12th Hindi Question Answer | जूझ पाठ के महवपूर्ण प्रश्न उत्तर

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  12th Hindi Question Answer : जूझ पाठ के महवपूर्ण प्रश्न उत्तरजूझ पाठ के महवपूर्ण प्रश्न उत्तर (अभ्यास के प्रश्नोत्तर) | MP Board Hindi Question Answer

 

 12th Hindi Question Answer : जूझ पाठ के महवपूर्ण प्रश्न उत्तर

प्रश्न 1. 'जूझशीर्षक के औचित्य पर विचार करते हुए यह स्पष्ट करें कि क्या यह शीर्षक कथा नायक की किसी केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को उजागर करता है  

  • उत्तर- 'जूझशीर्षक कथा नायक की केन्द्रीय चारित्रिक विशेषता को निश्चित रूप से उजागर करता है। जूझ का अर्थ है संघर्ष करना और यही कार्य कथा का प्रमुख नायक लेखक आनंदा ने किया है। छोटी-सी उम्र में वह खेतों के काम के साथ-साथ विद्यालय जाने के कार्य को बखूबी पूरा करता था। किन्तु चौथी कक्षा के बाद जब पिता ने उसे अपने स्वार्थ की खातिर खेतों में झोंककर पाठशाला जाना बंद करा दिया तब वह हार न मानते। हुए पाठशाला जाने के लिए अपनी माँ और देसाई सरकार से निवेदन किया। पाठशाला जाने की अनुमति के पहले पिता द्वारा खेतों के काम को पूरा करने के बाद हो पाठशाला जा सकने के वचन को स्वीकार किया। पाठशाला जाने पर भी वहाँ उसे अनेक शरारती लड़कों के मजाक और प्रताड़ना का शिकार होना पड़ा फिर भी वह पाठशाला जाने से पीछे न हटा। उन लड़कों की शरारतों को सहते हुए भी वह कक्षा में पढ़ने में मन लगा लिया। अंततः काव्य लेखन के प्रति उसकी रुचि में भी कई उतार-चढ़ाव के बाद भी वह अपने शिक्षक का प्रिय शिष्य बनकर युवा होकर एक कवि बना। पढ़ाई छूटने से कवि व लेखक बनने तक वह कई रुकावटों और परेशानियों से जूझता रहा। अतः इसका शीर्षक 'जूझउचित ही हैं।

 

प्रश्न 2. स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में पैदा हुआ ?

  • उत्तर- स्वयं कविता रच लेने का आत्मविश्वास लेखक के मन में तब आयाजब मास्टर सौंदलगेकर कविता पढ़ाते समय उन कवियों के भी संस्मरण बताया करते थे तब लेखक को कवि भी आदमी लगने लगा। उसे विश्वास हो गया कि कवि भी अपने जैसा ही हाड़-माँस का क्रोध लोभ का मनुष्य ही होता है। एक दिन मास्टर ने दरवाजे पर छाई हुई मालती की बेल पर कविता लिखी। वह कविता और लता दोनों को ही लेखक ने देखा तो उसके अंदर यह आत्मविश्वास जगने लगा कि अपने आस-पासअपने गाँव व खेतों में दृश्यों पर वह कविता कर सकता है। फिर वह खेतों में पानी डालते व भैंस चराते वक्त कभी भैंसों की पीठ पर लकड़ी से तो कभी पत्थर की शिलाओं पर कंकड़ से कविता लिखता और कंठस्थ करके अगले दिन मास्टर को दिखाता। मास्टर उसे शाबाशी देते और उसे कविता लेखन के छंदलयअलंकारों को समझाते थे। जिससे उसकी न केवल मराठी भाषा सुधरी बल्कि वह अलंकारछंदलय आदि को सूक्ष्मता से देखकर काव्य रचना करने लगा।

 

प्रश्न 3. श्री सौंदलगेकर के अध्ययन की उन विशेषताओं को रेखांकित करें जिन्होंने कविताओं के प्रति लेखक के मन में रुचि जगाई। 

अथवासौंदलगेकर के व्यक्तित्व के आधार पर किसी अध्यापक के लिए आवश्यक जीवन- मूल्यों पर प्रकाश डालिए।

 

उत्तर- श्री सौंदलगेकर के अध्यापन की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं- 

1. मराठी भाषा के मास्टर थे जो पढ़ाते समय स्वयं रम जाते थे विशेषकर कविता बहुत ही अच्छे ढंग से पढ़ाते थे। 

2. उनके पास सुरीला गलाछंद की बढ़िया चाल और रसिकता थी। 

3. मराठी व अंग्रेजी की कविताएँ उन्हें कंठस्थ थीं। 

4. अनेक छंदों की लयगतिताल उन्हें अच्छी तरह आते थे। पहले वे कविता गाकर सुनाते थे फिर बैठे- बैठे अभिनय के साथ कविता का भाव ग्रहण कराते थे। 

5. कवियों के संस्मरण भी सुनाते थे। स्वयं भी कविता करते थे। कभी-कभी अपनी रचित कविता भी सुनाते थे।

 

लेखक अपने आँखों और कानों की पूरी शक्ति लगाकर दम रोककर मास्टर के हाव-भावध्वनिगति और रस पीता रहता था। इस प्रकार लेखक के मन में कविताओं के प्रति रुचि जागृत हुई।

 

प्रश्न 4. कविता के प्रति लगाव से पहले और उसके बाद अकेलेपन के प्रति लेखक की धारणा में क्या बदलाव आया ?

 

उत्तर- कविता के प्रति लगाव के पहले लेखक को खेतों में अकेले काम करनाअकेले ढोर चराना बहुत अखरता था। अर्थात् वह अकेलापन महसूस करता था। उसे अपने साथ बातचीत करने वाले कोई साथीमित्र या लोग रहने पर हँसी मजाक करते हुए काम करना चाहता था। 

किन्तु कविता के प्रति लगाव के बाद से उसे अब अकेलापन ही अच्छा लगने लगा क्योंकि ऐसे एकांत में वह खेतोंगाँवों के दृश्यों पर कविता सोचताउसे भैंस की पीठ पर या पत्थर की शिला पर कंकड़ से या कागज पर कलम से लिखताकंठस्थ करता था। याद हो जाने पर उसे जोर-जोर से लय के साथ गाकर थुई थुई कर 'नाचने भी लगता। इस प्रकार अब उसे अकेलापन अखरने की बजाए पसंद आने लगा था।

 

प्रश्न 5. आपके ख्याल पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का तर्क सहित उत्तर है।  

उत्तर- लेखक के पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ताजी राव का रवैया सही था क्योंकि लेखक को छोटी उम्र में ही इस बात की समझ थी कि जन्मभर खेत में काम करते रहने पर भी हाथ कुछ नहीं लगेगा जो उसके बाबा (पितामह) के समय था वह दादा (पिता) के समय नहीं रहपिता आलसी था। खेती उन्हें गड्ढे में धकेल देगी। पढ़ लेने से नौकरी लग जाएगीचार पैसे हाथ में रहेंगे तो विठोबा अण्णा की तरह कुछ किया जा सकेगा। घर की गरीबी दूर होकर आर्थिक स्थिति सुधर जाएगी। दत्ताजी राय भी पढ़ाई का महत्व समझते थे अतः उन्होंने भी आनंदा (लेखक) का पक्ष लेते हुए उसे पाठशाला भेजना जी समझा।

 

लेखक के पिता (दादा) स्वयं की अय्याशी की चाहत में खेती का काम करना पसंद नहीं करते थे। इसलिए उसने अपनी जिम्मेदारी लेखक (आनंद) के ऊपर डालते हुए उससे खेती पर काम करवाते और उसे पाठशाला जाने से मना कर दिए थे। उन्हें शिक्षा का महत्व मालूम ही नहीं था। खेती-बाड़ी व मवेशी चराने से घर खर्च चलता है अतः आनंदा पर इन्हीं कामों को करने का दबाव डालते थे। वे उसे ताने देते थे कि पढ़-लिखकर तू बॉलिस्टर नहीं होने वाला है।

 

प्रश्न 6. दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डलवाने के लिए लेखक और उसकी माँ को एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम क्या होता अनुमान लगाएँ। 

उत्तर- दत्ता जी राव से पिता पर दबाव डालने के लिए लेखक और उसकी माँ की एक झूठ का सहारा लेना पड़ा। यदि झूठ का सहारा न लेना पड़ता तो आगे का घटनाक्रम कहानी के अंत के विपरीत होता न वो लेखक की पढ़ाई आगे हो पातीन ही वह कवि या लेखक बन पाते। पिता के दबाव में उन्हें जीवन-भर खेती-बाड़ी और पशु चराने में ही जीवन व्यतीत करना पड़ता। दत्ता जी राव जैसे कोई भी लोग उसके पिता को फटकार कर बेटे की पढ़ाई के लिए दबाव नहीं डाल पाते। घर की आर्थिक स्थिति भी सुधर नहीं पाती। माँ का सपना भी पूरा नहीं हो पाता। लेखक का भविष्य कवि या लेखक बनने की बजाए जाने किस दिशा में कैसा मोड़ लेता भविष्य बर्बादी की ओर भी जा सकता था। अतः यदि एक झूठ से भविष्य सुधरता है तो यह झूठ सर्वथा उचित था।

 
जूझ पाठ के अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
 

प्रश्न 1. 'जूझकहानी के प्रमुख पात्र आनंदा के स्वभाव की विशेषताएँ लिखिए। 

अथवा 

"जूझकहानी के आधार पर आनंदा के व्यक्तित्व की कोई चार प्रमुख विशेषताएँ लिखिए। 

उत्तर- 

1. पढ़ने का इच्छुक - पिता द्वारा पढ़ाई रुकवा देने के बावजूद वह पढ़ने के लिए लालायित था। अतः उसने अपने मन की बात माँ से कही और पिता पर दबाव डालने के लिए दत्ता जी राव के पास गया। 

2. परिश्रमी - आनंदा बेहद परिश्रमी था। वह रोज खेतों में पानी देने जाता फिर पशु चराता फिर विद्यालय जाता सारा दिन काम में व्यस्त रहता था। 

3. लगनशील - पढ़ने की उसमें अति लगन थी तभी वह कुछ महीने पाठशाला जाकर भी गणित व मराठी भाषा में होशियार बच्चों की श्रेणी में गिना जाने लगा। 

4. रचनाकार - वह ईश्वर प्रदत्त कवि हृदय का था तभी छोटी उम्र में ही मास्टर सौंदलगेकर के थोड़े मार्गदर्शन में ही कविताएँ लिखने और गाने लगा था। 

5. आज्ञापालक • वह पिता की आज्ञा का पूर्णतः पालन करता था। पिता ने उसे खेतों के काम और पशु चराने की शर्त पर ही पाठशाला भेजना स्वीकार किया था। अतः वह पिता की आज्ञा का शब्दः पालन करने के बाद ही पाठशाला जाता था। 

6. सहनशील- उसमें सहने की क्षमता असीम थी। घर में पिता की डाँट फटकारपाठशाला में शरारती बच्चों की प्रताड़ना व मजाक को निर्विरोध सह लेता था। 

7. दूरदर्शी - खेती-बाड़ी के काम से आर्थिक स्थिति नहीं सुधर सकती है पढ़ाई करने से नौकरी मिल जाएगी और चार पैसे हाथ आएँगे यह वहाँ जैसी सोच छोटे बालक आनंदा में थी।

 

प्रश्न 2. डेढ़ साल से घर बैठा लेखक पुनः पाठशाला कैसे पहुँचा ? 

अथवा, 'जूझकहानी के प्रमुख पात्र को पढ़ना जारी रखने के लिए कैसे जूझना पड़ा और किस उपाय से वह सफल हुआ ?

 

उत्तर- लेखक पिछले वर्ष पाँचवी में आया था किन्तु उसके दादा ने उसे पाठशाला से हटा लिया। इस सत्र में भी जनवरी आ गया है किन्तु वह स्कूल नहीं जा पा रहा था। उसे विश्वास है कि यदि वह अब भी पाठशाला गया तो कक्षा पाँच में पास हो जाएगा। वह दादा से अपनी इच्छा कह नहीं सकता अतः माँ से पढ़ने भेजने की बात करता है। माँ की असमर्थता देखकर वह राव सरकार की सहायता का सुझाव देता है। माँ बेटे दत्ताजी राव के यहाँ जाते हैं और उनका आश्वासन मिल जाने के बाद यह सुझाव देता है कि हम दोनों के यहाँ आने की बात दादा को न बताएँ। वह दत्ताजी राव के सामने अपनी पढ़ने की इच्छा को निःशंक होकर व्यक्त करता है। वह अपने ऊपर लगे आरोंपो का सटीक उत्तर देता है। जब दत्ताजी राव के दबाव में दादा पाठशाला भेजने को अपनी शर्तों पर तैयार होते हैंतो उनकी शर्तों को भी स्वीकार कर लेता है। प्रातः ग्यारह बजे तक खेत पर काम करने के बाद वह पाठशाला जाता है। शाम को पाठशाला से लौटकर फिर पशु चराता है। इन सब स्थितियों से गुजरने के बाद ही लेखक पुनः पाठशाला जा सका। प्रश्न 

3. 'जूझकहानी के पर दत्ताजी राव की भूमिका पर प्रकाश डालिए। 

अथवादत्ताजी राव ने लेखक की पढ़ाई की समस्या का समाधान किस प्रकार किया 

उत्तर— 'जूझकहानी में दत्ताजी राव देसाई की भूमिका महत्वपूर्ण है। वे गाँव के जमींदार हैं तथा नेक दिल व उदार हैं। बच्चों व महिलाओं पर उनका विशेष स्नेह है। वे हरेक की सहायता करते लेखक व उनकी माँ ने उन्हें अपनी पीड़ा बताई तो वे पिघल गए तथा निर्णय लिया कि वे लेखक के दादा को खरी-खोटी सुनाकर सीधे रास्ते पर लाएँगे। वे साम-दाम-दंड-भेद किसी भी तरीके से अपनी बात मनवाना चाहते हैं। उन्होंने दादा के आने पर उनका हाल-चाल पूछा तथा बच्चे की पढ़ाई के संबंध में बात खुलने पर खूब फटकार लगाई। उनकी डॉट से दादा की घिग्घी बंध गई तथा उन्होंने आनंद की पढ़ाई के लिए सहमति दे दी। 


प्रश्न 4. पाठशाला पहुँचकर लेखक को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा ? 

उत्तर- कक्षा में गली के दो लड़कों के अलावा सब अपरिचित थे। लेखक जिन्हें अपने से बुद्धिहीन समझता थाउन्हीं के साथ बैठने को बाध्य था। उसके कपड़े भी कक्षा-लायक नहीं थे। लट्ठे के थैले में पिछली कक्षा की किताब- कापियाँ थीं। पोशाक भी अजनबी जैसी थी। वह सिर पर गमछा और लाल माटी के रंग की मटमैली धोती पहने हुए था। इसे देखकर कक्षा के एक शरारती लड़के ने खिल्ली उड़ाई। उसने लेखक का गमछा छीन लिया और मास्टर की मेज पर रख दिया। छुट्टी के मध्य दो बार उसकी धोती की लाँग खींचने की कोशिश की गई। बेंचे के एक सिरे पर लेखक बाहरी अपरिचित जैसा बैठा था। 

घर लौटते समय लेखक चिंतित था कि लड़के मेरी खिल्ली उड़ाते हैंगमछा खींचते हैंधोती खींचते हैंतो इस तरह कैसे होगा। अतः सोचा पाठशाला न जाऊँखेत ही अच्छा है। किन्तु सवेरे उठते ही फिर उमंग में आकर पाठशाला चला गया। आठ दिन माँ की खुशामद की तब एक नई टोपी और दो नाड़ी वाली मैलखाक रंग की चड्डियाँ मिली वह स्कूल की ड्रेस थी। मंत्री नामक कक्षा अध्यापक के आतंक के कारण शरारती लड़कों से उसका पिंड छूटा। 

प्रश्न 5. 'जूझके कथा नायक का मन पाठशाला जाने के लिए क्यों तड़पता था उसे खेती का काम क्यों अच्छा नहीं लगता था तर्कपूर्ण उत्तर दीजिए। 

उत्तर- 'जूझका कथा नायक मन से पाठशाला जाना चाहता था। उसने अनुभव से समझ लिया था कि खेती करना किसी भी तरह से लाभदायक नहीं है। खेती करके जीवन में किसी प्रकार की उन्नति नहीं हो सकती है। उसने यह भी जान लिया था कि पढ़ाई-लिखाई में नौकरी प्राप्त हो सकती है उसके जीवन में खुशहाली आ सकती है। अतः उसका मन पाठशाला जाने के लिए छटपटाता था।

 

प्रश्न 6. 'जूझकहानी आधुनिक किशोर-किशोरियों को किन जीवन मूल्यों की प्रेरणा दे सकती है सोदाहरण स्पष्ट कीजिए। 

उत्तर- 'जूझकहानी आज के किशोर-किशोरियों को कई जीवन मूल्यों की प्रेरणा दे सकती है। उनमें से कुछ निम्नलिखित हैं- 

1. संघर्षशीलता - किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए संघर्षशीलता बहुत आवश्यक है। आजकल के किशोर-किशोरियाँ शॉर्टकट रास्ते पर चलकर सफलता पाना चाहते हैं ताकि उन्हें कम-से-कम परिश्रम और संघर्ष करना पड़े जबकि 'जूझकहानी के नायक को जगह-जगह संघर्ष करना पड़ा। 

2. लगनशीलता - परिश्रम के अलावा किसी काम में सफलता पाने के लिए लगन होना भी आवश्यक है। आनंदा डेढ़ साल बाद विद्यालय जाता है और अपनी लगन से कक्षा के होशियार बच्चों में गिना जाने लगता है। आधुनिक किशोर-किशोरियों को लगनशील बनना चाहिए।

3. दूरदर्शिता - 'जूझकहानी का नायक आनंदा दूरदर्शी है। वह अपनी दूरदर्शिता के बल पर अपने पिता को राव साहब के पास भेजने में सफल हो जाता है और अपने पिता क्रोध से बचते हुए उन्हें अपनी पढ़ाई के लिए राजी कर लेता है। 

4. परिश्रमशीलता - आधुनिक किशोर-किशोरियों को आनंदा के समान परिश्रमशील बनना चाहिए। आनंदा पढ़ाई के साथ खेत में कठोर परिश्रम करता है और सफलता प्राप्त करता है।

 

प्रश्न 7. लेखक प्रतिभाशाली व बुद्धिमान बालक है। सिद्ध कीजिए। 

उत्तर- लेखक बहुत बुद्धिमान तथा प्रतिभाशाली बालक है। वह बचपन में ही बड़ों जैसी युक्तियाँ खोजकर अपने लिए रास्ते बनाता है। माँ को समझानाराव साहब को विश्वास दिलानापिता को बाध्य करना उसको बुद्धिमत्ता के चिन्ह हैं। वह प्रतिभाशाली बालक है। विद्यालय में जाते ही वह गणित और साहित्य में अग्रणी स्थान पा लेता है। गणित के सवाल ठीक करने के कारण उसे मॉनीटर बना दिया जाता है। कविता सुनकर गानेकरने और नाचने में वह बहुत कुशल है। वह अपने अध्यापक से भी अच्छी लय निकाल लेता है। धीरे-धीरे वह नए-नए विषयों पर लिखकर अपनी जन्मजात प्रतिभा का परिचय देता है। 

प्रश्न 8. 'जूझलेखक के मन में यह विश्वास कब और कैसे जन्मा कि वह भी कविता की रचना कर सकता है   

उत्तर- लेखक मराठी पढ़ाने वाले अध्यापक न. वा. सौंदगलेकर की कला व कविता सुनाने की शैली से बहुत प्रभावित हुआउसे महसूस हुआ कि कविता लिखने वाले भी हमारे जैसे मनुष्य ही होते हैं। कवियों के बारे में सुनकर तथा कविता सुनाने की कलाध्वनि गतिचाल आदि सीखने के बाद उसे लगा कि वह अपने आस- पासअपने गाँव अपने खेतों से जुड़े कई दृश्यों पर कविता बना सकता है। वह भैंस चराते चराते फसलों या जंगली फूलों पर तुकबंदी करने लगा। वह हर समय अपने पास कागजपेंसिल रखने लगा। वह अपनी कविता अध्यापक को दिखलाता। इस प्रकार उसके मन में कविता रचना के प्रति रुचि उत्पन्न हुई।

 

प्रश्न आनंदा के पिता ने किन शर्तों पर उसे विद्यालय जाने दिया ? 

उत्तर— दादा ने मन मारकर अपने बच्चे को स्कूल भेजने की बात मान तो लीपर खेती-बाड़ी के बारे में उन्होंने निम्नलिखित वचन लिए- 

(1) पाठशाला जाने से पहले ग्यारह बजे तक खेत में काम करना होगा तथा पानी लाना होगा। 

(2) सबेरे खेत पर जाते समय ही बस्ता लेकर जाना होगा। 

(3) छुट्टी होने के बाद घर में बस्ता रखकर सीधे खेत पर आकर घंटाभर पशुओं को चराना होगा। 

(4) अगर किसी दिन खेत में ज्यादा काम होगा तो उसे पाठशाला नहीं जाना होगा।

 

प्रश्न 10. 'जूझकहानी के लेखक के जीवन संघर्ष के उन बिन्दुओं पर प्रकाश डालिए जो हमारे लिए प्रेरणादायक हैं।


 उत्तर- 'जूझकहानी एक प्रेरणादायी संघर्ष गाथा है। कथानायक के सामने हर प्रकार की विपरीत परिस्थितियाँ थीं। उसके सामने घनघोर अंधेरा था। जिस पिता से उन्नति की आशा की जाती हैवह उसकी उन्नति का दुश्मन था। जिस माँ का सहारा पाकर बच्चे आगे बढ़ते हैंवह माँ भी भयभीत थी। वह अपने अत्याचारी पति के सामने हार मान चुकी थी। ऐसी स्थिति में कथानायक के पास अपनी प्रबल इच्छा और आत्मविश्वास हो बचा था। उसने पूरी दृढ़ता और साहस से अंधेरों को पाटा और अपने लिए रास्ता बनाया।

 

कथानायक ने पहले अपनी माता के हृदय को छुआ। माँ के डर को दूर करके उसे हिम्मत दिलाने के लिए तैयार किया फिर उसने माँ को रास्ता सुझाया। वह जानता था कि उसके पिता केवल राव साहब के सामने दबते हैं। अत: उसने राव साहब को अपने पक्ष में करने की योजना बनाई। इतनी छोटी उम्र में हिम्मत दिखाना और योजना सचमुच संघर्षपूर्ण था।

 

कथानायक को विद्यालय में जाकर भी अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। एक शरारती लड़के ने उसका खूब अपमान किया। पिता ने विद्यालय जाने से पहले और विद्यालय से आने के बाद कठोर काम करने की शर्त रखी। परंतु कथानायक ने सारी कठिनाइयों को पार किया और उन्नति के लिए मार्ग निकाल लिया। यह कथा सचमुच प्रेरक संघर्ष गाथा है।

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