें फ्लोएम के चारों ओर दारू घेरे के रूप में पाया जाता है; जैसे- ड्रेसीना (Dracaena), यक्का (Yucca) आवि पौधों में।

 

 

3. भरण अथवा आधारभूत ऊतक तन्त्र (Ground or Fundamental Tissue System)

Ground or Fundamental Tissue System


 

यह ऊतक तन्त्र बाह्यत्वचा से लेकर पौधे के अन्दर मध्य भाग तक फैला होता है। इसका निर्माण पेरीब्लेम (Periblem) तथा प्लीरोम (Plerome) नामक स्तरों से होता है। यह विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं द्वारा निर्मित होता है। इसका मुख्य कार्य भोज्य पदार्थों का निर्माण, संग्रह तथा पौधों को यान्त्रिक शक्ति प्रदान करना है ।

 

यह ऊतक तन्त्र पौधे का अधिकांश भाग बनाता है। इस ऊतक तन्त्र में निम्नलिखित भाग होते हैं-

 

(a) वल्कुट अथवा कॉर्टेक्स (Cortex), 

(b) परिरम्भ अथवा पेरीसाइकिल (Pericycle), 

(c)पिथ (Pith or Medulla), 

(d) मज्जा किरणें अथवा मेड्यूलरी रेज (Pith rays or Medullary rays)

 

(a) वल्कुट अथवा कॉर्टेक्स (Cortex) - 

यह बाह्यत्वचा से लेकर परिरम्भ (Pericycle) तक फैला रहता है तथा मृदूतक का बना होता है। द्विबीजपत्री तनों में यह निम्नलिखित तीन भागों में विभक्त होता है- प्रायः

 

(i) अघस्त्वचा अथवा हाइपोडर्मिस (Hypodermis ) - 

यह भाग बाह्यत्वचा के ठीक नीचे स्थित होता है। द्विबीजपत्री त में यह स्थूलकोण ऊतक तथा एकबीजपत्री तनों में दृढ़ ऊतक का बना होता है। एकबीजपत्री तनों में यह पूरी पट्टी अथवा छेटे-घंटे टुकड़ों में पाया जाता है जो कि दृढ़ोतकी कोशिकाओं के बने होते हैं। यह भाग पौधे के अंगों को दृढ़ता प्रदान करता है।

 

(ii) सामान्य वल्कुट (General Cortex) - 

यह अधस्त्वचा के ठीक नीचे वाला भाग है जो कई पर्त मोटा होता है। यह भाग प्राय: मृदूतकी (Parenchymatous) कोशिकाओं का बना होता है। कभी-कभी इसमें हरित लवक भी पाये जाते हैं। तब इन्हें हरित ऊतक (Chlorenchyma) कहते हैं। जलीय पौधों के भाग में वायुतक (Aerenchyma) पाया जाता है। इस भाग की कोशिकाओं में टैनिन, मण्ड तथा अन्य स्रावी पदार्थ पाये जाते हैं। इस स्तर का मुख्य कार्य भोजन संग्रह करना है।

 

(iii) अन्तस्त्वचा अथवा एण्डोडर्मिस (Endodermis ) - 

यह वल्कुट का अन्तिम स्तर है जो सामान्यतया एक पर्त का बना होता है। इसकी कोशिकाएँ ढोल के आकार की (Barrel shaped) तथा आपस में सटी होती हैं। इन कोशिकाओं की अरीय (Radial) भित्ति पर लिग्निन या सुबेरिन की पट्टियाँ बन जाती हैं। इनको कैस्पेरियन पट्टियाँ (Casparian strips) कहते हैं। जड़ों में आदिदारू के सामने वाली एक या दो कोशिकाएँ पतली भित्ति वाली वाली रह जाती हैं। इनको मार्ग कोशिकाएँ (Passage cells) कहते हैं। तने की अन्तस्त्वचा की कोशिकाओं में मण्ड कण उपस्थित रहते हैं अत: इसे मण्ड आच्छद (Starch sheath) भी कहते हैं। एकबीजपत्री पौधा में इसका अभाव होता है । अन्तस्त्वचा तनों में अधिक स्पष्ट नहीं होती है । अन्तस्त्वचा, दारू और वल्कुट के बीच जल और वायु के दाब को नियन्त्रित करती है। मूलदाब को एक-सा बनाये रखती है तथा खाद्य पदार्थों के संग्रह करने में सहायक होती है।

 

(b) परिरम्भ अथवा पेरीसाइकिल (Pericycle) - 

यह अन्तस्त्वचा के ठीक नीचे स्थित होता है। द्विबीजपत्री तनों में यह अविरल (Continuous) अथवा टुकड़ों (Patches) में पाया जाता है। एकबीजपत्री तनों में इसका अभाव होता है। जड़ों में यह एकस्तरीय (Single layered) होता है। जड़ों की पार्श्व शाखाएँ (Lateral roots) इसी भाग से निकलती हैं।

 

द्विबीजपत्री जड़ों में परिरम्भ के द्वारा संवहन एधा (Vascular cambium) एवं कॉर्क एधा अथवा कागजन (Phellogen) का निर्माण होता है। जब इसकी कोशिकाएँ दृढ़ ऊतकी होती हैं तब यह शक्ति प्रदान करता है तथा जब इसकी कोशिकाएँ मृदूतकी होती हैं तब यह भोज्य पदार्थों को संग्रह करने का कार्य करता है।

 

(c) मज्जा अथवा पिथ (Pith or Medulla) - 

यह जड़ तथा तनों का केन्द्रीय भाग है जो प्रायः पैरेन्काइमी (Parenchymatous ) कोशिकाओं से बनता है। एकबीजपत्री जड़ तथा द्विबीजपत्री तने में काफी विकसित होता है । परन्तु द्विबीजपत्री जड़ तथा एकबीजपत्री तने में यह बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता है। बहुत से तनों में इसके मध्य का भाग नष्ट हो जाता है जिसके कारण खोखला स्थान बन जाता है। 

सामान्यतः इसका कार्य जल एवं खाद्य पदार्थों का संचय करना होता है।

 

(d) मज्जा किरणें अथवा मेड्यूलरी रेज (Pith Rays or Medullary Rays) - 

केवल द्विबीजपत्री तनों में संवहन पूलों के बीच-बीच में मृदूतक कोशिकाओं की पर्तें होती हैं जो अरीय स्थिति में मज्जा से परिरम्भ तक फैली दिखाई देती हैं। इन्हीं पट्टियों को मज्जा किरणें अथवा मेड्यूलरी रेज (Medullary Rays) कहते हैं। यह जल तथा भोज्य पदार्थों के अनुप्रस्थ स्थानान्तरण में मदद करती हैं।

 

पादप अंगों की आन्तरिक संरचना [INTERNAL STRUCTURE OF PLANT ORGANS]

 

तने की आन्तरिक संरचना (Internal Structure of Stem )

 

द्विबीजपत्री तने की प्राथमिक आन्तरिक संरचना (Primary Internal Structure of Dicot Stem एक प्रारूपिक द्विबीजपत्री पौधे (सूरजमुखी) के तने की अनुप्रस्थ काट में निम्नलिखित संरचनाएँ दिखाई देती हैं-

 

द्विबीजपत्री तने की प्राथमिक आन्तरिक संरचना (Primary Internal Structure of Dicot Stem

(1) बाह्यत्वचा (Epidermis ) - यह तने का सबसे बाहरी एक स्तरीय भाग है जो जीवित मृदूतक कोशिकाओं का बना होता है। इसके बाहर क्यूटिकल पायी जाती है।

 

(2) वल्कुट अथवा कॉर्टेक्स (Cortex) - यह तीन भागों का बना होता है- 

(i) अधस्त्वचा अथवा हाइपोडर्मिस (Hypodermis ) -

यह एपीडर्मिस के नीचे बहुस्तरीय भाग है जो कॉलेन्काइमी (Collenchymatous) कोशिकाओं का बना होता है एवं तने को दृढ़ता तथा लचीलापन प्रदान करता है। 

(ii) सामान्य वल्कुट (General Cortex) - 

यह पतली भित्ति वाली, जीवित, मृदूतक कोशिकाओं का बना होता है। इसमें अन्तरकोशिकीय स्थान होते हैं।

 

(iii) अन्तस्त्वचा अथवा एण्डोडर्मिस (Endodermis ) -

ह कॉर्टेक्स की सबसे भीतरी पर्त होती है जो ढोलकाकार (Barrel- shaped) मृदूतक कोशिकाओं की बनी होती है।

 

(3) रम्भ (Stele ) - 

एण्डोडर्मिस के भीतर स्थित सभी ऊतक रम्भ का निर्माण करते हैं- 

(i) परिरम्भ अथवा पेरीसाइकिल (Pericycle ) - 

यह स्तर मृदूतकों एवं दृढ़ ऊतकों की कोशिकाओं के एकान्तर समूहों के रूप में व्यवस्थित होता है।

 

(ii) संवहन बण्डल (Vascular Bundles) – 

ये संयुक्त, कोलेटरल अथवा बाइकोलेटरल एवं वर्धी (खुले) (Open) होते हैं तथा एक वलय में स्थित होते हैं। इसमें जाइलम तथा फ्लोएम एक ही त्रिज्या पर स्थित होते हैं। जाइलम तथा फ्लोएम के बीच कैम्बियम पाया जाता है। जाइलम एण्डार्क (Endarch) होता है।

 

(4) मज्जा अथवा पिथ (Pith) - 

यह तने का केन्द्रीय भाग है जो मृदूतक कोशिकाओं का बना होता है तथा इनमें अन्तराकोशिकीय स्थान पाये जाते हैं।

 

(5) मेड्यूलरी रेज अथवा मज्जा रश्मियाँ (Medullary Rays) - 

संवहन बण्डलों के बीच-बीच में पतली मृदूतक कोशिकाओं वाला भाग मेड्यूलरी रेज कहलाता है।

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