कक्षा 12वी हिन्दी : कवितावली प्रश्न उत्तर | Kavitavali Class 12th in Hindi

Admin
0

 

कवितावली प्रश्न उत्तर | Kavitavali MP Board Hindi Solution

कक्षा 12वी हिन्दी : कवितावली प्रश्न उत्तर ( Kavitavali MP Board Solution) 

प्रश्न 1. 'कवितावलीमें उद्धृत छंदों के आधार पर स्पष्ट करें कि तुलसीदास को अपने युग आर्थिक विषमता की अच्छी समझ है।  

अथवा 

तुलसीदास के कवित्त के आधार पर तत्कालीन समाज की आर्थिक विषमता पर प्रकाश डालिए। 

अथवा 

तुलसी- युग में भी बेरोजगारी थी। पाठ के आधार पर अपना मन्तव्य लिखिए तथा उस समस्या के समाधान के लिए तुलसीदास जी ने किस भरोसा को जताया है ?

 

उत्तर- 

किवदंति है कि साहित्य समाज का दर्पण होता है और साहित्यकार उस दर्पण को निर्मित करते है। यही कार्य तुलसीदास जी ने भी किया हैभारतीय संस्कृति और सभ्यता में साधुसंतों और ईश्वर के भक्तों को दीन-दुखियों का मददगार और मार्गदर्शक माना गया है। यह दायित्व तुलसीदास जी ने बखूबी निभाया है। उन्होंने प्रभु राम की भक्ति करके यह ज्ञान और अनुभव प्राप्त कर लिया था कि प्रभु राम दीन-दुखियों के नाथ हैं। पालु हैं इसलिए उन्होंने भुखमरी और बेरोजगारी से पीड़ित आम लोगोंमजदूरकिसानभिखारीकलाकार आदि को कहाँ जाए क्या करें के जवाब में उन्हें भगवान राम की शरण में जाने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। 


प्रश्न 2. पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है— तुलसी का यह काव्य सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है तर्कसंगत उत्तर दीजिए। 

उत्तर— तुलसी का यह कथन पेट की आग का शमनईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है।" यह समय का भी युग सत्य है। शास्त्रों के अनुसार- 'कर्म करो फल की इच्छा न करोअर्थात् कर्म मानव के हाथ में और फल ईश्वर के हाथ में होता है। किसी क्षेत्र विशेष में भी कर्म सभी समान करते हैं किन्तु सभी को समान फल नहीं मिलता किसी को जल्दीकिसी को देर सेकिसी को कम और किसी को ज्यादा। यह बातइस बात पर आधारित है कि कार्य करने वाले की कुशलता कैसी है कर्म की कुशलता में धर्म जुड़ा होता है। किसी सामान्य कार्य में भी सतर्कता और चतुराई आवश्यक होती है। उसी प्रकार कर्म में धर्मनैतिकता और आशीर्वाद का जब-जब सामंजस्य होता है। सभी श्रेष्ठतम् फल प्राप्त होते हैंअन्यथा किसी एक को भी कमी होने असंतुलन की अवस्था में फल की कमी देरी या ना मिलने की आशंका होती है। उदाहरण के लिए- फिल्मी दुनिया के संजयदत्त का जीवन अनेक उतार-चढ़ाव से भरा पड़ा है।

 

प्रश्न 3. तुलसी ने यह कहने की जरूरत क्यों समझी ? 

धूत कहीअवधूत कहीरजपूत कहाँजोलहा कहाँ कोऊ / काहू की बेटीसों बेटा न व्याहबकाहूकी जाति बिगार न सोऊ। 

इस सवैया में काहू के बेटीसों बेटा न व्याहबकहतेतो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता ?

उत्तर- धूत कहाँअवधूत कहाँरजपूत कहीजोलहा कहाँ कोक / काहू की बेटीसों बेटा न व्याहबकाहूकी जाति बिगार न सोऊ।। तुलसीदास को यह कहने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि उस समय में विवाह से पूर्व मातापिताजाति व वर्ण विचार अनिवार्य रूप से करते हैं। ऊँच-नीच जाति की मान्यता के कारण बेटी की शादी भी उच्च जाति या समान जाति में करने का विधान था चूँकि बेटी का विवाह माता-पिता की अनुमति व इच्छा पर निर्भर था। विवाह तय करने का कार्य ब्राह्मण पंडितों का होता था। अतः तुलसी अपने ब्राह्मण व पांडित्य धर्म के अनुरूप किसी की बेटी का विवाह दूसरी जाति में या बेमेल वर्ण में तय नहीं करना चाहते थे। 

यदि सवैया में काहू के बेटा सो बेटी न व्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में यह परिवर्तन आता कि पुरुष प्रधान समाज में तुलसी अपनी बेटी के विवाह के लिए भी यही विचारते हैं कि उनकी बेटी की जाति बिगड़ न जाए क्योंकि विवाह पश्चात् लड़की लड़के की जाति की हो जाती है। 

प्रश्न 4. " धूत कहाँ... ........." वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक स्वाभिमानी भक्त हृदय की है। इससे आप कहाँ तक सहमत हैं ? 'अथवा

धूत कहाँ छंद के आधार पर तुलसीदास के भक्त हृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए।

 

उत्तर- " धूत कहाँ ... वाले छंद में ऊपर से सरल व निरीह दिखाई पड़ने वाले तुलसी की भीतरी असलियत एक भक्त हृदय की है। मैं इससे पूर्णतः सहमत हूँ क्योंकि-

 

1. तुलसी अपने नाम के उपनाम 'दाससे हो सबको प्रदर्शित करते हैं कि वे 'तुलसी सरनाम गुलामअर्थात् वे राम भक्तराम के दास हैं। वे पूर्णतः राम को समर्पित हैं। 

2. भुखमरी और बेरोजगारी के दौर मेंउन्होंने ऊँचे-नीचे करम व धर्म-अधर्म जैसे कार्य न करते हुए भिक्षा माँग कर भूख मिटाने और मस्जिद में आश्रय लेना स्वीकार किया। 

3. वे अपने कर्त्तव्यों में पक्के थे उन्होंने पंडिताई में किसी की बेटी का विवाह किसी से कर जाति बिगाड़ने का कार्य नहीं किया। 

4. अंत में उन्होंने 'लैबोको एक न दैबोको कोककह कर 'किसी से कोई लेना देना नहींकहा।

 


प्रश्न 6. भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए।

उत्तर- भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रूप में रचा है। राम वास्तव में भगवान हैं। नर लीला करने के उद्देश्य से अवतार लिया। भगवान होने से उन्हें भावी घटनाओं का पूर्वज्ञान है। फिर भी उन्होंने मानवीय अनुभूतियों को हूबहू रचा है- "मुझे मालूम होता कि तुमसे बिछुड़ना पड़ेगा तो पिता के आदेश का पालन नहीं करता" मूर्च्छा लक्ष्मण को बार-बार हृदय से लगाना । मेरे दुखी वचनों को सुनकर उठो ना भाई। मैं अयोध्या जाकर क्या मुँह दिखाऊँगाजैसे वचन और नारी को गँवाना विशेष नुकसान नहीं हैजैसी बातें एक सामान्य मानव मनोचित में ही आते हैं।

 

प्रश्न 7. शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव क्यों कहा गया है ? 

उत्तर- शोकग्रस्त माहौल में हनुमान के अवतरण को करुण रस के बीच वीर रस का आविर्भाव कहा गया हैक्योंकि लक्ष्मण को शक्तिबाण लगने से उनकी मूर्च्छावस्था अत्यंत ही शोक का कारण था ऐसे में उपचार हेतु लाए गए सुषेण वैद्य ने संजीवनी औषधि को अनिवार्यता कही है। संजीवनी साधारण औषधि न होकर हिमालय पर्वत पर ही प्राप्त हो सकती थी जिसे लाने का कार्य हनुमान को सौंपा गया। इतनी दूर से पहचान कर उस औषधि को लाना भी कोई संभव कार्य नहीं थाअतः हनुमान को औषधि लेकर आने में इतनी देर होने लगी कि अगले दिन के भोर का वक्त आ गयामें प्रभु राम की व्याकुलता और विलाप बढ़ने लगी जिसे देखकर राम सेना के वानरों और भालूओं में भी दुःख का संचार बढ़ता गया तभी हनुमान जी ने न केवल औषधि लाई वल्कि पूरा का पूरा पहाड़ उठा लाया। हनुमान जी की ऐसी वीरता को देखकर कवि ने करुण रस के बीच वीर रस का जाविर्भाव कहा है।

 

प्रश्न 8. जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई। नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ।। 

बरु अपजस सहते जग माहीं। नारि हानि विसेष छति नाहीं ।। 

भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप वचन में स्त्री के प्रति कैसा सामाजिक दृष्टिकोण संभावित है ?

 

उत्तर- भाई के शोक में डूबे राम के इस प्रलाप वचन में पत्नी को भाई से कम महत्व दिया गया है क्योंकि सामाजिक मान्यता में विशेष अधिकार पुरुषों को प्राप्त हैजहाँ नारी का विकल्प है किन्तु भाई का नहीं। सामान्यतः ऐसे वचन नारी जाति को अपमानित करता है किन्तु शोकावस्था में कहे गए वचन उचित और स्वाभाविक है। नारी के आत्मसम्मान में चोट पहुँचाए जाने वाले वचनों से सामाजिक अधिकारों में परिवर्तन की आवश्यकतास्त्रियों को भी ऐसे विशेष अधिकार प्रदान किए जाने चाहिए क्योंकि जीवन रूपी गाड़ी के दो पहियों में प्रत्येक पहिए को विकल्प पहिए की आवश्यकता पड़ती पाठ के आप-पास

 


प्रश्न 9. 'पेट ही को पचतबेचत बेटा-बेटकीतुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें। 

उत्तर- 'पेट ही को पचतबेचत बेटा-बेटकीतुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य है। भूखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय विदारक हमारे देश में घटती रही वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है। वर्तमान समय में भी कुछ आदिवासी इलाकों ऐसी घटनाएँ देखने को मिलती हैं। कई बार सूखाअकाल या प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित गरीबीबेरोजगारी एकाकी जीवन जीने वाली बेसहारागरीबअसहाय नारी का भी अपने बेटा-बेटी बेचने जैसी घटनाएँ समय-समय घटित होती है।

 

प्रश्न तुलसी युग की बेकारी क्या कारण हो सकते आज की बेकारी की समस्या के कारणों साथ उसे मिलाकर कक्षा परिचर्चा करें। 

उत्तर- तुलसी युग बेकारी के कारण निम्न हैं- 

  • अनावृष्टि अल्पवृष्टि फसलों की पैदावार न होना। 
  • अतिवृष्टि बाढ़ से फसलें खराब हो जाना।
  •  भूमिहीन कृषकों की समस्या 
  • जमीदारों कर्ज अदायगी हो पाना व्यापार हानि। 
  • प्राकृतिक आपदाएँमहामारीबीमारी।

वर्तमान में बेकारी कारण निम्न हैं- 

  • कृषि कार्य प्रति युवाओं की अरुचि 
  • पैतृक व्यवसाय रुचि होना। 
  • बढ़ती जनसंख्या 
  • अशिक्षा 
  • रोजगारोन्मुख पाठ्यक्रमों की कमी। 
  • जातिगत आरक्षण। 
  • अनावृष्टिअतिवृष्टि 
  • प्राकृतिक आपदाएँ-बादभूकंपभूस्खलन आदि।

 

प्रश्न 4. राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार के परस्पर सहोदर (एक ही के पेट से जन्में) नहीं थे। फिरराम ने उन्हें लक्ष्य करके ऐसा क्यों कहा- 'मिलइ न जगत सहोदर 'भ्राता'? पर विचार करें। 

उत्तर- राम कौशल्या के पुत्र थे और लक्ष्मण सुमित्रा के। इस प्रकार के परस्पर सहोदर (एक ही माँ के से जन्में) नहीं थे। फिरउन्हें लक्ष्य करके मिलइ न जगत सहोदर भ्राताइसलिए कहा है क्योंकि लक्ष्मण ने अपनी माँ और पत्नी को छोड़कर राम के साथ वनवास जाकर उनके प्रति एक छोटे भाई के कर्तव्यों को निभाया था। अपने भाई व दुःख उनके साथ परछाई की तरह खड़े रहे। भाभी के लिए अपने प्राणों पर लगाया। ऐसा केवल एक सहोदर ही कर सकता हैअन्य कोई नहीं। 

किन्तु कलयुग के में ऐसा सहोदर भाइयों में भी सर्वत्र देखने को नहीं मिलता हैकहीं-कहीं भाई भी साथ नहीं हैं।

 

प्रश्न 5. कवि तुलसी के दोहाचौपाईसोरठाकवित्तसवैया ये पाँच छंद प्रयुक्त किए हैं। इसी में काव्य रूप आए हैं। ऐसे छंदों काव्य-रूपों की सूची बनाएँ । 

 

उत्तर- तुलसी साहित्य में अन्य छंदों का भी प्रयोग हुआ हैजो निम्नलिखित हैं- बरवैछप्पयहरिगीतिका।

 काव्य रूप -

प्रबंध काव्य - रामचरित मानस  

मुक्तक काव्य-विनय पत्रिका। 

गेयपद शैली - गीतावली।

 

इन्हे भी जाने - 

चौपाई 

चौपाई सममात्रिक छंद है जिसके दोनों चरणों में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चालीस चौपाइयाँ वाली रचना को चालीसा कहा जाता है यह तथ्य लोकप्रसिद्ध है। 

दोहा-

दोहा अर्धसम् मात्रिक छंद है। इसके समचरणों (दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं तथा विषम चरणों (पहले व तीसरे) में 13-13 मात्राएँ होती हैं इसके साथ अंत लघु (1) वर्ण होता है। 

सोरठा- 

दोहे को उलट देने से सोरठा बन जाता है। इसके सम चरणों में 13-13 मात्राएँ तथा विषम चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। परंतु दोहे के विपरीत इसके सम चरणों (दूसरे और चौथे चरण में अंत्यानुप्रास या तुक नहीं रहतीविषम चरणों (पहले और तीसरे) में तुक होता है।

 

कवित्त - 

यह वार्णिक छंद है। इसे मनहरण भी कहते हैं कवित्त के प्रत्येक चरण में 31-31 वर्ण होते. हैं। प्रत्येक चरण के 16 वें और फिर 15 वें वर्ण पर यति रहती है। प्रत्येक चरण का अंतिम वर्ण गुरू होता है। 

सवैया - 

चूँकि सवैया वार्णिक छंद हैइसलिए सवैया छंद के कई भेद हैं। ये भेद गणों के संयोजन के आधार पर बनते हैं। इनमें सबसे प्रसिद्ध मत्तगयंद सवैया है इसे मालती सवैया भी कहते हैं। सवैया के प्रत्येक चरण में 22-26 वर्ण होते हैं।

 

कवितावली महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. " धूत कही.... " छंद के आधार पर तुलसी दास के भक्त हृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए। 

उत्तर-तुलसीदास की अपने आराध्य 'रामपर असीम कृपा है। वे संसार के सब संकटों को सहते हुए भी राम के प्रति भक्ति में कमी नहीं आने देते। वे स्वयं को 'राम का गुलामकहते हैं। यह दास्य भक्ति का सुंदर उदाहरण है।

 

प्रश्न 2. 'लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप काव्यांश के आधार पर भ्रातृशोक में विह्वल राम की दशा को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। 

उत्तर- लक्ष्मण को मूर्च्छित देखकर राम विलाप करने लगे। वे भ्रातृ शोक से विहल हो उठे। वे बार-बार उसके त्यागसमर्पण और स्नेह का वास्ता देने लगे। वे लक्ष्मण को अपने साथ लेने के निर्णय पर पछताने लगे। कहने लगे कि मैंने लक्ष्मण को अपनी सेवा में लाकर बहुत भूल की। वे स्वयं को मणिरहित साँप के समान और सूँड रहित हाथी के समान लाचार कहने लगे। उन्हें भय सताने लगा कि वे वापस अयोध्या जाकर माँ सुमित्रा को क्या उत्तर देंगे। इस प्रकार वे 'शोकमें डूब गए। 

प्रश्न 3. "धूत कहीअवधूत कही... .." सवैये में तुलसीदास का स्वाभिमान प्रतिबिंबित होता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।  

उत्तर-तुलसीदास जी स्वाभिमानी थे वे जातिसंप्रदायवर्ग वर्ण के भेदों से ऊपर थे तथा प्रभावशाली लोगों को खरी-खोटी सुनाने में नहीं चूकते थे। उन्होंने हिन्दू धर्म के मनमाने आदेशों को मानने से इंकार कर दिया। इसलिए धर्म के ठेकेदारों ने उन्हें जुलाहाधूर्त आदि कहकर अपमानित किया। परंतु तुलसीदास झुके नहीं। वे मस्जिद में रात बिताते थे और निश्चिंत होकर रामकथा कहते थे। उन्होंने किसी का अनुचित दबाव मानने की बजाय फक्कड़ बाबा बनकर जीना ठीक समझा। इससे उनके स्वाभिमानी व्यक्तित्व का परिचय मिलता है।

 

प्रश्न 4. 'लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप', काव्यांश लक्ष्मण के प्रति राम के प्रेम के कौन- कौन से पहलू अभिव्यक्त हुए हैं 

उत्तर- राम लक्ष्मण से अगाध प्रेम करते थे। वे उन्हें अपने सब संबंधों से ऊपर मानते थे। वे उन्हें अपना परम सहयोगी और विश्वासपात्र मानते थे। लक्ष्मण राम का दाहिना हाथ थे जिसके बल पर वे बड़ी से बड़ी मुसीबत से टकरा सकते थे।

 

प्रश्न 5. तुलसी के सवैये के आधार पर प्रतिपादित कीजिए कि उन्हें भी जातीय भेदभाव का दबाव झेलना पड़ा था। 

उत्तर - तुलसीदास को भी उसके जातिवादी समाज ने बहुत प्रताड़ित किया था। समाज ने उनका बहुत बहिष्कार किया था। वे कुछ लोगों द्वारा जाति से बाहर कर दिए गए थे। यहाँ तक कि उन्हें मस्जिद में जाकर सोना पड़ता था। 

प्रश्न 6. कुंभकरण के द्वारा पूछे जाने पर रावण ने अपनी व्याकुलता के बारे में क्या कुंभकरण से क्या सुनना पड़ा ?

उत्तर- कुंभकरण के पूछने पर रावण ने उसे अपनी व्याकुलता के बारे में विस्तारपूर्वक बताया कि किस तरह उसने माता सीता का हरण किया। फिर उसने बताया कि हनुमान ने सब राक्षस मार डाले हैं और महान योद्धाओं का संहार कर दिया है। 

उसकी ऐसी बात सुनकर कुंभकरण ने कहा कि अरे मूर्ख जगत जननी को चुराकर अब तू कल्याण चाहता है। यह संभव नहीं है।

 

प्रश्न 7. लक्ष्मण मूर्च्छा प्रसंग के आधार पर तुलसी की नारी दृष्टि पर प्रकाश डालिए। 
अथवा 
'नारी हानि विशेष छति नाहिंकहकर तुलसीदास ने जो सामाजिक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है उस पर अपने विचार एक अनुच्छेद में व्यक्त कीजिए।
 

उत्तर- तुलसी का युगभारतीय परिवार-व्यवस्था को सम्मानित करने वाला युग था। उसमें भाई का महत्व पत्नी से अधिक था कारण स्पष्ट है— भाई का संबंध व्यक्ति के हाथ में नहीं है। पत्नी का संबंध उसके अपने हाथ में का संबंध जन्मजात हैपुराना हैदीर्घ हैप्राकृतिक है। पत्नी का संबंध नियोजित है। तुलना करने पर भाई का महत्व अधिक ठहरता है। अतः पत्नी की तुलना में भाई को अधिक महत्वपूर्ण बताने के कारण की नारी दृष्टि को दोष नहीं दिया जा सकता हैबल्कि उनकी सूक्ष्म दृष्टि की प्रशंसा करना चाहिए। जहाँ तक सम्मान का प्रश्न हैवे वन में रहकर भी लक्ष्मण की माता के बारे में सोचकर भावुक हो उठते हैं। वे नारी के माँ रूप का अधिक सम्मान करते हैं।

Tags

Post a Comment

0 Comments
Post a Comment (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top